अकाल मृत्यु, पितृदोष और प्रेतबाधा से मुक्ति के लिए यहां करें पिंडदान,

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अकाल मृत्यु, पितृदोष और प्रेतबाधा से मुक्ति के लिए यहां करें पिंडदान,

पितृदोष और प्रेतबाधा से मिलती है मुक्ति 

गया में हर दिन हजारों हिंदू लोग अपने पुरखों की मुक्ति के लिए पिंडदान करते है और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. महात्मा बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया में हर रोज हजारों पिंडदान करने वाले आते है और विभिन्न पिंडवेदियों पर पिंडदान कर पितरों की मोक्ष प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं. 



पिंडदानियों की भीड़ पिंडवेदियों के अतिरिक्त बुद्धभूमि पर भी देखने को मिल रही है. बोधगया की भूमि पर हिंदू और बौद्ध धर्मावलंबी एक ही छत के नीचे ना केवल तथागत की प्रार्थना कर रहे हैं बल्कि वहीं भगवान विष्णु की भी पूजा अर्चना कर रहे है.


महात्मा बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया के धर्मारण्य में अनोखा संगम देखने को मिल रहा है. एक तरफ जहां बुद्धं शरणं गच्छामि के स्वर गूंजते हैं, वहीं दूसरी तरफ पिंडवेदियों पर मोक्ष के मंत्रों का उच्चारण होता है. कहा जाता है सिद्धार्थ गौतम 6 साल तक यहीं तपस्या कर रहे थे लेकिन बाद में बोधगया के महाबोधी मंदिर स्थित पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था. पूर्वजों को मोक्ष दिलवाने के लिए इस जगह को सबसे अच्छा माना जाता है.  ऐसे तो कई वेदियों पर आकर पिंडदान करते हैं.लेकिन वे धर्मारण्य वेदी पर पिंडदान करना नहीं भूलते. माना जाता  है कि इस वेदी पर पिंडदान के बाद ही पितरों को मोक्ष मिलता है


पितृ दोष और प्रेतबाधा से मुक्ति प्राप्त होती है. मान्यता है कि कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों की लड़ाई के बाद महाराज युधिष्ठिर ने यहीं आकर पिंडदान कर अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति की थी. धर्मारण्य वेदी की मान्यता है कि कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध होने के बाद स्वयं भगवान कृष्ण यहां पांडवों को लेकर आए थे और पितृयज्ञ करवाया था. हिंदू संस्कारों में पंचतीर्थ वेदी में धर्मारण्य वेदी की गणना होती है. 



महाभारत युद्ध के दौरान मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर यज्ञ करवाया था और पिंडदान भी किया था.


धर्मारण्य वेदी पर पिंडदान के कर्मकांड को पूर्ण कर पिंड सामग्री को अष्टकमल आकार के धर्मारण्य यज्ञकूप में श्रद्धालू विसर्जित करते है. कई पिंडदानी अरहट कूप में त्रिपिंडी श्राद्ध के बाद प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए नारियल छोड़कर अपनी आस्था को पूरा करते हैं. धर्मारण्य के पुरोहित सुरेंद्र पांडे और छोटे नारायण पांडे ने बताया कि धर्मारण्य वेदी पर पिंडदान करने से बेवक्त मृत्यु का डर , पितृदोष से मुक्ति तथा घर में प्रेतबाधा से भी शांति मिलती है. उन्होंने बताया कि पूर्वज जो मृत्यु के बाद प्रेतयोनि में चले जाते हैं तथा अपने ही घर में लोगों को परेशान करने लगते हैं उनका यहां पिंडदान हो जाने से उन्हें शांति मिल जाती है और उन्हें मोक्ष भी मिल जाता है.

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