Chopta plus । महारानी सती दादी गोशाला कुम्हारिया में आयोजित श्रीमद् भागवत भक्ति ज्ञान गंगा महायज्ञ के छटे दिन कथावाचक पंडित बलराम शास्त्री ने रुक्मणी विवाह का प्रसंग के बारे में बताया। इस अवसर पर बाल कलाकारों द्वारा निकाली गई सुन्दर झांकियों ने सभी का मन मोह लिया, श्रद्धालुओं ने विवाह के मंगल गीत गाए।
यह जानकारी देते हुए पंडित राम तीर्थ शर्मा ने बताया की छठे दिन के कथा प्रसंग में कृष्ण रुक्मणी विवाह धूमधाम से मनाया गया. इस मोके पर राजेश बैनीवाल, सविन धेतरवाल राम नाथ न्यौल, रविन्द्र बैनीवाल ने सपरिवार बतौर मुख्य यजमान भागवत पूजन किया। उन्होंने बताया की स्व. मनीराम न्यौल, स्व. नेकीराम न्यौल, स्व. देई राम न्यौल, स्व सुल्तान न्यौल के सुपुत्रौं ने गौ माता की सेवा में 51000 रुपए समर्पित किये । कथा वाचक बलराम शास्त्री ने कहा कि रुक्मणी विदर्भ देश के राजा भीष्म की पुत्री और साक्षात लक्ष्मी जी का अवतार थी। रुक्मणी ने जब देवर्षि नारद के मुख से श्रीकृष्ण के रूप, सौंदर्य एवं गुणों की प्रशंसा सुनी तो उसने मन ही मन श्रीकृष्ण से विवाह करने का निश्चय किया।
रास पंच अध्याय का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि महारास में पांच अध्याय है। उनमें गाए जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण है। जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है, वह भव पार हो जाता है। उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है। कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कालयवन का वध, उद्धव गोपी संवाद, उद्धव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना व रुकमणी विवाह के प्रसंग का संगीतमय भावपूर्ण पाठ किया गया। भारी संख्या में भक्तगण दर्शन के लिए शामिल हुए। उन्होंने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया। महारास लीला द्वारा ही जीवात्मा परमात्मा का ही मिलन हुआ।
उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने 16 हजार कन्याओं से विवाह कर उनके साथ सुखमय जीवन बिताया। भगवान श्रीकृष्ण रुकमणी के विवाह की झांकी ने सभी को खूब आनंदित किया। कथा स्थल पर रुक्मिणी विवाह के आयोजन ने श्रद्घालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। श्रीकृष्ण रुक्मिणी की वरमाला पर जमकर फूलों की बरसात हुई। कथा वाचक ने कहा कि जीव परमात्मा का अंश है, इसलिए जीव के अंदर अपारशक्ति रहती है। यदि कोई कमी रहती है, वह मात्र संकल्प की होती है। संकल्प व कपट रहित होने से प्रभु उसे निश्चित रूप से पूरा करेंगे।
रुक्मणी विवाह महोत्सव प्रसंग पर उन्होंने कहा कि रुक्मिणी के भाई रुक्मण ने उनका विवाह शिशुपाल के साथ सुनिश्चित किया था, लेकिन रुक्मिणी ने संकल्प लिया था कि वह शिशुपाल को नहीं केवल गोपाल को पति के रूप में वरण करेंगे। उन्होंने कहा शिशुपाल असत्य मार्गी है। द्वारिकाधीश भगवान श्री कृष्ण सत्य मार्गी है। इसलिए वो असत्य को नहीं सत्य को अपनाएंगी। अंत भगवान श्रीद्वारकाधीशजी ने रुक्मणी के सत्य संकल्प को पूर्ण किया। उन्हें पत्नी के रूप में वरण करके प्रधान पटरानी का स्थान दिया।
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