हरियाणा के वित मंत्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं में पेड़-पौधों को बहुत पवित्र माना गया है। तदनुसार, सीता अशोक, कृष्ण वट वृक्ष, कृष्ण कदम्ब, बड़, पीपल, नीम, शमी, देसी आम, वरुण, बेल पत्र आदि जैसे सभी पवित्र वृ़क्ष किसी न किसी क्षेत्र से जुड़े हैं।
हरियाणा में अब हर माह पीले कार्ड बनाए जाएंगे। इसके लिए सरकार ने प्रक्रिया को आसान कर दिया है। इसके लिए लोगों को धक्के नहीं खाने पड़ेंगे। ऑटोमेटिक तरीके से ही यह कार्ड बन जाएंगे। इसके साथ ही पूरे प्रदेश में राशन का वितरण का ई-वेइंग मशीनों से वितरण किया जाएगा। अब तक राज्य के 7 जिलों में 4341 ई-वेइंग मशीनों के माध्यम से आवश्यक वस्तुओं का वितरण शुरू किया जा रहा है.
बता दें कि इससे पहले 10 साल में एक बार पीले कार्ड बनाए जाते थे। आवेदक अब ऑनलाइन जाकर विभागीय वेबसाइट या अंत्योदय सरल प्लेटफॉर्म पर पीपीपी संख्या का उपयोग करके अपना हरा राशन कार्ड डाउनलोड कर सकता है। 1.80 लाख रुपये तक की वार्षिक आय वाले परिवारों के लिए नए पीले कार्ड बनाने की प्रक्रिया परिवार पहचान पत्र से जोड़कर ऑटोमेटिक कर दी गई है। गौर हो कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत लाभार्थी परिवारों की संख्या दिसंबर, 2022 से पहले 26 लाख परिवारों से बढ़कर 31.59 लाख परिवारों तक पहुंच गई है।
पर्यावरण और वन क्षेत्र को 657 करोड़ रुपये आवंटित
हरियाणा के वित मंत्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं में पेड़-पौधों को बहुत पवित्र माना गया है। तदनुसार, सीता अशोक, कृष्ण वट वृक्ष, कृष्ण कदम्ब, बड़, पीपल, नीम, शमी, देसी आम, वरुण, बेल पत्र आदि जैसे सभी पवित्र वृ़क्ष किसी न किसी क्षेत्र से जुड़े हैं। वर्ष 2023-24 में, प्रत्येक जिले में लगभग पांच से 10 एकड़ क्षेत्र के जंगल में एक स्थान पर इन वृक्षों के रोपण के माध्यम से अमृत वन विकसित करने का प्रस्तावित हैं और अगले पांच वर्षों तक उनकी देखभाल की जाएगी, जब तक कि वे उचित वन के रूप में विकसित न हो जाएं। शिवधाम सहित सार्वजनिक स्थानों पर नीम, बड़ व पीपल आदि प्रजातियों के वृक्षारोपण से छायादार वृक्ष लगाने का प्रस्ताव है।
वित मंत्री ने कहा कि स्थानीय प्रथाओं और मान्यताओं के अनुसार गांव बणी के रूप में संरक्षित प्राकृतिक वनस्पति के खण्ड जैव-विविधता से समृद्ध हैं और ग्रामीण बस्तियों के पास कई पौधों की प्रजातियों के उत्पति-स्थल के रूप में काम करते हैं। हालांकि जनसंख्या वृद्धि और विकास गतिविधियों में वृद्धि के साथ, कई बणियां अब विलुप्त होने के कगार पर हैं। वर्ष 2023-24 में प्रत्येक जिले में जहां भी सम्भव हो, 10 बणियों तक के संरक्षण और कायाकल्प के लिए ’हरियंका बणी पुनर्वास’ नामक एक नई योजना शुरू करने का प्रस्ताव है। ऐसी कुल 200 गांव बणियां विकसित की जाएंगी, जो गांवों को अपनी स्थानीय पारिस्थितिकी को संरक्षित करने के लिए दीर्घकालिक पर्यावरणीय लाभ और सहायता प्रदान करेंगी।
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