युवा जनसंख्या के मामले में भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा भंडार है, फिर भी भारतीय नियोक्ता कुशल मानव बल की जबरदस्त किल्लत से जूझ रहे हैं। कारण रोजगार के लिए आवश्यक विशेषज्ञता की कमी। श्रम ब्यूरो की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में औपचारिक रूप से कुशल कार्यबल का वर्तमान आकार केवल 2 प्रतिशत है। इसके अलावा पारंपरिक शिक्षा प्राप्त करने वाले युवाओं के बड़े वर्ग की रोजगार संबंधी योग्यता की चुनौती भी है।
भारतीय शिक्षा व्यवस्था शानदार मस्तिष्कों को जन्म देती रही है, लेकिन रोजगार विशेष के लिए जरूरी कौशल की उसमें कमी है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से निकल रही प्रतिभा और रोजगार योग्य कौशल की संभावना एवं मानक के मामले में उसकी अनुकूलता के बीच बड़ा अंतर है।
अंग्रेजी बोलने वाली जनसंख्या के इस वर्ग में राष्ट्र तथा पूरी दुनिया की कौशल संबंधी जरूरत पूरी करने की क्षमता है। जरूरत है तो सटीक एवं पर्याप्त कौशल विकास तथा प्रशिक्षण की, जो इस ताकत को तकनीकी रूप से कुशल मानव बल के सबसे बड़े स्रोत में बदल सकते हैं।
सरकार द्वारा आरंभ किए गए स्किल इंडिया मिशन का लक्ष्य कौशल प्रदान करते हुए रोज़गार के लिए कुशल कार्य बल तैयार कर इस समस्या का समाधान उपलब्ध कराना है। मिशन का लक्ष्य 2022 तक 40 करोड़ से अधिक लोगों को कौशल प्रदान करना तथा उनकी पसंद के कौशलों का प्रशिक्षण देते हुए उनकी रोजगार संबंधी योग्यता को बढ़ाना है।
समावेशी वृद्धि के लिए सभी स्तरों पर कुशल मानव संसाधन अनिवार्य है। कौशल विकास को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता। इसे कौशल प्रशिक्षण को एक ही समय में शिक्षा तथा रोजगार से जोड़ने की अटूट प्रक्रिया होना पड़ेगा। सरकारी एजेंसियाँ और व्यवस्था अकेले यह काम पूरा नहीं कर सकते। कौशल प्रदान करने की प्रक्रिया में निजी क्षेत्र, गैर सरकारी संगठनों, कौशल प्रशिक्षण के अनुभव वाले शिक्षण संस्थानों को जुटना पड़ेगा। सभी वर्गों को समान महत्त्व दिए जाने की आवश्यकता है।
युवाओं को कौशल प्रदान करने के लिए शिक्षा का व्यवसायीकरण बेहद महत्त्वपूर्ण है। उसके साथ ही समाज के अन्य वर्गों जैसे महिलाओं, हाशिए पर पड़े लोगों, आदिवासियों आदि को ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता है, जो उनकी विविध एवं विशिष्ट जरूरतों के अनुसार हों। हाशिए पर पड़े अधिकतर वर्गों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने में निरक्षरता एक समस्या हो सकती है, लेकिन महिलाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने में पारिवारिक मसलों और सामाजिक बंधनों से भी जूझना पड़ सकता है। किसी भी कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए इन तथ्यों को ध्यान में रखने की ज़रूरत है।
भारत पहले ही उच्च आर्थिक वृद्धि की राह पर चलना आरंभ कर चुका है। इस गति को बढ़ाने के लिए हमें ऐसे कौशल के उन्नयन पर ध्यान देने की जरूरत है, जो वैश्विक आर्थिक परिदृश्य के अनुसार प्रासंगिक हैं। कौशल प्रशिक्षण की सुविधाओं का विस्तार ही एकमात्र चुनौती नहीं है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर स्पर्धा करने योग्य बनने के लिए कौशल की गुणवत्ता बढ़ाना भी एक चुनौती ही है।
राष्ट्रीय कौशल विकास एवं उद्यमशीलता नीति 2015 गति के साथ, मानक के अनुरूप एवं सतत रूप से व्यापक स्तर पर कौशल प्रदान करने की चुनौती से निपटने का प्रस्ताव करती है। उसका लक्ष्य कौशल प्रदान करने के लिए देश में चल रही सभी गतिविधियों को एक सर्वोच्च रूपरेखा प्रदान करना है। वह कौशल प्रदान करने की प्रक्रिया का मानकीकरण करने और उसे राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर माँग के केंद्रों से जोड़ने का प्रयास भी करती है।
प्रयास के साथ कौशल में वृधि करने से सफलता मिलती है। सरकार के हाल के प्रयासों के कारण कौशल विकास के कार्यक्रम ने ‘आंदोलन’ का रूप धर लिया है। सरकार के इन प्रयासों के फल मिलने में कुछ समय लग सकता है, किंतु भविष्य में ‘कुशल भारत’ देश को प्रसन्न, स्वस्थ एवं संपन्न अर्थात् ‘कौशल भारत’ होने की दिशा में ले जाएगा और इस तरह कुशल भारत, कौशल भारत को नारा चरितार्थ हो जाएगा।
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