आध्यात्मिक कहानी : भगवान शिव की पूजा के लिए शिवलिंग की पूजा करने का प्रावधान है, शिवलिंग के भी कई प्रकार हैं जैसे - स्वयंभू शिवलिंग, नर्मदेश्वर शिवलिंग, जनेउधारी शिवलिंग, पारद शिवलिंग, सोने एवं चांदी के शिवलिंग। इनमें से नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा को सर्वश्रेष्ठ फलदायी माना गया है।
नर्मदेश्वर शिवलिंग कैसे बनते हैं और कहाँ मिलते हैं, इस सवाल के जबाब के लिए यह पौराणिक कथा
बिल्कुल सही है।
पौराणिक काल में एक समय नर्मदा ने कठोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया। ब्रह्मा ने प्रकट होकर नर्मदा से वरदान मांगने को कहा। नर्मदा ने परमपिता ब्रह्माजी से कहा की हे भगवन यदि आप मेरी तपस्या से संतुष्ट हैं और आप प्रसन्न हैं तो मुझे गंगा के समान होने का वरदान दीजिए। नर्मद की बात सुनकर ब्रह्मा जी बोले अगर कोई अन्य देवता भगवान शिव की बराबरी कर ले अथवा कोई अन्य पुरुष भगवान श्रीहरि विष्णु के समान हो जाए। तथा कोई दूसरी नारी पार्वती की समानता कर ले और कोई दूसरी नगरी काशीपुरी की बराबरी कर सके तो कोई दूसरी नदी भी गंगा के समान हो सकती है।
ब्रह्म वाक्य सुनकर नर्मदा काशी चली गइ और वहाँ
पिलपिलातीर्थ में शिवलिंग की स्थापना करके तपस्या करने लगीं। भगवान शिव नर्मद पर
बहुत प्रसन्न हुए और उनके समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा। नर्मदा ने
भगवान शिव से कहा हे भगवन् मुझे आपके चरणकमलों की भक्ति दीजिए.
नर्मदा की इच्छा को जानकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और बोले हे
नर्मदे तुम्हारे तट पर जितने भी पत्थर हैं, वे सब शिवलिंग रूप हो जाएंगे। गंगा में स्नान करने पर शीघ्र ही पाप
का नाश होता है, यमुना
सात दिन के स्नान से और सरस्वती तीन दिन के स्नान से सब पापों का नाश करती हैं
परन्तु तुम्हारे दर्शनमात्र से सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाएगा।
तुमने जिस नर्मदेश्वर शिवलिंग की स्थापना की है, वह पुण्य और मोक्ष को प्रदान करने वाला
होगा. ऐसा कहकर भगवान शिव उसी लिंग में विलीन हो गए। इसलिए ऐसा माना जाता है कि
नर्मदा का हर पत्थर शिव शंकर है। ऐसे ही
प्राकृतिक और स्वयंभू शिवलिंगों में प्रसिद्ध नर्मदेश्वर पवित्र नर्मदा नदी के
किनारे पाया जाने वाला एक विशेष गुणों वाला पत्थर ही नर्मदेश्वर शिवलिंग कहलाता
है।
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