1. संत की महानता greatness of saint
एक राजा संत-महात्माओं का बड़ा आदर करता था। एक बार उसके राज्य में किसी सिद्ध संत का आगम हुआ। राजा ने अपने सेनापति को उन्हें ससम्मान दरबार में लाने का आदेश दिया। सेनापति एक सुसज्जित रथ लेकर संत के पास पहुंचा। राजा के आमंत्रण की बात सीधे कहने के स्थान पर सेनापति ने विनम्रता से सिर झुकाकर अभिवादन करने के बाद कहा, ‘‘हमारे महाराज ने प्रणाम भेजा है। यदि आप अपनी चरणरज से उनके आवास को पवित्र कर सकें तो बड़ी कृपा होगी।’’
संत राजमहल में चलने को तैयार हो गए। संत अत्यंत नाटे कद के थे। Short Story उन्हें देखकर सेनापति को यह सोचकर हँसी आ गई कि इस ठिगने व्यक्ति से उनका लंबा-चौड़ा और बलिष्ठ राजा आखिर किस तरह का विचार-विमर्श करना चाहता है? संत सेनापति के हँसने का कारण समझ गए। जब संत ने सेनापति से हँसने का कारण पूछा तो वह बोला, ‘‘आप मुझे क्षम करें। वास्तव में आपके आपके कद पर मुझे हँसी आई, क्योंकि हमारे महाराज बहुत लंबे हैं, उनके साथ बात करने के लिए आपको तख्त पर चढ़ना पड़ेगा।’’
यह सुनकर संत मुस्कराते हुए बोले, ‘‘मैं जमीन पर रहकर ही तुम्हारे महाराज से बात करूँगा। छोटे कद का लाभ यह होगा कि मैं जब भी बात करूँगा, सिर उठाकर करूँगा, लेकिन तुम्हारे महाराज लंबे होने के कारण मुझसे जब भी बात करेंगे, सिर झुकाकर करेंगे।’’ सेनापति को संत की महानता का आभास हो गया कि श्रेष्ठता कद से नहीं सद्विचारों से आती है। विचार यदि उत्तम और ज्ञानयुक्त हो तो व्यक्ति सच्चे अर्थों में महान् बनकर संपूर्ण समाज के लिए प्रणम्य हो जाता है।
2 राजा का अभिमान king's pride
एक बार एक राज्य में भगवान बुद्ध पधारे तो राजा के मंत्री ने कहा, ‘‘महाराज, भगवान बुद्ध का स्वागत करने आप स्वयं चलें।’’ यह सुनकर राजा अकड़कर बोला, ‘‘मैं क्यों जाऊँ, बुद्ध एक भिक्षु हैं। भिक्षु के सामने मेरा इस तरह झुकना उचित नहीं होगा। उन्हें आना होगा तो वह स्वयं चलकर मेरे महल तक आएँगे।’’ विद्वान मंत्री को राजा का यह अभिमान अच्छा नहीं लगा। उसने तत्काल कहा, ‘‘महाराज, क्षमा करें। मैं आपके जैसे छोटे आदमी के साथ काम नहीं कर सकता।’’
इस पर राजा ने कहा, ‘‘मैं और छोटा! मैं तो इतने बड़े साम्राज्य का स्वामी हूँ। Short Story फिर आप मुझे छोटा कैसे कह सकते हैं। मैं बड़ा हूँ, इसी कारण बुद्ध के स्वागत के लिए नहीं जा रहा।’’ मंत्री बोला, ‘‘आप न भूलें कि भगवान बुद्ध भी कभी महान् सम्राट थे। उन्होंने राजसी वैभव त्यागकर भिक्षु का जीवन स्वीकार किया है, इसलिए वह तो आप से ज्यादा श्रेष्ठ हैं।’’ यह सुनकर राजा की आँखें खुल गई। वह दौड़ा हुआ बुद्ध के पास गया और उसने उनसे दीक्षा ग्रहण कर ली।
3. दूध में मलाई cream in milk
एक स्त्री किसी संत से प्रार्थना करती हुई बोली, ‘‘महाराज, आज हमारे घर पधारकर हमें कृतार्थ कीजिए।’’संत उसके यहाँ गए। स्त्री ने उनके लिए एक कटोरी में दूध डाला, लेकिन जब दूध डालते वक्त हाँडी की सारी मलाई कटोरी में गिर गई तो स्त्री के मुँह से बेसाख्ता ‘‘अरे-अरे!’’ निकल पड़ी। फिर भी उसने उसमें शक्कर मिलाकर दूध संत के आगे सरका दिया। संत ज्ञान-उपदेश की बातें करते रहे, मगर उन्होंने दूध नहीं पिया। स्त्री समझती रही कि शायद दूध अभी बहुत गरम है, इसलिए संत महाराज नहीं पी रहे।
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जब चर्चा खत्म हुई तो संत बिना दूध पिए ही चलने लगे। Short Story तब उसे स्त्री ने कहा, ‘‘महाराज, दूध तो पीजिए।’’ संत बोले, ‘‘नहीं, तुमने इसमें मलाई और शक्कर के अलावा एक और चीज भी मिला दी है, इसलिए मैं इस दूध को नहीं पी सकता।’’ स्त्री बोली, ‘‘और क्या मिला दिया है महाराज?’’ संत बोले, ‘‘अरे-अरे! जिस दूध में ‘अरे-अरे!’ मिला हुआ है, मैं उसे नहीं पी सकता।’’
4. गौतमी नाम की एक स्त्री का बेटा मर गया। Short Story वह शोक से व्याकुल होकर रोती हुई महात्मा बुद्ध के पास पहुंची और उनके चरणों में गिरकर बोली, ‘‘किसी तरह मेरे बेटे को जीवित कर दो। कोई ऐसा मंत्र पढ़ दो कि मेरा लाल जी उठे।’’ महात्मा बुद्ध ने उसके साथ सहानुभूति जताते हुए कहा, ‘‘गौतमी, शोक मत करो। मैं तुम्हारे मृत बालक को फिर से जीवित कर दूँगा। लेकिन इसके लिए तुम किसी ऐसे घर से सरसों के कुछ दाने माँग लाओ, जहाँ कभी किसी प्राणी की मृत्यु न हुई हो।’’
गौतमी को इससे कुछ शांति मिली, वह दौड़ते हुए गाँव में पहुँची और ऐसा घर ढूँढ़ने लगी, जहाँ किसी की मृत्यु न हुई हो। बहुत ढूँढ़ने पर भी उसे कोई ऐसा घर नहीं मिला। अंत में वह निराश होकर लौट आई और बुद्ध से बोली, ‘‘प्रभु, ऐसा तो एक भी घर नहीं, जहाँ कोई मरा न हो।’’यह सुनकर बुद्ध बोले, ‘‘गौतमी, अब तुम यह मानकर संतोष करो कि केव तुम्हारे ऊपर ही ऐसी विपत्ति नहीं आई है, संसार में ऐसा ही होता है और ऐसे दु:ख को लोग धैर्यपूर्वक सहते हैं।’’
5. महात्मा की दलील Mahatma's argument
दुनिया से दूर, अपनी ही दुनिया में रहने वाले एक महात्मा के पास एक दिन राजा का दूत पहुंचा। उस समय महात्मा नदी के किनारे बैठे भजन-संध्या कर रहे थे। दूत ने उनसे कहा, ‘‘आपको राजा ने अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। आपको मेरे साथ चलना होगा।’’ महात्मा ने उससे पूछा, ‘‘मैंने सुना है कि राजा के पास कछुए की एक बुहत पुरानी खाल पड़ी है, जिसे उन्होंने अपने संग्रहालय में रखा है।’’
सेवक ने कहा, ‘‘हाँ, बहुत मूल्यवान है वह खाल।’’ महात्मा ने कहा, ‘‘सोचो, अगर वह कछुआ जिंदा होता तो क्या पसंद करता? राजा के संग्रहालय की शोभा बढ़ाना या जहाँ वह पैदा हुआ उस कीचड़ में लोटना।’’ सेवक ने कहा, ‘‘उसे तो कीचड़ में लोटना ही ज्यादा पसंद आता।’’ तब महात्मा ने कहा, ‘‘इसी तरह मैं यहीं अपने घर में रहना अधिक पसंद करता हूँ।Short Story पद पाकर आदमी मन की शांति खो बैठता है, कभी उसे अपना सम्मान खोना पड़ता है तो कभी अपनी इच्छा के विरुद्ध जाना पड़ता है। इसलिए जाकर, सम्राट् से आदरपूर्वक कह देना कि मुझे सम्मान देने के लिए धन्यवाद, लेकिन मैं जहाँ हूँ, जैसा हूँ, ठीक हूँ।’’
6. अनुकूलता compatibility
एक बार पहाड़ी नदी पार करने की कोशिश में एक बूढ़े संन्यासी का पाँव फिसल गया। वह नदी की तेज धारा में बहने लगा। उनके शिष्य बदहवास-से उनके पीछे भागने लगे। कुछ दूर जाकर नदी एक झरने में तब्दील होकर गहरी घाटी में गिरने लगी। शिष्यों को लगा कि अब घाटी से गुरु का शव ही बरामद होगा। लेकिन जब वे नीचे पहुँचे तो धीमी पड़ी जल-धार में से निकलकर संन्यासी मुस्कराते हुए चले आ रहे थे।
उन्हें देखकर घबराया हुआ एक शिष्य बोला, ‘‘यह तो चमत्कार है, आपको कुछ नहीं हुआ? आपने खुद को सकुशल कैसे बचाया?’’ संत ने कहा, ‘‘खुद को बचाने के लिए क्या करना था, मैं तेज धार को अपने अनुकूल नहीं कर सकता था, इसलिए खुद को ही उसके अनुकूल बना लिया। Short Story उसके बहाव में खुद को छोड़ दिया। उसके साथ बहता, उछलता, घूमता, गिरता मैं पानी के साथ गया और पानी के ही साथ वापस भी आ गया।’’
7. मोह बड़ा दु:खरूप attachment great sorrow
एक बार संत कबीरदास जी एक गाँव में गए। वहाँ उन्होंने देखा कि लोग एक वेश्या को गाँव से बाहर निकालना चाहते हैं और वह गाँव छोड़ने के लिए राजी नहीं हो रही है। जब गाँववालों ने उसका घर जलाना चाहा तो कबीर जी ने उन्हें रोका और कहा कि वे लोग धीरज रखें, वह स्वयं चली जाएगी। कबीरदास जी दूसरे दिन सवेरे-सवेरे ही भिक्षापात्र लेकर उस वेश्या के द्वार पर पहुँच गए। एक दिव्य पुरुष को अपने घर के दरवाजे पर भिक्षापात्र लिए देखकर वह अंदर गई और कई पकवान लेकर आई।
कबीरदास जी ने पकवानों की ओर देखा तक नहीं और उससे कहा, ‘‘मैं यहाँ इन पकवानों की भिक्षा लेने नहीं बल्कि तुम्हारा मोहावरण दूर करने के लिए आया हूँ।Short Story तुम्हारे भीतर जगत्-जननी का दिव्य रूप है और उसे तुम्हारी कलुषित कामना ने आच्छादित कर रखा है। मैं उसी कलुषित आवरण की भिक्षा माँगने के लिए आया हूँ। ’’ यह सुनकर उस स्त्री की आँखों से आँसू बहने लगे। बोली, ‘‘बाबा क्या यह इतना आसान है? यह मोहावरण तो मेरे शरीर की चमड़ी की तरह मुझसे चिपक गया है। इस चर्म को हटाने से जो वेदना होगी, वह भला मुझसे कैसे सहन हो सकेगी?’’
कबीरदास जी ने कहा, ‘‘जब तक मुझे मेरी भिक्षा नहीं मिलेगी, मैं यहाँ से नहीं हटूँगा।’’ तब उस स्त्री ने यह विचार करने का निश्चय किया कि मोहावरण को हटाना ही होगा और गाँव को छोड़े बिना वह हट नहीं सकता। उसने अपना निश्चय कबीरदास जी को सुनाया। उसका निश्चय सुनकर उन्हें आत्मसंतोष हुआ और वे मन-ही-मन बोले, ‘‘इस द्वार पर भिक्षा के लिए आकर आज मैंने एक नारी के जगन्माता के रूप में दर्शन किए हैं।’’
8. श्रद्धा-भावना feeling of reverence
संत एकनाथ के आश्रम में एक लड़का रहता था। वह अपने गुरु एकनाथ की सेवा के लिए सदा तत्पर रहता था, लेकिन वह खाने का शौकीन बहुत था, इसलिए उसका नामक ‘पूरणपौड़ा’ प्रसिद्ध हो गया।Short Story एकनाथ जब इस संसार से प्रयाण करने को थे, तब उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाया और कहा, ‘‘मैं एक गं्रथ लिख रहा था, अब शायद वह पूर्ण न हो सके। मेरे जाने के बाद उसे पूरणपौड़ा से पूरा करवा लेना।’’ यह सुनकर शिष्यों में हलचल मच गई। उन्होेंने कहा, ‘‘महाराज, आपका बेटा हरि पंडित भी पढ़-लिखकर शास्त्री बन गया है, यह काम उसके जिम्मे क्यों नहीं देते? यह अनपढ़ लड़का भला उसे क्या पूरा करेगा?’’
एकनाथ बोले, ‘‘हरि मुझे गुरु के रूप में कम, पिता के रूप में अधिक मानता है। एक गुरु के प्रति जो श्रद्धा-भावना किसी शिष्य के ह्रदय में होनी चाहिए, वह उसमें नहीं है। पूरणपौड़ा गुरु के प्रति श्रद्धा की भावना के रंग में ओत-प्रोत है, इसलिए शास्त्रीय ज्ञान नहीं होने पर भी अपनी श्रद्धा और निष्ठा के कारण वह इस ग्रंथ को पूर्ण करने में समर्थ होगा। तुम लोग चाहो तो पहले हरि को ही यह काम दे दो, परंतु इसे पूरा पूरणपौड़ा ही करेगा।’’
9. चंचल मन fickle mind
एक आश्रम में आधी रात को किसी ने संत का दरवाजा खटखटाया। संत ने दरवाजा खोला तो देखा, सामने उन्हीं का एक शिष्य रुपयों से भरी थैली लिए खड़ा है। शिष्य बोला, ‘‘स्वामीजी, मैं रुपए दान में देना चाहता हूँ।’’ यह सुनकर संत हैरानी से बोले, ‘‘लेकिन यह काम तो सुबह में भी हो सकता था।’’
शिष्य बोला, ‘‘स्वामीजी, आपने ही तो समझाया है कि मन बड़ा चंचल है। यदि शुभ विचार मन में आए तो एक क्षण भी देर मत करो, वह कार्य तत्काल ही कर डालो। Short Story लेकिन कभी मन में बुरे विचार आ जाएँ तो वैसा करने पर बार-बार सोचा। मैंने भी यही सोचा कि कहीं सुबह होने तक मेरा मन बदल न जाए, इसी कारण आपके पास अभी ही चला आया।’’ शिष्य की बात सुनकर संत अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने शिष्य को गले से लगाकर कहा, ‘‘यदि हर व्यक्ति इस विचार को पूरी तरह अपना ले तो वह बुराई के रास्ते पर चल ही नहीं सकता, न ही कभी असफल हो सकता है।’’
10. दुर्व्यसनों से छुटकारा get rid of addictions
एक व्यक्ति को शराब और जुए की लत लग गई थी। वह खुद से परेशान रहने लगा। उसके मित्रों ने उसे हिदायत दी कि वह सत्संग में जाए, वहाँ जाने से उसकी यह आदत छूट जाएगी। एक दिन वह किसी संत से मिला। उसने संत को अपनी पूरी रामकथा सुनाई। संत बहुत विद्वान थे। उसकी समस्या सुनकर वे मुस्कराए। वे उसे अपने साथ दूसरे कमरे में ले गए। वहाँ खिड़की से धूप आ रही थी। उन्होेंने उसे खिड़की के पास खड़े होने को कहा। जब वह खिड़की पर खड़ा हुआ तो पिछली दीवार पर उसकी परछाई पड़ रही थी। संत ने उस परछाई का ओर इशारा करते हुए पूछा, ‘‘क्या तुम इस परछाई को लड्डू खिला सकते हो?’’
संत की बात सुनकर युवक चौंकते हुए बोला, ‘‘महाराज, आप यह कैसी बातें कर रहे हैं? भला परछाई लड्डू खा सकती है? यह असंभव है।’’ तब संत ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘वत्स, बस तुम्हारे साथ भी यही दिक्कत है। तुम परछाई को लड्डू खिलाने की कोशिश कर रहे हो। Short Story जिस प्रकार परछाई लड्डू नहीं खा सकती, तुम भी सत्संग में जाकर अपनी लत से छुटकारा नहीं पा सकते। इन व्यसनों को छोड़ने के लिए खुद लड्डू खाना होगा। संकल्प लो और छोड़ दो अपनी लत। इससे मुक्त होने का कोई दूसरा उपाय नहीं।’’
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