Chopta plus news. इस संसार में हजारों-लाखों लोग पैदा होते हैं और मर जाते हैं। उनका नाम तक भी नहीं जानते। कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका नाम भुला पाना संभव नहीं हैं. वे मर कर भी अमर हो जाते हैं। उनका नाम लोग बहत ही आदर और श्रद्धा से लेते हैं। ऐसे ही नवयुवकों में नाम आता है शहीद भगतसिंह का शहीद भगतसिंह चाहते तो वे भी सुख और आराम का जीवन जी सकते थे। पर उन्होंने तो देश के लिए कुर्बानी देकर भारत के नौजवानों के सामने जो उदाहरण पेश किया है, वह कम नौजवान ही पेश कर पाते हैं।
जन्म और बाल्यकाल- शहीद भगतसिंह का जन्म सन 1907 में पंजाब में जालंधर के निकट खटकड कलाँ नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम सरदार कृष्ण सिंह था। इनकी दादी ने इसका नाम रखा था भागाँवाला। उनका कहना था- यह बच्चा बड़ा भाग्यशाली होगा।
शहीद भगतसिंह बचपन से ही बहुत निर्भीक थे। वे बचपन में वीरों के खेल खेला करते थे। दो दल बना आपस में लड़ाई लड़ना, और तीर कमान चलाना उनके खेल थे। देश प्रेम की भावना उनमें कूट कूट कर भरी थी। एक बार उन्होंने अपने पिता की बन्दूक ली और उसे ले जाकर अपने खेत में गाड़ दिया। उनके पिता ने जब उनसे पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया है? वे बोले एक बन्दूक से कई बन्दूकें होंगी। मैं इन बन्दूकों को अपने साथियों में बाटँूगा। हम सब मिलकर अंग्रेजों से लड़ेंगे और भारत माता को आजाद कराएँगे।
शिक्षा- भगतसिंह ने डी.ए.वी. कालेज लौहार से हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी और उसके बाद नेशनल कालेज से बी.ए. किया। सन 1919 ई में जनरल डायर ने अमृतसर में जलियाँवाला बाग में गोलियाँ चलाईं। इन से हजारों निरपराध और निहत्थे लोग मारे गए थे। उस समय भगतसिंह की आयु 11 वर्ष थी। उस समय भगतसिंह ने बाग की मिटृी को सिर से छूकर प्रतिज्ञा की थी कि वह देश को स्वतन्त्र कराने के लिए जीवन भर संघर्ष करें.
नवजवान भारत सभा- सरदार भगतसिंह ने नवजवान भारत सभा की स्थापना की। क्रांतिकारी और चन्द्रषेखर आजाद, वटुकेश्वर दत्त, जितेन्द्र नाथ आदि इसके सदस्य बन गए। ये लोग हथियार बनाते थे। पुलिस द्वारा पकड़े जाने के भय से वे एक स्थान पर नहीं रहते थे। वे जगह जगह मारे मारे फिरते थे। कुछ दिन भगतसिंह अपने साथियों के साथ आगरे के नूरी दरवाजे में भी रहे थे। उन्हीं के नाम पर इस दरवाजे का नाम भगतसिंह द्वार रखा गया है।
वीरगति- सरदार भगतसिंह और उसके साथियों ने लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला लेने के लिए पुलिस कप्तान सांडर्स को दिन दहाड़े गोलियों से भून डाला। उन्होंने नवयुवकों में जोश पैदा करने और अंग्रेजों के प्रति बैठे भय को दूर करने के लिए असेम्बली हाल पर बम फेंका। वे चाहते तो भाग सकते थे, पर उन्होंने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। सरकार ने उन्हें मौत की सजा दी और उन्हें और उनके दो साथियों राजगुरू और सुखेदव को फाँसी दी.
इस प्रकार सरदार भगतसिंह मरकर भी अमर हो गए। उन्होंने भारत के नवयुवकों के सामने देश सेवा की मिसाल पैदा कर दी।
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