एक राजा की तीन बहिनें थीं। एक दिन राजा ने तीनों से पूछा कि तुम किसके भाग्य से खाती हो? बड़ी और मझली बहिन ने कहा कि मैं आपके भाग्य से खाती हूँ। छोटी ने उत्तर दिया कि मैं अपने भाग्य से खाती हूँ और ईश्वर के सिवा कोई किसी को भोजन नहीं देता। राजा ने कहा- 'मैं देखूँगा तेरे ईश्वर को !'
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राजा ने अपनी बड़ी बहिन का विवाह एक बड़े महाराज से कर दिया। मझली बहिन का विवाह कन्नौज के राजा के साथ कर दिया। और छोटी के लिये एक गरीब और बूढ़ा किसान से किया। जहाँ इस समय महोबा है, वहाँ पर उस समय तीन-चार झोंपड़ियाँ थीं।
एक झोंपड़ी में एक किसान रहता था। सात बीघा जमीन थी। एक
बैल और एक भैंसे से हल जोतता था। पढ़ा-लिखा न था । घर में अकेला था। उम्र थी 75
साल। इतना ही नहीं,
पेट में जलंधर
रोग भी था। किसान का शरीर काला, बदन पतला और पेट मटकाकी तरह !राजा ने उसी
किसान के साथ छोटी का विवाह कर दिया।
ससुराल पहुँचकर छोटी
ने खाना-पीना सब छोड़ दिया। प्रार्थना करना और रोना- ये ही दो काम थे। एक दिन
सोमवार आया।
व्रत छोटी हमेशा करती थी। वह शिव की उपासना करती थी। प्रतिदिन तीन हजार 'नमः शिवाय' महामन्त्र का जाप करती थी। परंतु सोमवार के दिन व्रत रखकर पचास हजार मन्त्र का जाप करती थी। उस दिन गाँव के लड़कों और लड़कियों को भोजन कराती थी। आज भी सोमवार है। घर में भूँजी भाँग नहीं। भाई ने क्रोध के कारण कुछ दिया नहीं। आज बालक- भोजन कैसे हो? 'बंदउँ बाल रूप सोड़ रामू' कहकर छोटी फूट-फूटकर रोने लगी। उसने कहा-'हे शिव ! हे मालिक ! ईश्वर का पक्ष लेने से एक जीव ने मेरी यह दुर्दशा कर डाली। मुझ राजकुमारी को बूढ़ा, रोगी और गरीब किसान पति मिला! सुना है कि परमात्मा पहाड़ को राई और राई को पहाड़ कर देता है। मुझ राई को पहाड़ कर दो और उस पहाड़ को राई कर दो, तब तो मैं जानूँ। आज पहाड़ और राई में द्वन्द्व छिड़ गया है।
हे अन्तर्यामी शिव! आपको अपने
विरद का विचार नहीं रहता। या तो मेरी दशा सुधारो या मुझे मौत दो। मेरा यह वर्तमान
जीवन असह्य है।'
प्रार्थना
करते-करते मलना मूर्च्छित हो गयी। उसने सपना-सा देखा कि भगवान् शिवजी ने हुक्म
दिया- 'आज रातभर जागना!'
सोमवार की रात थी। दिनभर की भूखी-प्यासी और दिनभर की रोती हुई छोटी रात्रि जागरण के लिये बैठी थी। छोटी अपने हाथ में सूई लिये थी। आलस आया नहीं और उसने सुई अपने शरीर में चुभोई नहीं। अन्तर के आदेश को पूरा करने के लिये आज वह रातभर जागेगी। धीरे-धीरे आधी रात का समय आया। सारा संसार सो रहा था, पर दुःख की मारी छोटी जाग रही थी। पशु, पक्षी और वृक्ष तक सो रहे थे, पर छोटी को सोना भी नसीब न था, सच बात कहने के अपराध पर भाई ने बहिन को नरक में ढकेल दिया था। खुशामद न करने के कारण एक भाई ने अपनी बहिन को वह दुःख दिया कि जो दुश्मन भी दुश्मन को नहीं दे सकता था ।
झोंपड़ी के पास एक आम का वृक्ष था। चाँदनी रात थी । वृक्ष की चोटी पर एक काग
बैठा था और वृक्ष की जड़ पर एक काला साँप बैठा था, दोनों में बातचीत शुरू हुई। छोटी के हृदय में साक्षात् शिवजी प्रकट हुए। मानो
किसी ने भीतर कहा- 'साँप और काग की बातचीत सुनना!'
छोटी ने उत्तर
दिया- 'मैं उनकी भाषा नहीं समझती।'
अन्तर्वाणी ने
कहा-'
उन दोनों की
बातों का अर्थ मैं तुम को बतलाऊँगा।
अगर इस बातचीत के
अनुसार काम करोगी तो तुम्हारा समस्त क्लेश दूर हो जायगा।' छोटी सावधान होकर बैठ गयी। साँप ने काग से जो
बात कही और साँप से काग ने जो बात कही उसका अर्थ भगवान् भोलानाथ ने इस प्रकार से छोटी
को समझाया-
साँप ने काग से
कहा- 'सारा संसार सो रहा है। तुम्हारा गुणगान सुनने
वाला कोई नहीं है। तुमने कई बार हमला करके मुझको जखमी किया है। इसलिये तुम्हारी
पोल खोलता हूँ। अगर कोई इस काग को पकड़ ले और सरसों के तेल में भून डाले, फिर उस तेल को ठंडाकर किसान के शरीर पर मल दे
तो किसान का कायाकल्प हो जाये। उसके समस्त रोग नष्ट हो जायें। उसकी उम्र बीस साल के
जवान जैसी हो जाय। वह इस समय जितना बदसूरत है, उस समय वह उतना ही खूबसूरत हो जाय। इस काग- कल्प से वह किसान राजकुमार जैसा
दीप्तिमान् हो जायगा।'
काग ने साँप से कहा-'सारा संसार सो रहा है। तेरा गुणगान सुनने वाला
कोई नहीं है। तूने हमारे सब अण्डे खा लिये, इसीलिये मैंने हमले किये। मेरी तेरी पुरानी दुश्मनी है, इसलिये आज तेरी पोल खोलता हूँ। अगर कोई गरम
तेल से इस सौंप की धामी भर दें तो यह मरकर बाहर निकल आयेगा। इसके बाद इसके घर को
पाँच हाथ गहरा खुदवा डाले,
तो उसको 'पारस' मिल जायगा। जब वह पारस पा जायगा, तब खुद ही सम्राट् हो जायगा।
सुबह होते ही छोटी
ने चिड़ीमारों को बुलाया। आम के वृक्ष पर जाल लगाया गया और वह
काग पकड़ा गया। गरम तेल में उस काग को भूना गया और वह तेल किसान के अंग पर लगाया
गया। सचमुच काया कल्प हो गया। किसान इतने सुन्दर हो गये कि दूसरे इन्द्र से लगने
लगे। इसके बाद दस मन तेल औटाया गया और सौंप की बामी में भरा गया। जल-भुनकर सौंप
बाहर निकला और मर गया। उस जगह खुदाई की गयी तो एक श्वेत शिवमूर्ति निकली। छोटी ने
स्नान किया और उस पत्थर को ठाकुरजी के पास रख दिया। एक लोहे की कील उस पत्थर से
छुआयी तो वह सोने की कील हो गयी। वही 'पारस'
था।
अब क्या था।
सारा रंग पलट गया। कल जो मजदूर था, आज उसके दरवाजे पर हजारों मजदूर काम करने के लिये खड़े हैं। कल जो झोंपड़ी में
रहता था,
आज वहीं महल
बनवा रहा है। किसान ने कहा- 'मेरे घर में साक्षात् लक्ष्मीजी ने प्रवेश
किया है।'
खुद अपने हाथ से
नगर की नींव रखी। एक साल के अंदर विशाल शहर बस गया, जिसमें एक भी घर कच्चा न था। समस्त नगर में बहादुर क्षत्रिय लोग बसाये गये।
किले में महारानी छोटी और महाराज किसान रहने लगे। सेना भरती की गयी। नगर के उत्तर में
शिव मन्दिर बनाया गया। शारदा देवी और मनियाँ देव के मन्दिर बनाये गये। जंगल में
मंगल हो गया। शहर के बसने का और पारस की प्रातिका यही आदिम इतिहास है। कीरत- सागर
नामक ताल के किनारे पर महात्मा लोगों ने धूनी लगा दी।
छोटी रानी के
हुक्म से सेनापति ने सेना सजायी उरई नरेश माहिल के ५० ग्रामों पर जबरदस्ती कब्जा
कर लिया गया। माहिल प्रति बीघा पाँच रुपया लगान लेता था, मलनाने फी बीघा चार आना लगान कर दिया। पब्लिक
ने कहा-'महारानी का राज्य अटल रहे।' सेनापतियों ने उरई के मैदान में माहिल के
पुत्र राजकुमार उभई को हराया। इसके बाद माहिल गिरफ्तार हुए और छोटी के
सामने लाये गये। छोटी - आज राई को पहाड़ कर दिया गया और पहाड़ को राई कर दिया गया।
मालिक की भुजाएँ बहुत बड़ी हैं। मालिक के खेल बड़े विचित्र हैं।
राखनहार जो चार
भुजा,
तो कहा करिहैं
दो हाथ बिचारे?
क्यों राजन्! छोटी
को भोजन माहिल देता है या ईश्वर? माहिल - ईश्वर ही सबको भोजन देता है। मलना-
तुम तो कहते थे कि मैं तुम्हारे ईश्वर को देखूँगा। सो तुमने
मेरे ईश्वरको
देख लिया या नहीं?
माहिल - देख
लिया। खूब देख लिया।
मलना रानी ने
भाई माहिल की हथकड़ी खुला दी और उनको उरई भेज दिया। इसके बाद महारानी मलना ने बावन
किले फ़तह किये और अपने पुत्र ब्रह्मा का विवाह भारत सम्राट् पृथ्वीराज की लड़की
बेला के साथ किया।
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