एक बार पहाड़ी नदी पार करने की कोशिश में एक बूढ़े संन्यासी का पाँव फिसल गया। वह नदी की तेज धारा में बहने लगा। उनके शिष्य बदहवास-से उनके पीछे भागने लगे। कुछ दूर जाकर नदी Rive एक झरने में तब्दील होकर गहरी घाटी में गिरने लगी। शिष्यों को लगा कि अब घाटी से गुरु का शव ही बरामद होगा। लेकिन जब वे नीचे पहुँचे तो धीमी पड़ी जल-धार में से निकलकर संन्यासी मुस्कराते हुए चले आ रहे थे।
उन्हें देखकर घबराया हुआ एक शिष्य बोला, ‘‘यह तो चमत्कार है, आपको कुछ नहीं हुआ? आपने खुद को सकुशल कैसे बचाया?’’संत ने कहा, ‘‘खुद को बचाने के लिए क्या करना था, मैं तेज धार को अपने अनुकूल नहीं कर सकता था, इसलिए खुद को ही उसके अनुकूल Compatibility बना लिया। उसके बहाव में खुद को छोड़ दिया। उसके साथ बहता, उछलता, घूमता, गिरता मैं पानी के साथ गया और पानी के ही साथ वापस भी आ गया।’’
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