Choptaplus news.भारत india एक विशाल गाँवों का देश है। हर एक बड़े नगर के साथ सैकड़ों गाँव लगे हैं। भारत की 72 प्रतिशत जनता आज भी गाँवों में निवास, करती है। गाँवों के लोग ही सम्पूर्ण देशवासियों के लिए अन्न, वस्त्र, फल, दूध, चीनी और सब्जियाँ आदि वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। इस कारण इस देश में गाँवों का विशेष महत्त्व है। देश की sampuran समृद्धि तथा विकास गाँवों के विकास पर आधारित है। गाँवों की उन्नति में ही देश की उन्नति है।
ग्राम्य जीवन की विशेषताएँ-
ग्राम के निवासी परिश्रमी, सच्चे होते हैं। छल-कपट से वे कोसों दूर होते हैं। फैशन और चमक-दमक उन्हें अच्छी नहीं लगती। वे प्रकृति के खुले वातावरण में विचरण करते हैं। गाँवों की प्राकृतिक छटा भी बड़ी मनोरम होती है। यहाँ की शस्य श्यामला भूमि विभिन्न ऋतुओं में नया-नया रूप धारण करती है। गाँवों का वातावरण सदैव शान्त और कोलाहल-रहित होता है।
ग्रामीण समस्याएँ-
यह आश्चर्य की बात है कि गाँव शान्ति और स्वास्थ्य के केन्द्र हैं किन्तु ग्राम के निवासी ग्राम छोड़कर शहरों की ओर दौड़ रहे हैं। यह कैसी विडम्बना है कि संसार को अन्न-वस्त्र देने वाला किसान स्वयं भूखा और नंगा रहता है। गाँवों की अनेक समस्याएँ हैं जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं-
(अ) ऋण की समस्या-गाँव के लोग खेती –बाड़ी करते हैं। खेती के लिए आधुनिक यन्त्रों, उत्तम बीज, खाद के लिए किसान के पास धन नहीं होता है। सरकार ने सहकारी बैंक, भूमि विकास बैंक आदि की स्थापना कर किसान की इस कठिनाई को दूर करने का प्रयास किया है किन्तु गाँव का किसान अशिक्षित है, वह अज्ञान के कारण इस सुविधा से लाभ नहीं उठा पा रहा है।
(ब) अशिक्षा-अधिकतर किसान अशिक्षित हैं। किसानों के बच्चे अब भी कम ही पढ़ते हैं और जो पढ़ते हैं, वे खेती नहीं करना चाहते। नौकरी की तलाश में भटकते फिरते हैं। अशिक्षा के कारण किसान खेती के नये-नये तरीकों, यन्त्रों तथा फसलों के विषय में जानकारी प्राप्त नहीं कर पाता है और सरकार से मिलने वाली सुविधाओं से भी वंचित रह जाता है।
(स) कुरीतियाँ-किसान अनेक कुरीतियों, कुप्रभावों और रूढ़ियों में फँसा है। विज्ञान के इस युग में भी वह छुआछूत, बाल-विवाह और जादू-टोना के अन्धविश्वास से मुक्ति नहीं पा सका है।
(द) आपसी कलह-गाँव के लोग छोटी-छोटी बातों और एक-एक इंच जमीन के लिए आपस में लड़ते-झगड़ते हैं। जरा-सी बात को सम्मान का प्रश्न बना लेते हैं, मार-पीट हो जाती है, सिर फूट जाते हैं, मृत्यु तक हो जाती है। मुकदमेबाजी हो जाती है, गाढ़ी कमाई का हजारों रुपया मुकदमों पर खर्च हो जाता है। इससे बड़ी हानि और क्या हो सकती है?
चिकित्सा की समस्या-गाँवों में स्वास्थ्य और चिकित्सा की व्यवस्था का अभाव है। अस्पताल एवं अच्छे डॉक्टर गाँव में उपलब्ध नहीं हैं। यदि कोई बीमार होता है तो वह चिकित्सा के अभाव में प्राणों से हाथ धो लेता है। जिनके पास धन तथा अन्य साधन होते हैं, वह शहरों की ओर दौड़ते हैं। परन्तु बहुत बार ऐसा होता है कि शहर के अस्पताल तक पहुँचते-पहुँचते रोगी जीवन से हाथ धो बैठता है।
निर्धनता-
निर्धनता तथा बेकारी गाँव की प्रमुख समस्याएँ हैं। धन के अभाव में ग्रामवासी पंखा, फ्रिज, कूलर जैसी आधुनिक सुखदायक वस्तुओं का उपयोग नहीं कर पाते हैं। गर्मी-सर्दी आदि उन्हें खूब सताती है। विलास की सामग्री तो दूर, जीवन की अत्यन्त आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति भी वे नहीं कर पाते हैं।
अन्य समस्याएँ-उपर्युक्त के अतिरिक्त गाँव में पेयजल, बिजली, यातायात के साधनों आदि की अनेक समस्याएँ हैं जिनके समाधान के बिना गाँव के निवासी सुख का अनुभव नहीं कर पाते हैं। गाँव के विकास के अभाव में राष्ट्र का विकास असम्भव है।
समाधान के सुझाव-
गाँवों की उन्नति और विकास के लिए सरकार को चाहिए कि इन समस्याओं का शीघ्र समाधान किया जाये। प्रत्येक ग्राम में शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, मनोरंजन और आवागमन की सुविधाएँ उपलब्ध करायी जायें। कृषि की उन्नति और उत्पादन में वृद्धि के लिए कृषि सम्बन्धी आधुनिकतम उपकरणों से किसान को परिचित कराया जाय, सिंचाई के साधनों का विस्तार किया जाये, अच्छी खाद, उन्नत बीज तथा यन्त्रों की प्राप्ति के लिए किसान को ब्याज की सस्ती दरों पर ऋण प्राप्त कराया जाये, गाँवों में कुटीर उद्योगों का विकास किया जाये और लघु उद्योगों की स्थापना की जाये तो निश्चित ही ग्रामीणों का जीवनस्तर ऊँचा उठेगा। ग्रामों का विकास होगा।
उपसंहार-
हमारी सरकार एवं समाज का कर्तव्य है कि गाँवों की इन समस्याओं के समाधान हेतु प्रयत्नशील हो और गाँवों के विकास में अपना पूरा सहयोग दे। गाँवों की उन्नति पर ही देश की उन्नति निर्भर है।
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