लघु कथा: जीवन

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लघु कथा: जीवन


एक आदमी जंगल में हीरों की खोज में लगा हुआ था। तभी उसके पीछे एक सिंह लग गया । वह बचाव के लिए बेतहाशा भागा। भागते-भागते वह एक ऐसी जगह पहुच गया, जिसके आगे रास्ता समाप्त हो गया था। नीचे भयंकर गड्ढा था। वापस लौटने का कोई उपाय न था, क्योंकि पीछे सिंह पड़ा था। सामने रास्ता समाप्त हो गया था। आखिरकार घबराहट में उसने वही किया जो निरुपाय आदमी करता है। वह गड्ढे में एक वृक्ष की जड़ों को पकड़कर लटक गया। 


सोचा, सिंह चला जाएगा तो निकल आएगा। मगर सिंह गया नहीं, ऊपर उसका इंतजार करने लगा। जब उसने देखा कि सिंह जाने का नाम नहीं ले रहा, तो उसने नीचे झांका। नीचे देखा कि एक पागल हाथी चिघांड रहा है। उसे लगा कि अब बचने का शायद कोई उपाय नहीं शेष रहा। तभी उसने देखा कि उसने जिस शाखा को पकड़ा है, वह कुछ नीचे झुकती जा रही है। ऊपर देखा तो दो चूहे उसकी जड़ों को काट रहे है। उसी समय उसने यह भी देखा कि ऊपर मधुमक्खियों ने एक छत्ता लगा रखा है। और उसमें से एक-एक बूंद टपक रही हैं। यह देख कर उसने अपनी जीभ फैला दी। मधु की एक बूंद जीभ पर आ टपकी।  


उसने आखें मूंद लीं और बोला, धन्य भाग! बहुत मधुर है। आदमी की वासनाएं भी ऐसी ही है। मन मधु की एक-एक बुंद टपकाता चला जाता है और आंख बंद करके आदमी कहता है कि वह बहुत मधुर है, लेकिन वास्तविकता वह जानता है कि मृत्यु निकट है और प्रति पल जीवन की जड़ें कटती जा रही हैं। इसे भूलकर वह वासनाओं के पीछे पड़ा रहा है।


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