जमेशद जी मेहता कराची के प्रख्यात सेठ थे। एक अस्पताल के निर्माण के लिए चंदा एकत्र किया जा रहा था। चंदा देने वालों को यह बताय जाता था कि जो दस हजार रुपये दान में देंगे। उनके नाम के पत्थर अस्पताल के मुख्य द्वार पर लगाए जाएंगे। बहुत से व्यक्तियों ने दस हजार या इससे भी अधिक रुपये दान में दिए, ताकि उनके नाम का पत्थर अस्पताल के मुख्य द्वार पर लग जाए।
परंतु जमशेद जी मेहता ने दस हजार में से चालीस रुपए कम दिए। इस पर किसी ने कहा कि सेठ जी चालीस रुपये और दे दें तो आपके नाम का पत्थर भी लग जाएगा। इस पर सेठ जी ने उत्तर दिया कि सेवा में जो आनंद है,, वह आनंद नाम का पत्थर लगवाने में नहीं हैं।
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