Kabir Das ke dohe : संत कबीर दास जी के सुप्रसिद्ध दोहे

Advertisement

6/recent/ticker-posts

Kabir Das ke dohe : संत कबीर दास जी के सुप्रसिद्ध दोहे

 संत कबीर दास ने अपने दोहों के माध्यम से लोगों को बहुत बड़ा संदेश दिया है। Kabir ke dohe बहुत प्रासंगिक है 


इस नीली लाइन पर क्लिक करें और 

कबीर के दोहे सुनीए

बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।

पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥

 

उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।

तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥

 

सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनाई।

धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाई॥


रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय। 

हीरा जनम अमोल है, कोड़ी बदली जाय॥ 

 

दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय।

जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय॥


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। 

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥ 

 

कबीरा ते नर अंध है, गुरु को कहते और। 

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥ 

 

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर। 

आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर॥ 


तिनका कबहुं ना निंदए, जो पांव तले होए।  

कबहुं उड़ अंखियन पड़े, पीर घनेरी होए॥ 

 

गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय। 

बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताय॥ 

 

साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय। 

मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥ 




 माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय। 

एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥ 

 

माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर । 

कर का मन का डा‍रि दे, मन का मनका फेर॥

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ