कैसे हुई शेषनाग की उत्पत्ति?

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कैसे हुई शेषनाग की उत्पत्ति?

 



हिन्दी कहानी, Hindi Stories हिन्दू धर्म में केवल देवी-देवता ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षियों को भी विशेष स्थान प्राप्त है, जिनकी लोग, पूजा-अर्चना करते हैं। कई पशु-पक्षी, देवी-देवताओं का सहयोग करते हैं और साथ ही उनका पूजन भी लोगों द्वारा किया जाता है। उदाहरणार्थ:- नंदी, भगवान शिव का वाहन हैं। इसी कड़ी में शामिल हैं नाग, जिनकी, देवता के रूप में पूजा भी की जाती है। धर्म ग्रंथों में पांच प्रमुख नाग देवताओं का उल्लेख मिलता है, जिसमें शेषनाग, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक व पिंगल शामिल हैं। नाग, भगवान शिव के गले में भी माला के रूप में वास करते हैं, इसलिए हिन्दू धर्म में नागों को पूजनीय माना गया है। 


हिन्दू धर्म की मान्यतानुसार, नाग देवताओं की पूजा से हर प्रकार का दोष दूर होता है। सभी नागों में शेषनाग का प्रमुख स्थान है। कहते हैं कि भगवान विष्णु, क्षीरसागर में शेषनाग के आसन पर ही निवास करते हैं। यह भी कहा जाता है कि सृष्टि का भार, शेष नाग के फन पर टिका हुआ है। नागों की उत्पत्ति से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। तो चलिए जानते हैं शेषनाग की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में...


कैसे हुई शेषनाग की उत्पत्ति?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, दक्ष प्रजापति की कद्रू व विनता नाम की दो पुत्रियां थीं, जिनका विवाह, आगे चलकर ऋषि कश्यप से हुआ। देवी कद्रू ने ऋषि कश्यप से 1000 पुत्रों का वरदान मांगा। जिसके बाद 1000 अण्डों की उत्पत्ति हुई। देवी कद्रू के वरदान के कारण ही नागों का जन्म हुआ था, इसलिए उनको, ‘नाग माता’ के नाम से भी जाना जाता है। उनके सभी पुत्रों में सबसे पराक्रमी पुत्र, शेषनाग था। भगवान विष्णु की कृपा होने के कारण, शेषनाग की बराबरी, अन्य कोई भी नाग नहीं कर सकता है। माना जाता है कि शेषनाग को भगवान से वरदान प्राप्त है कि सृष्टि के नष्ट होने पर भी उनका विनाश नहीं होगा, इसलिए उनके नाम के आगे ‘शेष’ लगा है।


टिका है सृष्टि का भार 

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, शेषनाग को जब मालूम हुआ कि उनकी मां और भाइयों ने देवी विनता के साथ छल किया है, तो वे, गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने लगे, जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उनको वरदान देते हुए कहा कि, “तुम्हारी बुद्धि स्थिर रहेगी। पृथ्वी निरंतर हिलती-डुलती रहेगी, इसलिए उसको स्थिर करने के लिए अपने फन पर धारण करो।” इस वरदान के कारण, शेषनाग ने सृष्टि को अपने फन पर टिका लिया।


शेषनाग के अवतार

शेषनाग के बल, पराक्रम और अवतारों का उल्लेख विभिन्न पुराणों में देखने को मिलता है। पुराणों के अनुसार, शेषनाग के चार अवतार माने जाते हैं -:

1 लक्ष्मण जी: त्रेता युग में शेषनाग ने लक्ष्मण जी का रूप धरा था।

2 बलराम जी: द्वापर युग में शेषनाग ने बलराम जी का अवतार लिया था।

3 महर्षि पतंजलि और रामजुनाचार्य जी: विष्णुपुराण और पद्म पुराण के अनुसार, शेषनाग ने कलियुग में दो अवतार लेकर जन्म लिया है। पहला, महर्षि पतञ्जलि का अवतार और दूसरा रामानुजाचार्य जी का अवतार।

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