पशुओं में शीत
लहर से होने वाली मुख्य बीमारीयों के लक्षण
तापमान का कम होना।
शीतदंश/हिमदाह ।
भूख कम लगना।
भारी वजन वाले पशुओं में गठिया होना।
श्वसन तंत्र की बिमारी होना।
पशु चिकित्सक डा.
विद्यासागर बंसल (उप निदेशक सघन पशुधन विकास परियोजना सिरसा) ने बताया की शीत लहर
में पशुओं को शारीरिक तापमान का संतुलन बनाये रखने व अधिक उर्जा की आपूर्ति हेतू
अधिक आहार की आवश्यकता होती है तथा प्रतिकूल मौसम का पशुओं की प्रजनन क्षमता पर भी
प्रभाव पड़ता है। अतः हमे पशुओं के अच्छे स्वास्थय हेतू निम्न बातों का ध्यान रखना
चाहिए।
पशुओं को शीत ऋतु
से बचाव हेतू करने योग्य काम
स्थानीय मौसम के पूर्वानुमान बाबत सचेत रहे।
शीत ऋतु में कश्मीर व हिमाचल प्रदेश में होने वाली अत्याधिक
बर्फबारी से उत्तर भारत में शीत लहर चलने लगती है। अतः पशुओं को इस प्रकार के मौसम
के कुप्रभाव से बचाने हेतु आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
पशुओं को शीत लहर से बचाव हेतू पशु बाड़े को रात को चारों तरफ से बोरियों/टाट आदि से
ढ़कना चाहिए। पशुओं के नीचे तूड़ी अथवा पराली आदि का बिछावन करना चाहिए।
वातावरण-फ्रैडली शैड का निमार्ण करना चाहिए,
जिससे सर्दियों में अधिकतम सूर्य प्रकाश का
प्रवेश व गर्मियों में न्यूनतम उर्जा विकिरण हो।
कमजोर व बीमार पशुओं को सर्दी से बचाव हेतू
बोरियों/टाट से ढ़कना चाहिये तथा रात को सभी पशुओं को चारों तरफ से ढ़के हुये पशु बाड़े में रखना
चाहिए।
पशुओं को नमीयुक्त स्थान पर नहीं रखना चाहिए ।
पशुओं को गरमाहट देने हेतू जलाई गई आग के धुंऐ से भी बचाना चाहिए, क्योकि नमी/सीलन व धुंऐ से पशुओं में निमोनियां
होने का खतरा बढ़ जाता है।
पशुओं के शारीरिक तापमान को बनाये रखने हेतू,
उन्हे तेलीय खल व गुड़ खिलाना चाहिए तथा मुख्यतः
नवजात बच्चे व कमजोर पशुओं के शरीर को बोरी/टाट से ढ़क कर रखना चाहिये।
शीत ऋतु हेतू दाने व चारा (तूडी आदि) सहित
हरेचारे का भी संमुचित प्रबंध रखना चाहिए।
पशुओं में आहार खिलाने की प्रक्रिया व भोजन में
पोशक तत्वों की मात्रा में भी नियमित सुधार करते रहना चाहिये।
पशुओं को समय-समय पर कृमि रहित करें।
पशुओं को बाहृीय जीवों के प्रकोप से बचाव हेतू,
पशु बाड़ों को साफ रखे तथा पबाड़ों/शैड़ो में
निरगंुडी, बेसिल व लेमन ग्रास को
बाल्टियों में टांगना चाहिए ताकि इनकी गंध से बाहृीय जीव पशु बाड़ो से दूर रहे। पशुबाड़ो को साफ रखने हेतू
नीमतेल युक्त कीटाणुनाषक घोल का छिड़काव करना चाहिए।
मुंहखुर, गलघोटू, पी.पी.आर.,
ई.टी.वी. शीपपोक्स, सूकर बुखार व बी.क्यू. का टीका पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार
समय-समय पर लगवाना चाहिए।
पशुओं के चारे व पानी में नमक/इलेक्ट्रोलाइट
मिश्रण मिलाना चाहिए तथा दूधारू पषुओं को वसायुक्त आहार सहित संतुलित आहार देना
चाहिए।
पानी के खेल को समय-समय पर साफ करें तथा दिन
में कम से कम चार बार हल्का गर्म/गुणगुणा पानी पषुओं को पिलाना चाहिए।
छः मास से अधिक गाभिन पशुओं को अतिरिक्त आहार
दें।
मृत पशुओं को पानी के स्त्रोतो व आमजन रिहायशी क्षेत्र से दूर दबाना चाहिए तथा ऐसे क्षेत्र में
सूचना पट्ट अवश्य लगा होना चाहिए।
पशुओं को शीत ऋतु से बचाव के लिए यह काम नहीं करने चाहिए
शीत ऋतु में पशुओं को खुले स्थान पर ना तो बांधे और ना ही घूमने के लिए
खुला छोड़े।
शीत ऋतु में पशु मेला जहां तक संभव हो नहीं
लगाना चाहिए।
पशुओं को ठंडा आहार व ठंडा पानी नहीं पिलाना
चाहिए।
पशुओं को रात को व अत्यधिक ठण्ड के समय बाहर मत
रखें।
पशुओं के मृत शरीर को पशुओं की चारागाह के
आस-पास दफन नहीं करना चाहिए।
0 टिप्पणियाँ