जाहरवीर गोगाजी के भक्तों के लिए खुशखबरी :: 19 अगस्त 2024 से शुरू होगा गोगामेड़ी मेला, एक महीने तक चलेगा , मेला तैयारियों को लेकर बैठक आयोजित Gogamedi mela 2024

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जाहरवीर गोगाजी के भक्तों के लिए खुशखबरी :: 19 अगस्त 2024 से शुरू होगा गोगामेड़ी मेला, एक महीने तक चलेगा , मेला तैयारियों को लेकर बैठक आयोजित Gogamedi mela 2024

जाहरवीर गोगाजी
जाहरवीर गोगाजी



जाहरवीर गोगाजी के गोगामेड़ी मेला
 तैयारियों को लेकर जिला कलक्टर ने ली गोगामेड़ी में बैठक, साफ-सफाई को लेकर दिए सख्त निर्देश। 

Gogamedi mela 2024, गोगामेड़ी मेला 2024 :  सांप्रदायिक सौहार्द तथा उत्तरी भारत का सबसे बड़ा जाहरवीर गोगाजी का  गोगामेड़ी मेला इस वर्ष 19 अगस्त से 18 सितंबर 2024 तक भरेगा। एक माह तक चलने वाले मेले में श्रद्धालुओं को पानी, बिजली और आवागमन की उचित व्यवस्थाए मिले, इसलिए जिला कलक्टर काना राम ने गोगामेड़ी में शुक्रवार को सबंधित अधिकारियों की बैठक ली। 


गोगामेडी पशु मेले की तैयारियों को लेकर भी बैठक आयोजित 

पशुपालन संयुक्त निदेशक डॉ. हरीश गुप्ता ने बताया कि गोगामेडी पशु मेले में वर्ष 2023 में 3300 से अधिक ऊंट विक्रय हेतु आए थे। उससे पूर्व 2022 में लंपी डिजीज, 2021 और 2020 में कोविड-19 की वजह से पशु मेले का आयोजन नहीं हुआ था।


अधिकारियों को दिए दिशा निर्देश 

जिला कलक्टर ने बैठक से पहले गुरु गौरक्षनाथ जी महाराज के धुणे के दर्शन किए। जिला कलक्टर ने अवैध दुकानों को हटाने, अतिरिक्त पार्किंग के लिए जगह चिन्हित करने, भिक्षावृति को रोकने, सांस्कृतिक कार्यक्रम को तीन दिन आयोजित करने, हवन कुंड तथा थापों के लिए अलग से जगह चयनित करने के निर्देश दिए। बैठक में पुलिस और यातायात व्यवस्था, बेरिकेडिंग, छाया, अग्निशमन, साफ-सफाई, सुलभ शौचालय, पेयजल और विद्युत व्यवस्थाओं को लेकर अधिकारियों को दिशा निर्देश दिए।


मेले के शुभारंभ से 15 दिन पहले सभी पेयजल भंडार गृहों को साफ करने के निर्देश जारी

जिला कलक्टर ने कहा कि मनोरंजन स्थल पर मनोरंजन की मशीनें ओवरलोडेड ना हो, इसके लिए स्टाफ की नियुक्ति की जाए।  जिला कलक्टर ने कहा कि साफ सफाई को लेकर फीडबैक अच्छा नहीं है, इसके लिए ग्राम पंचायतें तय करेगी की सफाई व्यवस्थाए दूरस्थ हो। खाद्य पदार्थों की जांच हेतु स्वास्थ्य विभाग को टीम गठित करने, टेलीकॉम कंपनी को अतिरिक्त टावर लगाने के निर्देश दिए। पीएचईडी के अधिकारियों ने बताया कि मेले के शुभारंभ से 15 दिन पहले सभी पेयजल भंडार गृहों को साफ करने के निर्देश जारी किए जाते है। मेले के दौरान प्रत्येक घंटे पानी में क्लोरीन की मात्रा चेक की जाती है, मेले के दौरान 30 क्यूसेक पानी की आवश्यकता रहती है। 

जिला कलक्टर ने कहा कि 3 महीने पहले मीटिंग करने का उद्देश्य यही है कि सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त हो तथा समय पर हो। सभी विभाग मेले को सफलतापूर्वक पूर्ण करने के लिए दिए गए निर्देशों की अक्षरश पालना सुनिश्चित करें। 

ये रहे अधिकारी उपस्थित 

बैठक में जिला परिषद सीईओ सुनीता चौधरी, नोहर एसडीएम पंकज गढ़वाल, भादरा एसडीएम ओपी चंदेलिया, नोहर एडिशनल एसपी सुभाष शर्मा, भादरा सीओ सुभाष गोदारा, देवस्थान सहायक आयुक्त गौरव सोनी सहित जिला स्तरीय अधिकारी उपस्थित रहे।


 


Story of Jaharveer Gogaji गोगामेडी हिंदुओं तथा मुसलमानों का सांझा धार्मिक स्थल

Story of Jaharveer Gogaji गोगामेडी हिंदुओं तथा मुसलमानों का सांझा धार्मिक स्थल है। जितनी श्रद्धा से यहां हिंदू धोक ( पूजा) लगाते हैं उतनी श्रद्धा से मुसलमान भी सजदा करते हैं। हिंदू जाहरवीर गोगा जी को वीर कहते हैं तो मुसलमान गोगापीर के नाम से पुकारते हैं 

Gogamedi mela  : गोगामेडी हरियाणा राजस्थान की सीमा पर स्थित राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की नोहर- भादरा तहसील में धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। गंगानगर से जयपुर जाने वाली रेलवे लाइन मेला स्थल के बीचो बीच गुजरती है। यहां दूर-दूर तक फैले रेगिस्तान में बालू रेत के टीले दृष्टिगोचर होते हैं। गोगामेडी से 2 किलोमीटर पहले गोगाना में गुरु गोरखनाथ का प्राचीन धूणा स्थित है। यहां पर स्थित गोरख गंगा का अपना ही महत्व है। गोगामेडी में यूं तो पूरे वर्ष श्रद्धालु आते रहते हैं लेकिन भादो मास में 1 महीने के लिए यहां भारी मेला लगता है। देश के कोने-कोने से भक्त आकर अपने लोक देवता को सजदा करते हैं । गोगामेडी ट्रेनों का समय







  गोगा नवमी को जाहरवीर गोगा जी का जन्मदिन  है। इस दिन देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आकर रोक लगाएंगे ।  गोगामेडी स्थल के लिए 158 एकड़ जमीन आरक्षित है जिसका रखरखाव देव स्थान विभाग राजस्थान सरकार के अधीन है। 



यूं तो जाहरवीर गोगा जी के जीवन काल के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन इतिहास में कोई स्पष्ट टिप्पणी नहीं की गई है। लोक प्रचलित कथा के अनुसार उन्हें 11 वीं सदी में मोहम्मद गजनवी के समकालीन माना जाता है। सर्व सम्मत लोक मान्यता है कि राजस्थान के चुरू जिले के ददरेवा नामक ग्राम रियासत के राणा अमर सिंह चौहान राज करते थे। उनके दो पुत्र जेवर सिंह और नेवर सिंह की शादी सिरसा पट्टन के राजा कुंवर की दो पुत्रियां बाछल वह काछल से हुई । 




बताया जाता है कि जब उमर सिंह को उसकी मां गोद में उठाए खिला रही थी, तो ढयोडी पर एक फकीर आया। उसने भीख मांगी उमर सिंह की माता ने भीख देने से मना कर दिया। तो उस साधु ने श्राप दे दिया कि उन्हें अगली पीढ़ी में संतान नहीं होगी। जब उमर सिंह की माता को साधु के श्राप का आभास हुआ तो उसने साधु से अपनी भूल की माफी मांगी, क्षमा प्रार्थना की तब साधु ने रानी को कहा कि संतों फकीरों की सेवा करने पर इस रियासत में पुत्र प्राप्ति होगी। 







समय बीतने के बाद जेवर और नेवर की शादी को कई वर्ष हो गए। परंतु उनके कोई संतान पैदा नहीं हुई राजा उमर की मृत्यु के बाद राजगद्दी पर राजा जेवर सिंह को बैठा दिया। लेकिन संतान के अभाव में राजा जेवर सिंह हर समय चिंतित रहते। रानी बाछल हर समय  संतों की सेवा करती तथा अपने भाग्य को कोसती रहती। इसी दौरान महायोगी गुरु गोरखनाथ ददरेवा रियासत स्थित बाग में आकर अपने चेलों के साथ तपस्या करने लगे। तो सुखा बाग हरा भरा हो गया।  तभी राजा की बांदी ने बाग की तरफ देखा तो उसे यकीन नहीं हुआ। तो बांदी ने पूरी तसल्ली की। 




तसल्ली करने के बाद भागकर राज महल गई व रानी बाछल को साधुओं के डेरा डालने और बाग के हरा-भरा करने की पूरी कहानी सुनाई। तो रानी ने राजा जेवर को बताया। राजा जेवर को गुरु गोरखनाथ के आने का पता चला तो वह सहपरिवार उनके दर्शन के लिए राज उद्यान पहुंचे। जब गुरु गोरखनाथ ने राजा और रानी की व्यथा सुनी तो उन्होंने रानी बाछल को एक तेजस्वी पुत्र का आशीर्वाद दिया। गुरु गोरखनाथ ने आशीर्वाद देकर  दूसरे दिन आकर फल ले जाने के लिए कहा। गुरु गोरखनाथ द्वारा आशीर्वाद व बाछल को पुत्र के लिए मिलने वाले फल की बात उसकी बहन काछल ने सुनी तो काछल के मन में कपट आ गया । 




वह दूसरे दिन जल्दी उठ रानी बाछल के कपड़े पहन गुरु गोरखनाथ से दो फल ले आई। जब रानी बाछल गुरुजी के पास पहुंची तो गोरखनाथ वहां अपने चेलों के साथ प्रस्थान की तैयारी कर रहे थे। पास आते देख महायोगी बाल ब्रह्मचारी गुस्से से भर गए और उन्होंने कहा कि ज्यादा लोभ अच्छा नहीं होता, लेकिन तब रानी बाछल ने अपनी बहन काछल द्वारा ठगने की बात बताई तो गुरु गोरखनाथ का गुस्सा शांत हुआ। 




गुरुजी ने रानी बाछल को गूग्गल दी और कहा कि जो भी बांझ इस गूगल का सेवन करेगी उसे एक वीर तेजस्वी संतान की प्राप्ति होगी। रानी ने महल में आकर थोड़ी गूग्गल अपनी पंडिताइन को दी, थोड़ी सी अपनी दासी को, थोड़ी सी अपनी घोड़ी को खिलाकर बाकी गूगल खुद खा गई। समय बीतने पर बाछल के गर्भ से जाहरवीर गोगा जी का जन्म हुआ। पंडिताइन की संतान का नाम नाहर सिंह पांडे रखा गया। दासी की संतान का नाम भज्जू कोतवाल, घोड़ी ने नीले घोड़े को जन्म दिया।  काछल को दो पुत्र अर्जुन और सर्जन प्राप्त हुए। जाहरवीर गोगाजी अर्जुन, सर्जन एक साथ खेल कर बड़े हुए। एक साथ ही शिक्षा ग्रहण की। 




जाहरवीर के बड़ा होने पर जाहरवीर की शादी उत्तर प्रदेश रियासत के राजा की पुत्री सीरियल से हुई। जो बेहद खूबसूरत व समझदार थी। जाहरवीर के पिता की मृत्यु के बाद ददरेवा की राजगद्दी जाहरवीर गोगा जी ने संभाली, व भली भांति राजकाज चलाने लगे। एक बार गुरु गोरखनाथ पुनः ददरेवा पहुंचे तो राजमाता व जाहरवीर ने गुरु गोरखनाथ की आवभगत की। तब गुरु जी ने जाहरवीर को अपने साथ ले जाने की बात कही। 




माता की आज्ञा से जाहरवीर, गुरु गोरखनाथ व अन्य चैलों ने  दुनिया के कोने कोने की यात्रा की। जाहरवीर हिंदू और मुसलमान दोनों को समान रूप से प्यारे लगते थे। जाहरवीर गोगा जी की बातें हिंदू भी उतने ही चाव से सुनते थे और मुसलमान भी पूरी गौर से सुनते थे । वह हिंदुओं व मुसलमानों के समान रूप से लोकप्रिय हो गए। हिंदू इन्हें जाहरवीर तथा मुसलमान उन्हें गोगा पीर के नाम से पुकारने लगे। यात्रा से वापिस आकर जाहरवीर राज काज देखने लगे। 




जब मुगलों ने भारत पर आक्रमण किया तो जाहरवीर ने अर्जुन सर्जन व उसकी सेना को साथ लेकर दुश्मन का डटकर मुकाबला किया। तब  दुश्मन अपनी हार को देखकर घबरा गया।  उसने अर्जुन सर्जन को राज्य का लोभ देकर अपनी तरफ मिला लिया। अगले दिन जब युद्ध शुरू हुआ तो अर्जुन सर्जन दोनों तलवार लिए जाहरवीर के पीछे खड़े थे। तभी जाहरवीर गुरु गोरखनाथ की कृपा से उनकी मंशा को जान गए और  पलट कर दोनों को मौत के घाट उतार दिया।




युद्ध समाप्त होने के बाद राज माता बाछल ने गोगाजी द्वारा अर्जुन सर्जन की मौत का समाचार सुना तो, वह आग बबूला हो गई और जब जाहरवीर गोगा जी  राज महल पहुंचे तो राजमाता ने जाहरवीर को देश निकाला दे दिया और कहा कि कभी उसे मुंह मत दिखाना। 




उधर रानी सीरियल को भी सजा के तौर पर महल के पीछे एक कोठरी दे दी गई। जाहरवीर रात को छिपकर अपनी पत्नी रानी सीरियल से आकर मिलने लगे, तब रानी सीरियल भी उदासी छोड़ हारशृंगार करने लगी। वह खुश रहने लगी। जब एक दिन  माता बाछल ने रानी को हार सिंगार किए हुए देखा तो वह रानी को खरी-खोटी कहने लगी। तभी रानी ने बताया कि जाहरवीर हर रात उनसे मिलने आते हैं तब राज माता बाछल ने पुत्र को आज्ञा पालन न करने की सजा देने की सोची। 




रात को छिपकर जाहरवीर का इंतजार करने लगी। जब जाहरवीर रात को रानी से मिलने आए तो राजमाता ने गोगाजी को ललकारा। तब गोगा जी ने राजमाता को मुंह नहीं दिखा कर उल्टे कदमों से वापिस दौड़कर घोड़े पर चढ़कर घोड़ा दौड़ा दिया। तभी राज माता बाछल ने हाथ में तलवार लेकर जाहरवीर के घोड़े के पीछे अपना घोड़ा दौड़ा दिया। काफी दूर तक पीछा करने के बाद जाहरवीर का घोड़ा यहां जंगल में वर्तमान गोगामेडी में दलदल में फंस गया।




 नीला घोड़ा गोगा जी दोनों धरती में समा गए। जब इस बात का पता चला रानी सीरियल को चला तो रानी ने भी  समाधि ले ली। जब राज माता बाछल को पुत्र तथा पुत्रवधू द्वारा समाधि लेने का पता चला तो, पश्चाताप करती हुई बाछल ने भी समाधि स्थल के  पास बैठ कर जान देने का निर्णय कर लिया।  माता की प्रार्थना पर जाहरवीर प्रकट हुए और भविष्यवाणी की कि वे जनता के उपकारक के रूप में सदा उपस्थित रहेंगे।  हिंदू और मुसलमान सभी धर्मों के लोगों के समान रूप से हितकारी होंगे।


 


जाहरवीर गोगा जी का जन्म भादो मास में नवमी को माना जाता है, जिसे गोगा नवमी कहते हैं। इसलिए पूरे भादो मास गोगामेडी में मेला लगता है यहां पर हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल सहित देश के दूर-दूर के राज्यों श्रद्धालु आते हैं। 



गोगा जी के भक्त गुरु शिष्य परंपरा का निर्वाह करते हुए पहले गुरु गोरखनाथ के धूणें पर जाकर नमन करते हुए फिर गोरक्ष गंगा में स्नान करने के बाद 3 किलोमीटर तक पैदल चलकर कनक दंडवत गोगामेडी में जाहरवीर की समाधि पर धोक लगाते हैं,  व सजदा करते हैं।  




मंदिर में समाधि बनी हुई है यहां पर मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु नारियल, खील, पतासे, नारियल, नीली ध्वजा, सोने व चांदी के छत्र इत्यादि चढ़ावा चढ़ाते हैं। जाहरवीर की समाधि पर धोक लगाने के बाद श्रद्धालु रानी सीरियल, माता बाछल, नाहरसिंह पांडे, भज्जू कोतवाल, रत्तना हाजी, सबल सिंह बावरी, केसरमल, जीत कौर, श्याम कौर, व भाई मदारण की समाधियों पर भी नमन करते हैं। गोगामेडी स्थल में 158 एकड़ भूमि आरक्षित है। 




जिस का रखरखाव देवस्थान विभाग राजस्थान सरकार के अधीन है। मंदिर में हिंदू और मुसलमान दोनों ही धर्मों के पुजारी हैं । भादो मास में ही गोगामेडी में उत्तर भारत का सबसे बड़ा ऊंट मेला लगता है। यहां पर देश के कोने-कोने से ऊंट व्यापारी व किसान पहुंचते हैं यह मेला पशुपालन विभाग  राजस्थान सरकार के सौजन्य से आयोजित किया जाता है । गोगामेडी मेला परिसर में क्षेत्र में भादो मास में गोगा जी का रात्रि जागरण होता है । भक्तों को गोगा जी की घोट व छाया आती है। तो भक्त अपने आप को लोहे की जंजीरों से पीटने लगते हैं।






मान्यता है कि यहां पर सर्पदंश से किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं होती। बच्चों के मुंडन (पहली बार सिर के बाल काटना) का कार्य  यही होता है।  अधिकांश लोग गोगाजी को सर्पों के देवता के रूप में पूछते हैं। गोगाजी के निशान लेकर डमरु, ढोलक, खड़ताल लेकर नाचते गाते गोगामेडी तक पहुंचते हैं ।  




यह नजारा देखने योग्य होता है। उत्तर प्रदेश से आने वाले पीत वस्त्र धारी श्रद्धालु यहां से गोरक्ष गंगा से पानी की बोतल या मिट्टी अपने साथ ले जाते हैं । हिंदू और मुसलमानों को एक साथ धोक लगाते देख अनूठा उदाहरण पेश होता है। गुरु गोरखनाथ की जय, जाहरवीर की जय, गोगापीर की जय से वातावरण गुंजायमान रहता है।



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