एक व्यक्ति अपने परिवार, रिश्तेदार, मित्र, मोहल्ला के निवासी, अपनी फैक्ट्री के कार्यकर्ताओं से अति दुःखी होकर समाधान हेतु अपने गुरु के पास पहुंचा और अपनी पीड़ा गुरुदेव को बताते हुए बोला- "मेरे कर्मचारी, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे और मेर आसपास के सभी लोग बेहद स्वार्थी हैं। कोई भी सही नहीं है, क्या करूं गुरुदेव?"
उस व्यक्ति की वेदना को समझ गुरुजी उसकी समस्या को भली-भांति समझ गए।मुस्कान के साथ उन्होंने कहा-" पुत्र, नि:संदेह तुम्हारी समस्या अति गंभीर है। समय रहते इसका समाधान आवश्यक है। तुम आज रात आश्रम में ही रहो। मैं रात्रि में मंथन करूंगा और सुबह समाधान बताऊंगा।"
उस व्यक्ति को अपने गुरु पर अटूट विश्वास था। उसने आश्रम में रात्रिविश्राम की बात स्वीकार ली और आश्रम के निवासियों के पास जा पहुंचा।भोर की पूजा-अर्चना के पश्चात अपने अन्य शिष्यों की समस्याओं को निबटा कर गुरुजी ने अंत में उस व्यक्ति को अपने पास बुलाया।
एक रात आश्रम में बिताने के अनुभव को भी वह व्यक्ति अपने गुरु को बताने से स्वय को रोक न सका और बोला-" गुरुदेव, आपके आश्रम में भी स्वार्थियों ने अपना डेरा जमा रखा है।हर कोई आपसे कुछ न कुछ चाहकर ही यहां रुका है।"
गुरुदेव ने उसकी हर बात को गंभीरता से सुना और अंत में कहा-" मैं एक कहानी सुना रहा हूं, उसे गंभीरता से सुनना। इस कहानी में ही तुम्हारी समस्या का समाधान छिपा है।एक गाँव में एक विशेष कमरा था जिसमे 1 हजार आईने लगे थे । एक छोटी लड़की उस कमरे में गई और खेलने लगी। उसने देखा 1 हजार बच्चे उसके साथ खेल रहे हैं और वो उन बच्चों के प्रतिबिंब के रहकर खुश रहने लगी। जैसे ही वो अपने हाथ से ताली बजाती सभी बच्चे उसके साथ ताली बजाते। उसने सोचा यह दुनियां की सबसे अच्छी जगह है और यहां वह बार बार आना चाहेगी।
बच्ची के प्रस्थान के पश्चात थोड़ी देर बाद इसी जगह पर एक उदास आदमी कहीं से आया। उसने अपने चारों तरफ हजारों दु:ख से भरे चेहरे देखे। वह बहुत दु:खी हुआ। उसने हाथ उठा कर सभी को धक्का लगाकर हटाना चाहा तो उसने देखा हजारों हाथ उसे धक्का मार रहे है ।उसने कहा यह दुनियां की सबसे खराब जगह है वह यहां दोबारा कभी नहीं आएगा और उसने वो जगह छोड़ दी ।
शिक्षा। ठीक इसी तरह यह दुनिया एक कमरा है जिसमें हजारों शीशे लगे हैं। जो कुछ भी हमारे अंदर भरा होता है वो ही प्रकृति हमें लौटा देती है। संसार हमें अपने मन के अनुरूप ही दिखता है इसलिए अपने मन और दिल को साफ़ रखें, यक़ीनन तब यह दुनिया आपके लिए स्वर्ग की तरह अनुभव होगी। संसार को सुधारने की आकांक्षा रखने वालों के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है कि हम स्वयं में सुधार करें , संसार अपने आप सुधर जाएगा.
शिवभक्त की सच्ची आस्था--- भगवान शिव की महिमा अपरंपार है. शिव जी को भोले भंडारी भी कहा जाता है. भगवान शिव अपने सच्चे भक्तों के कष्टों को हर लेते हैं. भगवान शिव के ऐसे ही सच्चे भक्त का प्रसंग..
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प्रसंग तब का है जब यातायात के साधन ज्यादा नहीं होते थे. अगर कोई किसी तीर्थ स्थल पर जाता था तो पता नहीं होता था कि वापिस घर लौट भी पाएगा या नहीं.
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भगवान शिव का एक भक्त बहुत कठिनाइयों के बाद केदारनाथ धाम पहुँचा. जब वह वहाँ पहुँचा तो मंदिर के पूजारी जी मंदिर के कपाट बंद कर चुके थे.
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उस ने पुजारी जी से बहुत विनती की मैं बहुत समय और कठिनाइयाँ सह कर महीनों बाद यहाँ पहुँचा हूँ. आप कृपया मुझे दर्शन करने दे.
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पुजारी जी ने बहुत विनम्रता से बोला कि इस मंदिर का नियम है कि इसके कपाट छ: महीने खुलते हैं और छ : महीने बंद रहते हैं. अगर एक बार कपाट बंद हो गए तो छ: माह बाद ही खुलेगे.
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अब आप को छ: मास बाद ही आना पड़ेगा. यहाँ पर जीवन बहुत कठिन है क्योंकि जहाँ बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है. आप जहाँ नहीं रह सकते. इतना कह कर पुजारी जी वहाँ से चले गए.
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भगवान शिव का भक्त उनका नाम स्मरण करने लगा. प्रभु आप तो जानते हैं कि मैं कितनी श्रद्धा भावना से यहाँ पहुँचा हूँ. रास्ते में आने वाली कठिनाइयों के बाद भी मेरा मन विचलित नहीं हुआ था क्योंकि मेरे मन में आप के दर्शन की लालसा थी.
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उनके आंखों से अश्रु धारा वह रही थी. उसे भूख और प्यास भी लगी थी.
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कुछ समय पश्चात वहाँ पर एक साधू बाबा आए. उन्होंने उसका हालचाल पूछा.
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शिव भक्त ने अपनी सारी व्यथा उनको सुना दी. साधू बाबा ने उसे पीने को पानी और खाने को भोजन दिया. उसे हौसला दिया कि मुझे विश्वास है कि कल मंदिर के कपाट अवश्य खुलेंगे.
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साधू बाबा से बात करते - करते कब शिव भक्त को नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला.
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सुबह जब सूर्य के प्रकाश से उसकी नींद खुली तो क्या देखता है कि पूजारी जी पूरी मंडली के साथ मंदिर के कपाट खोल रहे थे.
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वह पूजारी जी के पास गया और कहने लगा कि आप तो कहते थे कि कपाट छ: मास बाद खुलेंगे.
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पंडित जी को उस भक्त का स्मरण आया कि इसने मुझ से कपाट खोलने की विनती की थी. पंडित जी ने कहा मैं तो छ: मास के बाद ही आया हूँ.
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फिर शिव भक्त ने पंडित जी के जाने के बाद एक साधू बाबा से मिलने का पूरा प्रसंग सुनाया.
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पूरा वृतांत सुनकर पूजारी जी स्तब्ध थे. कोई छ: मास तक बिना किसी साधन के इस ठंड में कैसे जीवित रह सकता है ?
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पूजारी जी उस भक्त के चरणों में गिर गए. वह कहने लगे कि कितने बर्ष बीत गए मंदिर में सेवा करते. लेकिन कभी प्रभु के दर्शन नहीं कर पाया. लेकिन तुम्हारी आस्था सच्ची थी.
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तुम्हारी करूण पुकार सुनकर भगवान शिव ना केवल स्वयं तुम्हे भोजन और पानी दे कर गए बल्कि भोले नाथ ने छ: मास के काल खंड को योग माया से एक रात्रि में समाप्त कर दिया.
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सच ही कहते हैं कि ईश्वर की भक्ति इतनी सच्ची आस्था से करो. अगर कष्ट तुम पर हो फ्रिक ईश्वर को ही भक्त को कष्ट से कैसे उबारना है.
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ऊँ नमः शिवाय.
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