विश्व प्रसिद्ध व्यक्तित्व:- रवीन्द्रनाथ ठाकुर (भारत) बंगला साहित्य के गौरव

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विश्व प्रसिद्ध व्यक्तित्व:- रवीन्द्रनाथ ठाकुर (भारत) बंगला साहित्य के गौरव



World Famous Personality रवीन्द्रनाथ का जन्म 7 मई, 1861 को कलकत्ता (पं. बंगाल) में देवेन्द्र नाथ ठाकुर के यहां हुआ था। उन्होंने इंग्लैंड जाकर बेकन, गेटे, एंजेलो आदि का अध्ययन किया और शेक्सपियर के ‘मैकबेथ’ का बंगला में अनुवाद भी किया। 1883 में उनका विवाह हुआ तथा पत्नी का नाम मृणालिनी था। उनका व्यक्तित्व प्रकृति-पे्रमी था और उनकी उन्मुक्त वातावरण में शिक्षा पद्धति की कल्पना 1901 में शांतिनिकेतन के रूप में साकार हुई। उन्हीं के सिद्धांतों पर विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना हुई है। मानव संस्कृति के अमर गायक कवीन्द्र रवीन्द्र ने अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भारतीय साहित्य को सम्मान दिला कर देश की प्रतिष्ठा बढ़ाई, जो उनकी महती उपलब्धि है। 


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13 नवम्बर, 1913 को रवीन्द्रनाथ को अपनी काव्य पुस्तक गीतांजलि पर एशिया का प्रथम नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था, जो पूरे देश के लिए गौरव की बात थी। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सर उपाधि दी थी, जो 1919 में उन्होेंने वापिस कर दी। वस्तुत: रवीन्द्रनाथ ठाकुर बंगला के कवि ही नहीं, उत्कृष्ट नाटककार, कथाकार, समालोचक, दार्शनिक, चित्रकार, संगीतकार, अभिनेता सभी कुछ थे और प्रत्येक क्षेत्र में उन्होंने विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया। काव्य रचनाओं में गीतांजलि के अतिरिक्त उनकी सोनारतरी तथा बलाका विशेष प्रसिद्ध हैं।


उन्होंने अनेक उपन्यासों की रचना की जिनमें से कुछ नाम हैं- ‘राजषि’, ‘बहुठाकुरानीर हाट’, ‘नौका डूबी’, ‘चोखेर बाली’, ‘गोरा’, ‘घरे बाइरे’, ‘योगायोग’ और  ‘शेषेर कविता’। उनके नाटकों में ‘विसर्जन’, ‘राजा और रानी’, ‘नरकवास’, ‘चिरकुमार सभा’, ‘प्रायश्चित’, ‘अचलायतन’, ‘रक्त करवी’ और ‘मुक्त धारा’ अत्यन्त लोकप्रिय हुए। रवीन्द्रनाथ का एक और बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने ही बंगला साहित्य में कहानी विधा की प्रतिष्ठा की। उनकी ‘काबुली वाला’, ‘नष्ट नीड़’ और ‘क्षुधित पाषाण’ कहानियां अत्यधिक प्रसिद्ध हुई हैं।


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