पुत्रदा एकादशी व्रत, पूजन और कथा

Advertisement

6/recent/ticker-posts

पुत्रदा एकादशी व्रत, पूजन और कथा

 



श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पुत्र देने वाली होने के कारण पुत्रदा एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत रखना चाहिए। रात्रि में भगवान की मूर्ति के पास ही सोने का विधान है।


 अगले दिन वेद पाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। इस व्रत को रखने वाले निःसन्तान व्यक्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होती है।



कथा : प्राचीन काल में महिष्मति नगरी में महीजित नामक राजा राज्य करता था। राजा धर्मात्मा, शान्तिप्रिय तथा दानी होने पर भी निःसन्तान था। राजा ने एक बार ऋषियों को बुलाकर संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। परमज्ञानी लोमेश ऋषि ने बताया कि आपने पिछले जन्म में सावन की एकादशी को अपने तालाब से प्यासी गाय को पानी नहीं पीने दिया था।



 उसी के परिणाम स्वरूप आप अभी तक निःसन्तान हैं। आप श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नियमपूर्वक व्रत रखिये तथा रात्रि जागरण कीजिए। इससे तुम्हें पुत्र अवश्य प्राप्त होगा। ऋषि की आज्ञानुसार राजा रानी ने एकादशी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न प्राप्त हुआ।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ