सर्दी अपनी चरम सीमा पर है, इस वक्त किसानों को भी अपनी फसलों को बचाने की चिंता सताने लगी है। कड़ाके की सर्दी के कारण फसलों पर पाला पड़ने की आंशका बढ़ गई है, जिससे रबी की फसलों को काफी नुकसान पहुंच सकता है। किसान चाहते हैं कि वे पाले से किसी भी तरह अपनी आलू, अरहर, चना, सरसों, तोरिया, बागवानी फसलें, गेहूं, जौ आदि को बचाना मुस्किल हो गया है.
पाले से प्रभावित पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित पानी सर्वप्रथम अंतरकोशिकीय स्थान पर इकट्ठा हो जाता है। इस तरह कोशिकाओं में निर्जलीकरण की अवस्था बन जाती है। दूसरी ओर अंतरकोशिकीय स्थान में एकत्र जल जमकर ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है, जिससे इसके आयतन बढ़ने से आसपास की कोशिकाओं पर दबाव पड़ता है। यह दबाव अधिक होने पर कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। इस प्रकार कोमल टहनियां पाले से नष्ट हो जाती हैं।
पाला पड़ने के लक्षण
प्रायः पाला पड़ने की आशंका जनवरी मे अधिक रहती है। जब आसमान साफ हो, हवा न चल रही हो और तापमान कम हो जाये तब पाला पड़ने की आशंका बढ़ जाती है। दिन के समय सूर्य की गर्मी से पृथ्वी गर्म हो जाती है तथा पृथ्वी से यह गर्मी विकिरण द्वारा वातावरण में स्थानातंरित हो जाती है। इसलिए रात्रि में जमीन का तापमान गिर जाता है, क्योंकि पृथ्वी को गर्मी तो नहीं मिलती और इसमें मौजूद गर्मी विकिरण द्वारा नष्ट हो जाती है। तापमान कई बार 0 डिग्री सेल्सियस या इससे भी कम हो जाता है। ऐसी अवस्था में ओस की बूंदें जम जाती हैं। इस अवस्था को हम पाला कहते हैं।
इसमें वायुमंडल में तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से कम हो जाता है। इसके साथ ही वायुमंडल में नमी ज्यादा होने की वजह से ओस बर्फ के रूप में बदल जाती है। पाले की यह अवस्था सबसे ज्यादा हानि पहुंचाती है। यदि पाला अधिक देर तक रहे, तो पौधे मर भी सकते हैं।
खेतों की सिंचाई करके पाला से बचाव जब भी पाला पड़ने की आशंका हो या मौसम विभाग द्वारा पाले की चेतावनी दी गई हो तो फसल में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिये। इससे तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
इस प्रकार हम फसल, नर्सरी तथा छोटे फल वृक्षों को पाले से होने वाले नुकसान से बहुत ही आसान एवं कम खर्चीले तरीकों द्वारा बचा सकते हैं। बारानी फसल में जब पाला पड़ने की आशकां हो तो पाले की आशंका वाले दिन फसल पर व्यावसायिक गधंक के तेजाब का 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करें। इस प्रकार इसके छिड़काव से फसल के आसपास के वातावरण में तापमान बढ़ जाता है और तापमान जमाव बिंदु तक नहीं गिर पाता है, इससे पाले से होने वाले नुकसान से फसल को बचाया जा सकता है।
चोपटा खंड में सूखा पाला पड़ने से सरसों की 19000 हेक्टेयर फसल खराब होने का मंडराया खतरा
चोपटा। राजस्थान की सीमा से सटे चोपटा खंड में दिनों दिन बढ़ती जा रही ठंड से सरसों की फसल पर सूखा पाला पड़ने का खतरा मंडराने लगा है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है की सूखे पाले से बचाने के लिए सरसों की फसल में सिंचाई आवश्यक है, किसानों का कहना है कि जहां भूमिगत पानी मीठा है वहां तो सिंचाई की जा सकती है लेकिन खारे पानी वाले स्थानों पर फसल खराब होने का अंदेशा बढ़ गया है। प्रकृति की मार के आगे किसान बेबस नजर आ रहे हैं।
चोपटा खंड में इस बार करीब 19200 हेक्टेयर में सरसों, 37200 हेक्टेयर मे गेंहू, 2100 हेक्टेयर मे चना, 2100 हेक्टेयर मे जौ फसल की बिजाई की गई है। गांव कुम्हारिया, कागदाना, खेड़ी, जसानियां, राजपुरा साहनी, चाहरवाला, रामपुरा ढिल्लों, गिगोरानी, रामपुरा नवाबाद, जोगीवाला, गुसाईंयाना, जोड़कियां इत्यादि गांवों में सरसों, गेहूं, चने की फसल की बिजाई की जाती है। इस समय सरसों की फसल में फूल लगने का समय आ गया है और सिंचाई की जरूरत है लेकिन सूखे पाले से सरसों की फसल खराब होने का अंदेशा बढ गया है।
किसान जगदीश चंद्र, सुभाष चंद्र, राकेश कुमार, महावीर, रामकुमार, महेंद्र सिंह, सुल्तान सिंह इत्यादि का कहना है कि नहरों के अंतिम छोर पर पड़ने के कारण यहां सिंचाई के पानी का हमेशा अभाव रहता है सरसों की फसल को सूखे पाले से बचाने के लिए अब तो सिंचाई का ही सहारा होता है बारिश की भी कोई संभावना नहीं लग रही है। कहना है कि महंगे दामों से डीजल इत्यादि खर्च करके फसल की बुवाई तो कर दी लेकिन अब सिंचाई के अभाव में सरसों की फसल को पाले की मार से बचाना काफी मुश्किल हो गया है। इनका कहना है कि खेती लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही है इनका कहना है कि जहां पर भूमिगत जल मीठा है वहां से फसलों की सिंचाई की जा सकती है लेकिन खारे पानी वाली जमीन में सिंचाई करना काफी मुश्किल हो गया है जिससे सरसों की फसल खराब होने की संभावना बढ़ गई है।
जब इस बारे मे कृषि विकास अधिकारी शलेंदर सिंह बात की गई तो उन्होंने बताया इस समय फसलों को पाले से बचाना जरूरी है. चोपटा खंड में इस बार करीब 19200 हेक्टेयर में सरसों, 37200 हेक्टेयर मे गेंहू, 2100 हेक्टेयर मे चना, 2100 हेक्टेयर मे जौ फसल की बिजाई की गई है.
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