26 जनवरी हमारे राष्ट्र का एक पुनीत पर्व है। असंख्य बलिदानों की पावन स्मृति लेकर यह हमारे सामने उपस्थित होता है।
कितने ही वीर भारतीयों ने देश की बलिवेदी पर अपने प्राणों को हँसते-हँसते चढ़ा दिया। कितनी ही माताओं ने अपनी गोद की शोमा, कितनी ही पत्नियों ने अपनी माँग का सिंदूर और कितनी ही बहनों ने अपना रक्षा बंधन का त्योहार हँसते-हँसते स्वतंत्रता संग्राम को भेंट कर दिया। आज के दिन हम उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने स्वतंत्रता की अग्नि प्रज्वलित करने के लिए अपने खून की आहुति दी थी। गणतंत्र दिवस पर भाषण
आज हम आपको इस पवित्र उत्सव की भूमिका, स्वतंत्रता पूर्व स्थिति, भारत का गणतंत्र राज्य घोषित होना, राष्ट्र का पावन पर्व, दिल्ली में गणतंत्र उपसंहार के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
31 दिसंबर, 1928 को श्री जवाहरलाल नेहरू ने ब्रिटिश शासकों को चुनौती दी थी, “यदि ब्रिटिश सरकार हमें औपनिवेशिक स्वराज देना चाहे तो 31 दिसंबर, 1929 तक दे दे।" परंतु ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों की इस इच्छा की पूर्ण अवहेलना कर दी। सन 1930 में लाहौर में काँग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ। श्री जवाहरलाल नेहरू इसके अध्यक्ष थे। रावी नदी के तट पर बहुत विशाल पंडाल बनाया गया था। उस अधिवेशन में 26 जनवरी, 1930 की रात को श्री नेहरू ने घोषणा की कि "अब हमारी मांग
पूर्ण स्वतंत्रता है और हम स्वतंत्र होकर रहेंगे।"
उस दिन भारत के गाँव-गाँव और नगर-नगर में स्वतंत्रता की शपथ ली गई। जगह-जगह सभाएँ की गई, जुलूस निकाले गए, करोड़ों भारतीयों के कंठों से एक साथ गर्जना हुई, "आज से हमारा लक्ष्य है- पूर्ण स्वाधीनता। जब तक हम पूर्ण स्वाधीन नहीं हो जाएँगे, तब तक निरंतर बलिदान देते रहेंगे।"
ब्रिटिश शासनकाल में 26 जनवरी, 1930 के बाद से लेकर प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाने
लगा। इस दिन स्थान-स्थान पर सभाएँ करके लाहौर में रावी नदी के तट पर की गई पूर्ण स्वाधीनता की प्रतिज्ञा दोहराई जाती थी। इधर भारतीयों ने पूर्ण स्वाधीनता की प्रतिज्ञा की, उधर ब्रिटिश सरकार ने अपना दमन-चक्र ज़ोरदार ढंग से चला दिया। लाठियों से स्वाधीनता-प्रेमियों के सिर फोड़े जाने लगे। कई जगह गोलियों चलाई गई और देशप्रेमियों को भूना जाने लगा। कई नेताओं को जेलों में डाला जाने लगा परंतु भारतीय अपने पच पर अडिग रहे। भयानक-से-भयानक यातनाएँ भी उन्हें अपने पथ से विचलित न कर सकीं। उसी अविचल देशभक्ति का परिणाम है कि आज हम स्वतंत्र हैं। हमारी भाषा, हमारी संस्कृति, हमारा धर्म और हमारी सभ्यता देश के स्वतंत्र वातावरण में साँस ले रहे हैं।
सन 1950 में जब भारतीय संविधान बनकर तैयार हो गया, तब यह विचार किया गया कि किस तिथि से इसे भारतवर्ष में लागू किया जाए। गहन विचार-विमर्श के पश्चात 26 जनवरी ही इसके लिए उपयुक्त तिथि समझी गई। अतः 26 जनवरी, 1950 को भारतवर्ष संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणतंत्र घोषित कर दिया गया। देश का शासन पूर्ण रूप से भारतवासियों के हाथों में आ गया। प्रत्येक नागरिक देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व को अनुभव करने लगा। देश की उन्नति तथा इसकी मान- मर्यादा को प्रत्येक व्यक्ति अपनी उन्नति तथा मान-मर्यादा समझने लगा। भारत के इतिहास में वास्तव में यह दिन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
गणतंत्र दिवस सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। देश की राजधानी दिल्ली में इस दिन की शोमा अनुपम होती है। इस दिन की शोभा देखने के लिए देश के भिन्न-भिन्न राज्यों से लोग उमड़ पड़ते हैं। 26 जनवरी को इंडिया गेट के मैदान में जल, यल और वायु सेनाओं की टुकड़ियाँ राष्ट्रपति को सलामी देती हैं। 31 तोपें दागी जाती हैं। सैनिक वाद्य यंत्र बजाते हैं। राष्ट्रपति अपने भाषण में राष्ट्र को कल्याणकारी संदेश देते हैं। भिन्न-भिन्न प्रांतों की मनोहारी शौकियों प्रस्तुत की जाती हैं। रात को सारी राजधानी विद्युत् दीपों के प्रकाश से जगमगा उठती है। देश के अन्य सभी राज्यों में भी इस प्रकार के पावन समारोहों का आयोजन किया जाता है। खेल, तमाशे, सजावट, सभाएँ, भाषण, रोशनी, कवि-गोष्ठियाँ, बाद-विवाद प्रतियोगिता आदि अनेक प्रकार के आयोजन किए जाते हैं। सरकार तथा जनता दोनों ही इस मंगल पर्व को मनाते हैं। सारे देश में प्रसन्नता और हर्ष की लहर दौड़ जाती है। यह पर्व हमारे राष्ट्रीय गौरव एवं स्वाभिमान का प्रतीक है। इसीलिए इस दिन देश की विभिन्न राज्यों की झांकियों निकाली जाती हैं। ये झांकियों हमें अनेकता में एकता का संदेश देती हैं।
26 जनवरी हमारे राष्ट्र का एक पुनीत पर्व है। असंख्य बलिदानों की पावन स्मृति लेकर यह हमारे सामने उपस्थित होता है। कितने ही वीर भारतीयों ने देश की बलिवेदी पर अपने प्राणों को हँसते-हँसते चढ़ा दिया। कितनी ही माताओं ने अपनी गोद की शोमा, कितनी ही पत्नियों ने अपनी माँग का सिंदूर और कितनी ही बहनों ने अपना रक्षा बंधन का त्योहार हँसते-हँसते स्वतंत्रता संग्राम को भेंट कर दिया। आज के दिन हम उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने स्वतंत्रता की अग्नि प्रज्वलित करने के लिए अपने खून की आहुति दी थी।
वास्तव में, 26 जनवरी एक महिमामयी तिथि है। इसके पीछे भारतीय आत्माओं के त्याग, तपस्या और बलिदान की अमर कहानी निहित है जो सदैव मावी संतान को अमर प्रेरणा देती रहेगी। भारतीय इतिहास में यह दिन स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। प्रत्येक भारतीय का यह परम कर्तव्य है कि वह इस पर्व को उल्लास तथा आनंद के साथ मनाए और अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए प्रवलशील रहे परंतु स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम पारस्परिक भेदभाव को भूलकर सहयोग और एकता में विश्वास करें। यदि हम अज्ञान के अंधकार से निकलकर ज्ञान के प्रकाशपूर्ण मार्ग पर अग्रसर होंगे, तभी हम इस महिमामयी तिथि की मान-मर्यादा दृढ़ रख सकेंगे।
0 टिप्पणियाँ