रामभक्ति काव्य
की प्रमुख प्रवृत्तियां Ramabhakti kavya
उत्तरी भारत में स्वामी रामानन्द ने जिस राम-भक्ति लहर का प्रवर्तन किया, उसी के अनुकरण पर भक्तिकालीन साहित्य में राम भक्ति का विकास हुआ। इस शाखा के प्रमुख कवियों तुलसी का नाम अग्रगण्य है।
तुलसी के अतिरिक्त
महाकवि केशव, अग्रदास, नाभादास हृदयराम नया प्राणचन्द चौहान ने इस
शाखा के साहित्य को विकसित करने में सहयोग दिया परन्तु राममक्ति काव्य के कवियों
में तुलसी का स्थान इतना ऊँचा है कि अन्य कवियों का महत्त्व अत्यन्त गौण पड़ जाता
है। तुलसी ही इस शाखा के प्रतिनिधि कवि है। यह एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसमें सम्पूर्ण
रामकाव्य की विशेषताएँ समाहित हो जाती हैं। अतः रामकाव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों
को जानने के लिए तुलसी के साहित्य की ही विशेषताएँ ज्ञातव्य हैं।
1. राम का
स्वरूप-तुलसी ने ब्रा के सगुण और निर्गुण दोनों स्वरूपों की स्थापना करते हुए
उनमें अभेद माना है परन्तु व्यावहारिक क्षेत्र में उनके राम विष्णु के अवतार हैं,
दशरथ सुत हैं-
"सोई दशरथ सुत भगत
हित, कोसलपति भगवान।"
तुलसी के राम
धर्म के उद्धार तथा अधर्म के विनाश के लिए अवतार धारण करते हैं। तुलसी के राम में
शील, सौन्दर्य और शक्ति का
समन्वय है। वे मर्यादा पुरुषोत्तम और लोकरक्षक हैं।
2. भक्ति का
स्वरूप-तुलसीदास ने दास्य भाव से राम की आराधना की है। वे अपने आपको
क्षुद्रातिक्षुद्र तथा भगवान को महान् बतलाते हैं। तुलसी ने अपनी भक्ति को चालक के
समान माना है जिसका एकमात्र अवलम्ब राम है। तुलसीदास ने भक्ति और ज्ञान में अभेद माना
है- अगाडि ज्ञानहि नाहिं कुछ भेदा।" फिर भी वे ज्ञान की कठिन मार्ग तथा भक्ति
को साल और सहज मार्ग स्वीकार करते हैं।
3. लोकमंगल की
भावना-तुलसी साहित्य में राम के लोकरक्षक रूम की स्थापना हुई है। तुलसी के राम
मर्यादा-पुरुषोत्तम तथा आदशों के संस्थापक हैं। राम आदर्श पुत्र और आदर्श राजा
हैं। सीता आदर्श पत्नी है। भरत और लक्ष्मण आदर्श भाई हैं, कौशल्या आदर्श माता है, हनुमान आदर्श सेवक है। इस प्रकार 'रामचरितमानस' में तुलसी ने आदर्श गृहस्थ, आदर्श समाज और
आदर्श राज्य की कल्पना की है। आदर्श की प्रतिष्ठा से ही तुलसी लोकनायक कवि बन गए
हैं और उनका काव्य लोकमंगल की भावना से ओतप्रोत है।
4. समन्वय
भावना-रामकाव्य को अपने व्यापक दृष्टिकोण के कारण समन्वय का काव्य माना जा सकता है
कि तुलसी का मानस तो समन्वय की विराट् चेष्टा है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के
शब्दों में-"उनका सारा काव्य समन्वय की विराट् चेष्टा है। लोक और शास्त्र का
समन्वय, गार्हस्थ्य और वैराग्य का
समन्वय भक्ति और ज्ञान का समन्वय, भाषा और संस्कृत
का समन्वय, निर्गुण और सगुण का
समन्वय, पाण्डित्य और अपाण्डित्य
का समन्वय रामचरितमानस शुरू से आखिर तक समन्वय का काव्य है।"
5. काव्य-शैलियाँ-रामकाव्य
में प्रायः सभी काव्य-शैलियों एवं रूपों के दर्शन होते हैं। तुलसीदास ने अपने युग
की प्रायः सभी काव्य-शैलियों को अपनाया है। वीरगाथाकाल की छप्पय-पद्धति, विद्यापति और सूर की गीतिपद्धति, गंग आदि भाट कवियों की कवित्त-सवैया पद्धति,
जायसी की दोहा-चौपाई-शैली सभी का सफलतापूर्वक
प्रयोग उनकी काव्य रचनाओं में मिलता है।
6. रस-राम काव्य में
नव रसों का प्रयोग है। रामकाव्य का जीवन ही इतना विस्तृत एवं विविध है कि उसमें
प्रायः सभी रसों की अभिव्यक्ति सहज ही हो जाती है। तुलसी के मानस एवं केशव की 'रामचन्द्रिका' में सभी रस देखे जा सकते हैं। दास्य भक्ति की प्रधानता
इसमें स्वाभाविक है
7. भाषा-रामकाव्य की
भाषा प्रधानतः अवधी है। इसमें रामकाव्य का आदर्श ग्रन्य 'रामचरितमानस' लिखा गया है। तुलसीदास ने अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं को अपनाया है। केशव की
रामचन्द्रिका व्रजभाषा में है। इस प्रकार रामकाव्य में दो भाषाएँ माननी चाहिए-अबधी
और ब्रज ।
8. छन्द-रामकाव्य की
रचना दोहा-चौपाई छन्द में हुई है। तुलसी का मानस इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
दोहा-चौपाई प्रबन्धात्मक काव्यों के लिए उत्कृष्ट छन्द है। इसके अतिरिक्त
कुण्डलियाँ, छप्पय, कवित्त, तोमर आदि छन्दों का प्रयोग हुआ है।
9. अलंकार-रामभक्त
कवि विद्वान् पण्डित हैं। उन्होंने अलंकारों की अवहेलना नहीं की। तुलसी के काव्य
में सहज और स्वाभाविक अलंकारों का प्रयोग मिलता है। उत्प्रेक्षा, रूपक और उपमा का प्रयोग मानस में अधिक है। केशव
ने शब्दालंकारों के प्रयोग में पाडित्य-प्रदर्शन किया है।
अन्त में कह सकते
हैं कि रामभक्ति साहित्य के कवियों एवं ग्रन्थों की संख्या यद्यपि स्वल्प
है, फिर भी इस शाखा का साहित्य हिंन्दी के प्रथम
कोटि के साहित्य में रखा जा सकता है और इस शाखा के प्रतिनिधि कवि तुलसी हिन्दी के
सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं।
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