अपने शिष्यों की परीक्षा के उद्देश्य से एक बार गुरु नानक देव ने कांसे का अपना कटोरा कीचड़ से भरे गड्ढे में फेंक दिया। इसके बाद उन्होंने शिष्यों को आदेश दिया कि वे गड्ढे में घुस कर उनका कटोरा वापस लेकर आएं। कीचड़ में सन जाने के डर से कोई शिष्य कटोरा लाने का साहस नहीं कर सका। कोई न कोई बहाना बनाकर वे निकल गए।
नानक मुस्कराए और अंत में उन्होंने भाई लहना से कहा कि कटोरा निकाल लाओ। गुरु-भक्त लहना ने अपने सुंदर लिबास की परवाह नहीं की। वे गड्ढे में उतरे। उनका लिबास काले कीचड़ में सन गया, लेकिन वे गुरु का कटोरा निकाल लाए। नानक के चेहरे पर संतोष की रेखा दिखाई दी। उन्होंने लहना को आशीर्वाद दिया। यही भाई लहना आगे चलकर सिखों के दूसरे गुरु अंगद देव के नाम से प्रसिद्ध हुए।
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