लघु कथा: एचजी वेल्स की उदारता

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लघु कथा: एचजी वेल्स की उदारता


एचजी वेल्स अंग्रेजी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। लंदन में उन्होंने अच्छा-सा मकान बनवा लिया था। किंतु वे उस मकान के तीसरे माले के एक सामान्य कमरे में ही रह कर अपना जीवन-यापन करते थे। एक बार उनका प्रिय मित्र उनसे मिलने आया। वेल्स जैसे बड़े लेखक को एक सामान्य कमरे में देख मित्र आश्चर्यचकित होकर बोला,‘‘इतने बड़े मकान में रहते हुए तुमने अपने लिए सामान्य से कमरे को ही क्यों चुना? नीचे के खण्ड में तो एक से एक सुविधाजनक कमरे हैं।’’ 

    इस पर वेल्स ने कहा,‘‘तुम ठीक कह रहे हो, निचले खण्ड के कमरे मैंने नौकरों को दे रखे हैं।’’ यह सुनकर तो मित्र और भी चकित हो गया और बोला,‘‘ऐसा करने की आखिर क्या जरूरत थी। सभी मकान मालिक तो खुद अच्छे कमरों में रहते थे और नौकरों को छोटे कमरे दिया करते हैं, चाहे वे कितने ही असुविधाजनक क्यों न हों।’’ यह सुनकर वेल्स ने कहा,‘‘ऐसा मैंने जान-बूझकर किया है। क्योंकि किसी जमाने में मेरी मां भी नौकरानी का काम करती थी। गंदी कोठरियों का नारकीय जीवन मैंने भी देखा है। इसलिए आज जब मैं समर्थ हूं तो मैंने अपने नौकरों को साफ-सुथरें और सुविधाजनक कमरे दे रखे हैं, ताकि उन्हें किसी तरह का कष्ट न हो। आखिर वे भी तो इन्सान हैं और मेरा क्या है, मेरा काम तो इस छोटे से कमरे से ही चल जाता है।’’ वेल्स का जवाब सुनकर उनका मित्र श्रद्धा से अभिभूत हो गया।


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