गुजरात के एक गांव में किसी प्रसिद्ध संत का प्रवचन चल रहा था। हजारों लोग गांव-गांव से कथा सुनने आ रहे थे। करीब आधा किलोमीटर पैदल चल कर कथा मंडप आता था। मुबई एक नामी व्यापारी शांतिपूर्वक सम्पूर्ण कथा सुनने के बाद राजापुर आया। दोपहर बाद की कथा प्रारंभ होने के समय व्यापारी तेज-तेज कदमों से मंडप की ओर जा रहा था। तभी उसकी चप्पल टूट गई। थोड़ी दूर छतरी की छाया तले एक मोची बैठा था। व्यापारी ने विनती की, भाई, जल्दी से मेरी चप्पल जोड़ दो, वरना कथा में मुझे देर हो जाएगी। मोची ने फटाफट चप्पल जोड़ दी। व्यापारी ने उसे एक रुपए का सिक्का दिया और तेजी से आगे बढ़ गया।
मोची ने पीछे से पुकारा, बाबू आप दूसरे शहर से कथा सुनने आए हैं न? आप यह रुपया वापस ले लें। व्यापारी ने पूछा, मगर क्यों? अत्यंत प्रेमपूर्वक रुपया लौटाते हुए मोची बोला, मैं निर्धन हूं, इसलिए अपना धंधा छोड़कर कथा सुनने नहीं जा सकता। लेकिन आप जैसे कथा सुनने के लिए जाने वाले गृहस्थ की चप्पल पर दो टांके लगाकर मैं रुपया नहीं लूंगा। अगर लूंगा तो मेरा भगवान मुझसे रूठ जाएगा। मैं प्रवचन में इसी तरह खुद को शामिल मानता हूं।
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