एक आश्रम में आधी रात को किसी ने संत का दरवाजा खटखटाया। संत Sant ने दरवाजा खोला तो देखा, सामने उन्हीं का एक शिष्य रुपयों से भरी थैली लिए खड़ा है। शिष्य बोला, ‘‘स्वामीजी, मैं रुपए दान में देना चाहता हूँ।’’ यह सुनकर संत हैरानी से बोले, ‘‘लेकिन यह काम तो सुबह में भी हो सकता था।’’
शिष्य बोला, ‘‘स्वामीजी, आपने ही तो समझाया है कि मन बड़ा चंचल है। यदि शुभ विचार मन में आए तो एक क्षण भी देर मत करो, वह कार्य तत्काल ही कर डालो। लेकिन कभी मन में बुरे विचार आ जाएँ तो वैसा करने पर बार-बार सोचा। मैंने भी यही सोचा कि कहीं सुबह होने तक मेरा मन Mind बदल न जाए, इसी कारण आपके पास अभी ही चला आया।’’
शिष्य की बात सुनकर संत Sant अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने शिष्य को गले से लगाकर कहा, ‘‘यदि हर व्यक्ति इस विचार को पूरी तरह अपना ले तो वह बुराई के रास्ते पर चल ही नहीं सकता, न ही कभी असफल हो सकता है।’’
2 श्रद्धा-भावना की कहानी
संत एकनाथ के आश्रम में एक लड़का रहता था। वह अपने गुरु एकनाथ की सेवा के लिए सदा तत्पर रहता था, लेकिन वह खाने का शौकीन बहुत था, इसलिए उसका नामक पूरणपौड़ा प्रसिद्ध हो गया। एकनाथ जब इस संसार से प्रयाण करने को थे, तब उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाया और कहा, मैं एक ग्रंथ लिख रहा था, अब शायद वह पूर्ण न हो सके। मेरे जाने के बाद उसे पूरणपौड़ा से पूरा करवा लेना। यह सुनकर शिष्यों में हलचल मच गई। उन्होaने कहा, महाराज, आपका बेटा हरि पंडित भी पढ़-लिखकर शास्त्री बन गया है, यह काम उसके जिम्मे क्यों नहीं देते? यह अनपढ़ लड़का boy भला उसे क्या पूरा करेगा?
एकनाथ बोले, हरि मुझे गुरु master के रूप में कम, पिता के रूप में अधिक मानता है। एक गुरु के प्रति जो श्रद्धा-भावना किसी शिष्य के ह्रदय में होनी चाहिए, वह उसमें नहीं है। पूरणपौड़ा गुरु के प्रति श्रद्धा की भावना के रंग में ओत-प्रोत है, इसलिए शास्त्रीय ज्ञान नहीं होने पर भी अपनी श्रद्धा और निष्ठा के कारण वह इस ग्रंथ को पूर्ण करने में समर्थ होगा। तुम लोग चाहो तो पहले हरि को ही यह काम दे दो, परंतु इसे पूरा पूरण पौड़ा ही करेगा।
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