श्रावण मास के 7 व्रत एवं त्यौहार

Advertisement

6/recent/ticker-posts

श्रावण मास के 7 व्रत एवं त्यौहार

 



शिवजी के व्रत 

श्रावण मास के समस्त सोमवार को यह व्रत रखा जाता है । इस व्रत में शिव, पार्वती, गणेश व नंदी की पूजा की जाती है। जल, दूध, दही, चीनी, गई, मधु, पंचामृत, कलावा व  वस्त्र, यज्ञोपवित, चंदन, रोली, चावल, फूल, बिल्वपत्र, दूर्वा, विजया, धतूरा, कमलगट्टा, पान, सुपारी, लोंग, इलाइची, पंचमेवा, धूप-दीप, दक्षिणा सहित भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। पूजन के बाद दिन में केवल एक बार भोजन करने का विधान है। इन दिनों श्रावण मास के महात्म्य  की कथा भी सुननी चाहिए।अध्यात्मिक कहानी,A Spiritual Story,


श्रावण मास में जितने भी मंगलवार आएँ, उनमें रखे गये खत गौरी व्रत कहलाते हैं। यह व्रत मंगलवार को रखे जाने के कारण मंगला गौरी व्रत कहलाते हैं।

विधान : प्रात: नहा-धोकर एक चौकी पर सफेद लाल कपड़ा बिछाना चाहिए। सफेद कपड़े पर चावल से नौ ग्रह बनाते हैं तथा लाल कपड़े पर गेहूं से षोडश माता बनाते हैं। चौकी के एक तरफ चावल व फूल रखकर गणेश जी की स्थापना की जाती है। दूसरी तरफ गेहूँ रखकर कलश स्थापित करते हैं। कलश में जल रखते हैं। आटा का चौमुखी दीपक बनाकर 16-16 तार की चार बत्तियाँ डालकर जलाते हैं। सबसे पहले गणेशजी का पूजन करते हैं। पूजन करके जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढ़ाते हैं। इसके बाद कलश का पूजन गणेश पूजन की तरह किया जाता है। फिर नौ ग्रह तथा षोडश माता की पूजा करके सारा चढ़ावा ब्राह्मण को दे देते हैं। इसके बाद मिट्टी की मंगला गौरी बनाकर उन्हें जल, दूध, दही आदि से स्नान करवा कर वस्त्र पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दूर, मेंहदी व काजल लगाते हैं। सोलह प्रकार के फूल पत्ते माला चढ़ाते हैं। पाँच प्रकार के सोलह-सोलह मेवा, सुपारी, लौंग, मेंहदी, शीशा, कंघी व चूड़ियाँ चढ़ाते हैं। कथा सुनकर सासुजी के पाँव छूकर एक समय एक अन्न खाने का विधान है। अगले दिन मंगला गौरी का विसर्जन करने के बाद भोजन करते हैं।

उद्यापन विधि : श्रावण माह के मंगलवारों का व्रत करो के बाद इसका उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन में खाना वर्जित है । मेंहदी लगाकर पूजा करनी चाहिए। पूजा चार ब्राह्मणों से करानी चाहिए। एक चौकी के चार कोनों पर केले के चार थम्ब लगाकर मण्डप पर एक ओढ़नी बाँधनी चाहिए। कलश पर कटोरी रखकर उसमें मंगलागौरी की स्थापना करनी चाहिए। साड़ी, नथ व सुहाग की सभी वस्तुएँ रखनी चाहिएँ। हवन के उपरान्त कथा सुनकर आरती करनी चाहिए। चाँदी के बर्तन में आटे के सोलह लड्डू, रुपया व साड़ी सासू जी को देकर उनके पैर छूने चाहिएँ। पूजा कराने वाले पंडितों को भी भोजन कराकर धोती व अंगोछा देना चाहिए।

अगले दिन सोलह ब्राह्मणों को जोड़े सहित भोजन कराकर धोती, अंगोछा तथा ब्राह्मणियों को, सुहाग-पिटारी देनी चाहिए । सुहाग पिटारी में सुहाग का सामान व साड़ी होती है। इतना सब करने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए।


कामिका एकादशी

श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामिका एकादशी कहते हैं। इसे पवित्र एकादशी भी कहते हैं। प्रातः काल स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को गंगाजल स्नान कराकर भोग लगाते हैं। आचमन के पश्चात् धूप, दीप चन्दन आदि से आरती करनी चाहिए।

कथा : प्राचीन काल में किसी गाँव में एक ठाकुर रह था। एक दिन ठाकुर की एक ब्राह्मण से कहा सुनी हो गई तकरार बढ़ने पर ब्राह्मण ठाकुर के हाथों मारा गया। ब्राह्मण के मर जाने से ठाकुर को ब्रह्महत्या का पाप सताने लगा। ठाकुर ने गाँव के ब्राह्मणों से ब्रह्महत्या के पाप से छूटने का उपाय पूछा। ब्राह्मणों ने उसे कामिका एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। ठाकुर ने वैसा ही किया। रात्रि में वह जब भगवान की प्रतिमा के पास शयन कर रहा था तो स्वप्न में भगवान ने दर्शन देकर उसे ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त कर दिया। ठाकुर ब्राह्मण की तेरहवीं करके ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होकर विष्णु लोक चला गया।

श्रावण शुक्ला तीज (तीजों का त्यौहार)


यह त्यौहार श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को उत्तरी भारत के सब नगरों में विशेष रूप से मनाया जाता है। घर-घर में झूले पड़ते हैं। नारियों के समूह गा-गाकर झूला झूलती है। सावन में सुन्दर से सुन्दर पकवान, गुँजिया, घेवर, फैनी आदि बेटियों को सिंधारा भेजा जाता है। बायना छूकर सासू को भेजा या दिया जाता है। इस तीज पर मेंहदी लगाने का विशेष महत्त्व है। स्त्रियाँ हाथों पर मेंहदी से भिन्न-भिन्न प्रकार के बेल-बूटे बनाती हैं। तीजों पर मेंहदी रचाने की कलात्मक विधियाँ परम्परा से स्त्री समाज में चली आ रही हैं। स्त्रियाँ पैरों में आलता भी लगाती हैं जो सुहाग का चिह्न माना जाता है।

इस तीज पर निम्न बातों को त्यागने का विधान है - 1. पति से छल कपट, 2. झूठ बोलना एवं दुर्व्यवहार, 3. परनिन्दा । कहते हैं कि इस दिन गौरा विरहाग्नि में तपकर शिव से मिली थीं। इस दिन राजस्थान में राजपूत लाल रंग के कपड़े पहनते हैं। माता पार्वती की सवारी निकाली जाती है। राजा सूरजमल के शासन काल में इस दिन कुछ पठान कुछ स्त्रियों का अपहरण करके ले गये थे, जिन्हें राजा सूरजमल ने छुड़वाकर अपना बलिदान दिया था। उसी दिन से यहाँ मल्लयुद्ध का रिवाज शुरू हो गया।

नाग पंचमी

श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी नाग पंचमी के नाम से विख्यात है। इस दिन नागों का पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करके साँपों को दूध पिलाया जाता है। गरूड़ पुराण में ऐसा सुझाव दिया गया है कि नागपंचमी के दिन घर के दोनों बगल में नाग की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाए। ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं। अर्थात् शेषनाग आदि सर्पराजाओं का पूजन पंचमी को होना चाहिए।


कथा : प्राचीन दन्त कथाओं में अनेक कथाएँ प्रचलित है। उनमें से एक कथा इस प्रकार से है-किसी राज्य में एक किसान रहता था। किसान के दो पुत्र व एक पुत्री थी। एक दिन हल चलाते समय साँप के तीन बच्चे कुचलकर मर गये। नागिन पहले तो विलाप करती रही फिर सन्तान के हत्यारे से बदला लेने के लिए चल दी। रात्रि में नागिन ने किसान, उसकी पत्नी व दोनों लड़कों को डस लिया। अगले दिन नागिन किसान की पुत्री को इसने के लिए पहुँची तो किसान की पुत्री ने नागिन के सामने दूध से भरा कटोरा रखा और हाथ जोड़कर क्षमा माँगने लगी। नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को जीवित कर दिया। उस दिन श्रावण शुक्ला पंचमी थी। तब से नागों के प्रकोप से बचने के लिए इस दिन नागों की पूजा की जाती है।

पुत्रदा एकादशी


श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पुत्र देने वाली होने के कारण पुत्रदा एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत रखना चाहिए। रात्रि में भगवान की मूर्ति के पास ही सोने का विधान है। अगले दिन वेद पाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। इस व्रत को रखने वाले निःसन्तान व्यक्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होती है।

कथा : प्राचीन काल में महिष्मति नगरी में महीजित नामक राजा राज्य करता था। राजा धर्मात्मा, शान्तिप्रिय तथा दानी होने पर भी निःसन्तान था। राजा ने एक बार ऋषियों को बुलाकर संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। परमज्ञानी लोमेश ऋषि ने बताया कि आपने पिछले जन्म में सावन की एकादशी को अपने तालाब से प्यासी गाय को पानी नहीं पीने दिया था। उसी के परिणाम स्वरूप आप अभी तक निःसन्तान हैं। आप श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नियमपूर्वक व्रत रखिये तथा रात्रि जागरण कीजिए। इससे तुम्हें पुत्र अवश्य प्राप्त होगा। ऋषि की आज्ञानुसार राजा रानी ने एकादशी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न प्राप्त हुआ।

रक्षा-बन्धन


हिन्दुओं के चार प्रसिद्ध त्यौहारों में से रक्षा बन्धन का
त्यौहार एक है। यह श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह मुख्यतया भाई-बहन के स्नेह का त्यौहार है। इस दिन बहन-भाई के हाथ पर राखी बाँधती है और माथे पर तिलक लगाती है। भाई प्रतिज्ञा करता है कि यथाशक्ति मैं अपनी बहन की रक्षा करूँगा ।

एक बार भगवान कृष्ण के हाथ में चोट लगने से रक्त बहने लगा था तो द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उनके हाथ में बाँध दी थी। इसी बन्धन से ऋणी श्रीकृष्ण ने दुःशासन द्वारा चीर हरण के समय द्रौपदी की लाज बचायी थी।

मध्य कालीन इतिहास में एक ऐसी घटना मिलती है जिसमें चित्तौड़ की रानी कर्मवती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूँ के पास राखी भेजकर अपना भाई बनाया था। हुमायूँ ने राखी की इज्जत की और उसके सम्मान की रक्षा के लिए गुजरात के बादशाह से युद्ध किया।

कथा : प्राचीन समय में एक बार देवताओं और दानवों में बारह वर्ष तक घोर संग्राम चला। इस संग्राम में राक्षसों की जीत हुई और देवता हार गए। दैत्य राज ने तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया तथा अपने को भगवान घोषित कर दिया। दैन्धों के अत्याचारों से देवताओं के राजा इन्द्र ने देवताओं के गुरु बृहस्पति से विचार-विमर्श किया और रक्षा विधान करने को कहा।

श्रावण पूर्णिमा को प्रातः काल रक्षा का विधान सम्पन्न किया गया।


येन बद्धोबली राजा दानवेन्द्रा महाबलः । तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥ उक्त मंत्रोचार से गुरु बृहस्पति ने श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा विधान किया सहधर्मिणी इंद्राणी के साथ वृत्र संहारक इंद्र ने बृहस्पति की वाणी का अक्षरश  पालन किया। इंद्राणी ने ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा स्वासि्तवाचन कराकर इंद्र के दाएं हाथ में रक्षा सूत्र को बांध दिया । इसी सूत्र के बल पर इंद्र ने दानवों पर विजय प्राप्त की।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ