हास्य-व्यंग्य प्रधान एकांकी अखबारी विज्ञापन का सार

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हास्य-व्यंग्य प्रधान एकांकी अखबारी विज्ञापन का सार



चिरंजीत हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत एक लोकप्रिय एकांकीकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं. चिरंजीत द्वारा रचित एकांकी "अखबारी विज्ञापन' एक हास्य-व्यंग्य प्रधान एकांकी है। इसे प्रहसन भी कहा जा सकता है। इस एकांकी में विज्ञापन बाक्स के नम्बर की छोटी-सी भूल पति-पत्नी के बीच झगड़े व तनाव का कारण बनती है।


मदनमोहन एक प्राईवेट फर्म में 100 रुपये मासिक वेतन पाने वाला तथा निरीह जीने वाला एक सामान्य सा टाइपिस्ट है। वह बेहतर नौकरी पाने के लिए एक अखबार में विज्ञापन देता है और उसे बाक्स नम्बर 3111 मिलता है। उसके विज्ञापन को छपे पूरे सात दिन हो गए हैं। अभी तक कोई उत्तर नहीं आया, जिसका वह अधीरता से इन्तजार कर रहा है। उसकी मानसिक व्याकुलता से वेखवर उसकी कर्कशा पत्नी दुर्गा उसे कटाक्ष करते हुए आटा लाने के लिए कहती है। वह आटा के लिए घर से निकलने लगता है कि पंडित जी आ धमकते हैं। वह उनसे कहता है कि वह जल्दी-जल्दी बतायें उसकी कुण्डली में क्या लिखा है। पण्डित जी बताते हैं कि तुम्हारी जन्मपत्री में दसवें स्थान पर सूर्य बैठा है, जो भाग्यवृद्धि का सूचक है। अतः आप आवेदन लिख कर डालिए।। दोनों की बातें चुपके से दुर्गा सुन रही है। मदनमोहन पण्डित जी को बताता है कि वह तो उसने कर डाला है। पण्डित जी कहते हैं कि आपने बताया था कि "अपने नेशनल पत्रिका' में विज्ञापन दे रखा है। (पत्रा देखते हुए) अवश्य कहीं से उत्तर आएगा। बड़ा शुभ योग है लेकिन सोचता हूँ. .... आप उन्हें छोड़ सकेंगे? मेरा मतलब है?


मदनमोहन उत्तर में कहता है......हाँ, मैं समझ गया आप उन्हें जानते ही हैं मित्र, उनसे मेरा निभाव नहीं हो सकता। अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए मुझे कहीं और पण्डित जी कहते हैं। कि नया सम्बन्ध उसके लिए शुभ होगा। आप देख लीजिए। दुर्गा 'नये सम्बन्ध' का अर्थ विवाह से लगाती है। वह पण्डितजी व अपने पति दोनों पर बरसती है 'पण्डित जी, कहां जा रहे हो? इनके नये संबंध का मुहूर्त तो बताते जाइये। आप मुझसे ही दान-दक्षिणा लेकर मेरा ही सत्यानाश करने की आपको यह सूझी क्या ?' पण्डित जी बताते हैं कि वह कुछ का कुछ समझ बैठी है। मदनमोहन जी तो नई नौकरी के लिए प्रयास कर रहे हैं। उसका पति भी उसे समझाता है कि मैं पहली नौकरी छोड़कर कोई अधिक वेतन वाली नौकरी ढूंढ रहा हूँ। इसी उद्देश्य से अखबार में विज्ञापन दिया है। लेकिन उसे दोनों की बातों पर विश्वास नहीं होता। वह बिफर पड़ती है.... चुप रहो जी। यों झूठ बोलकर तुम मेरी आँखों में धूल नहीं झोंक सकते। मैं दूसरी औरतों की तरह पति के पाँव की जूती नहीं कि जी चाहा तो पहन ली, जी चाहा तो उतारकर फेंक दी। मैं पूछती हूं, तुम्हें दूसरी शादी का शौक चर्राया कैसे? मुझमें आखिर क्या दोष है? लूली हूँ, लँगड़ी हूँ, अन्धी हूँ, कानी हूँ, बदसूरत हूँ.....? पण्डित जी यह सुन घबरा जाते हैं। और वहाँ से कूच करते हैं। मदनमोहन भी उसे समझाता है कि वह अपनी ही कहती जाएगी या उसकी भी कुछ सुनेगी? लेकिन वह गुस्से में बोलती है। चली जाती है-नहीं, अब में कुछ नहीं सुनना चाहती। अब तो देखूँगी कि कैसे तुम सौ रुपल्ली में दो बीवियों का खर्च चलाते हो? विज्जामल-गिज्जामल की फर्म में महीना भर लोहा कूटने के सौ रुपल्ली ही तो मिलते हैं न?


मदनमोहन उसे 16 तारीख को छपे विज्ञापन को देखने की सलाह देता है। वह पढ़ते हुए कहती है-"नौकरी चाहिए एक योग्य तथा अनुभवी टाइपिस्ट को जो शॉर्टहैण्ड भी जानता है। आजकल एक प्रसिद्ध फर्म में काम कर रहा है अधिक वेतन के लिए परिवर्तन चाहता है। पत्र-व्यवहार के लिए पता-बॉक्स नं. 3111, मार्फत नेशनल पत्रिका है। पर यह कैसे मान लूँ कि यह विज्ञापन तुम्हारा दिया हुआ है? इसमें तुम्हारा नाम तो है नहीं, केवल बॉक्स नं. 3111 दे रखा है ।


मदनमोहन उसे समझाता है कि इस प्रकार के विज्ञापनों के सन्दर्भ में बाक्स नम्बर ही दिया जाता है। परन्तु वह यह मानने को तैयार नहीं कि यह नम्बर उसी का है। मदनमोहन उसे फाईल से चिट्टी निकाल कर देता है जिसमें नम्बर भी है। वह विट्टी को ध्यान से पढ़ती है और पाती है। कि उसके बॉक्स का नम्बर 311 न कि 3111 जवाब में मदनमोहन कहता है कि उसने कोई छल नहीं किया। मात्र नम्बर ध्यान से नहीं पढ़ा। किन्तु दुर्गा उसकी किसी बात पर विश्वास करने को तैयार नहीं। वह पति को साफ-साफ कहती है।-' "देखो तुम अपने पाप पर पर्दा डालने के लिए कोई और झूठ गढ़ने की कोशिश न करो। सच बोलने से क्यों डरते हो? साहस से कह दो कि मैं तुम्हें पसन्द नहीं, इसलिए किसी ऐसी बीबी की तलाश में हो, जो मुझसे अधिक सुन्दर हो, अधिक पढ़ी-लिखी हो, फैशनेविल हो और बहुत दहेज लाकर तुम्हें मालामाल करने में समर्थ हो।"


जगन्नाथ उसे समझाता है कि उसने शादी का कोई विज्ञापन नहीं दिया। उसे बेकार वहम हो गया है। वह प्रभु से प्रार्थना करता है। हे भगवान, कैसे अपनी पत्नी को यकीन दिलाऊँ। इतने में डाकिया एक बड़ा लिफाफा लेकर आता है। मदनमोहन खुश है कि भगवान ने उसकी सुन ली। उसे विश्वास है कि उसके विज्ञापन के उत्तर में जो पत्र आए होंगे सच इस लिफाफे में बंद होंगे। वह लिफाफा अपनी पत्नी को दे देता है। खोलने पर उसमें से पांच कन्याओं के फोटो सहित पत्र निकलते हैं। वह चौक कर देखता है और हैरान रह जाता है। पत्नी एक-एक हुए पत्र पढ़ती चली जाती है, साथ ही उसे कटाक्ष भी करती जाती है। एक पत्र में उसका बाक्स में 311 भी लिखा है। दुर्गा पढ़ती है कि – “जरूरत है चार सौ रुपये मासिक वेतन पाने वाले संभ्रांत कुल के एक सुयोग्य तीस वर्षीय वर के लिए सुन्दर पढ़ी-लिखी कुंवारी कन्या की।"


मदनमोहन सिर पकड़ बैठ जाता है कि अखिर माजरा क्या है? उसने नौकरी के लिए विज्ञापन दिया और उत्तर में शादी के प्रस्ताव आ रहे हैं। ऊपर से पत्नी उसे धोखेबाज व निर्लज्ज कह कर फटकारती है। दोनों के बीच में बहुत झगड़ा होता है। इतने में 'नेशनल पत्रिका' का विज्ञापन-प्रबंधक आ कर उन्हें बताता है कि टाइपिस्ट की भूल से बाक्स नम्बर में गड़बड़ हो गई। और इनके पास किसी दूसरे विज्ञापन की चिट्टियाँ आ गई। यह सुनकर मदनमोहन भगवान का लाख-लाख शुक्र अदा करता है।


प्रबन्धक दुर्गा को समझाता है कि मदनमोहन का बॉक्स नं. 3111 है, जबकि इन्हें पत्र भेजे गए हैं बॉक्स नं. 311 के। मदनमोहन एक और प्रबंधक का धन्यवाद करता है, और दूसरी ओर ऐसा नालायक टाइपिस्ट रखने के लिए उसकी भर्त्सना करता है। वह कहता है कि उसकी गलती H-26 से उसके घर में न जाने क्या अनर्थ हो जाता। जवाब में प्रबंधक उसे दिलासा देते हुए कहता है कि मैंने उस टाइपिस्ट को बरखास्त कर दिया है। यदि आप चाहें तो दो सौ रुपये मासिक पर हमारे कार्यालय में कार्य कर सकते हैं। यह प्रस्ताव पाकर व पत्नी का विश्वास पुनः प्राप्त कर मदनमोहन खुशी से पड़ता है. 


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