world famous personality सन् 1906 में दस वर्ष के बालक सालिम अली की अटूट जिज्ञासा ने ही पक्षिशास्त्री के रूप में उन्हें विश्व में मान्यता दिलाई है। सालिम अली का जन्म 12 नवम्बर, 1896 को हुआ। बचपन से ही प्रकृति के स्वच्छन्द वातावरण में घूमना इनकी रुचि रही है। इसी कारण वे अपनी पढ़ाई भी पूरी तरह नहीं कर पाए। बड़ा होने पर सालिम अली को बड़े भाई के साथ उनके काम में मदद करने के लिए बर्मा भेज दिया गया। यहां पर भी इनका मन जंगल में तरह-तरह के परिन्दों को देखने में लगता।
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घर लौटने पर सालिम अली ने पक्षिशास्त्री में प्रशिक्षण लिया और बंबई के नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के म्यूजियम में गाइड के पद पर नियुक्त हो गए। फिर जर्मनी जाकर इन्होंने उच्च प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। लेकिन एक साल बाद देश लौटने पर इन्हें ज्ञात हुआ कि इनका पद खत्म हो चुका है और सालिम अली बेराजगार हो गए। इन्हें कहीं नौकरी नहीं मिली। इनकी पत्नी के पास थोड़े बहुत पैसे थे जिसके कारण बंबई बन्दरगाह के पास किहिम स्थान पर एक छोटा-सा मकान लेकर सालिम अली रहने लगे। यह मकान चारों तरफ से पेड़ों से घिरा हुआ था। उस साल वर्षा ज्यादा होने के कारण इनके घर के पास एक पेड़ पर बयापक्षी ने घौंसला बनाया।
सालिम अली तीन-चार माह तक बयापक्षी के रहने-सहने का अध्ययन रोजाना घंटों करते रहते। सन् 1930 में इन्होंने अपने अध्ययन पर आधारित लेख प्रकाशित कराए। इन लेखों के कारण ही सालिम अली को पक्षिशास्त्री के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। सालिम अली ने कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं। सन् 1941 में ह्यदि बुक आफ इण्डियन बर्ड्स और सन् 1948 में हैण्डबुक आफ बड आफ इंडिया एण्ड पाकिस्तान इनके द्वारा लिखित प्रमुख पुस्तकें हैं।
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