विश्व प्रसिद्ध व्यक्तित्व:- मदर टेरेसा (भारत) करुणा की साकार मूर्ति mother Teresa

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विश्व प्रसिद्ध व्यक्तित्व:- मदर टेरेसा (भारत) करुणा की साकार मूर्ति mother Teresa

 


mother Teresa करुणा और सेवा की साकार मूर्ति मदर टेरेसा ने जिस आत्मीयता से भारत के दीन-दुखियों की सेवा की है, उसके लिए देश सदैव उनका ऋणी रहेगा। वे 1929 में यूगोस्लाविया से भारत आई और कलकत्ता को केन्द्र बनाकर उन्होंने अपनी गतिविधियां शुरु की। उन्होंने 77 वर्ष की आयु होने पर भी, अपनी हजारों स्वयंसेविकाओं के साथ अनाथ, अनाश्रित एवं पीड़ितों के उद्धार कार्य में अथक रूप से लगी रही थी। मदर टेरेसा को पीड़ित मानवता की सेवा के लिए विश्व के अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान तथा पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं, जिनमें नोबेल पुरस्कार (1979), पद्मश्री (1962), मेडल आफ फ्रीडम (1985) प्रमुख हैं। मदर टेरेसा को जन्म 27 अगस्त, 1910 को यूगोस्लाविया में हुआ था। उनका वास्तविक नाम है- एग्नेस गोनक्शा बोजाक्शिहउ। 


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उनके पिता एक साधारण व्यवसायी थे। एक रोमन कैथोलिक संगठन की वे सक्रिय सदस्या थीं और 12 वर्ष की अल्पायु में ही उनके ह्रदय में विराट करुणा का बीज अंकुरित हो उठा था। 1925 में यूगोस्लाविया के ईसाई मिशनरियों का एक दल सेवाकार्य हेतु भारत आया और यहां की निर्धनता तथा कष्टों के बारे में एक पत्र, सहायतार्थ अपने देश भेजा। इस पत्र को पढ़कर एग्नेस भारत में सेवाकार्य को आतुर हो उठीं और 19 वर्ष की आयु में भारत आ गई। मदर टेरेसा जब भारत आई तो उन्होंने यहां बेसहारा और विकलांग बच्चों तथा सड़क के किनारे पड़े असहाय रोगियों की दयनीय स्थिति को अपनी आंखों से देखा और फिर वे भारत से मुंह मोड़ने का साहस नहीं कर सकीं। वे यहीं रुक गई और जनसेवा का व्रत ले लिया। 


मदर टेरेसा ने भ्रूण हत्या के विरोध में सारे विश्व में अपना रोष दर्शाते हुए अनाथ एवं अवैध संतानों को अपनाकर मातृत्व-सुख प्रदान किया। उन्होंने फुटपाथों पर पड़े हुए रोते-सिसकते रोगी अथवा मरणासन्न असहाय व्यक्तियों को उठाया और अपने सेवा केन्द्रों में उनका उपचार कर स्वस्थ बनाया या कम से कम उनके अन्तिम समय को शांतिपूर्ण बना दिया। दु:खी मानवता की सेवा ही उनके जीवन का व्रत था। उनकी मृत्यु 1997 में हुई थी।

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