वैष्णो देवी की उत्पत्ति

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वैष्णो देवी की उत्पत्ति

 


प्राचीन समय की बात है। एक दैत्य था। उसने ब्रम्हा जी की कठोर तपस्या की। कई वर्षो की कठिन तपस्या के बाद ब्रम्हा जी प्रकट हुये। ब्रम्हा जी ने उस दैत्य से कहाँ कि वरदान माँगो उस दैत्य ने कहाँ कि हे ब्रम्हदेव यदि आप हमारी तपस्या से प्रसन्न है। तो मुझे यह वरदान दीजिये कि गर्भ से उत्पन्न प्राणी मुझे मार न सके। ब्रम्ह ने कहाँ कि ठीक है ऐसा ही होगा। वह दैत्य अपने आपको भगवान समझने लगा। अपने आपको अमर समझने लगा। उस दैत्य ने अपनी दैत्य सेना से कहाँ कि पृथ्वी पर जाओ और सबसे कहो कि सब हमारी पूजा करें। हमे भगवान माने जो ऐसा न करें उसे समाप्त कर दो। दैत्य सेना पृथ्वी पर गई और सभी साधू सन्यासियों को मार डाला।उधर पृथ्वी पर नारद जी यह सब देख रहे थे। वो शीग्र ही भगवान विष्णु के पास गये।



सारी कहानी नारद जी ने विष्णु जी को बताया। नारद जी ने कहाँ कि आप जल्दी से अवतार लेकर उस दैत्य का अन्त करिये। भगवान विष्णु बोले कि हे देवर्षि नारद इस बार हम नही बल्कि महालक्ष्मी, महासरस्वती, एवं पार्वती की शक्तियां अवतार लेगी। आप इन शक्तियों का आवाहन करिये। देवर्षि नारद ने ऐसा ही किया। तीनो देवियो के तेज पुंज से एक महाशक्ति प्रकट हुई। नारद जी के कहने पर वह शक्ति भगवान विष्णु के पास गई। विष्णु जी ने कहाँ कि हे देवी दैत्य का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत बढ गया है। आप शीग्र ही उस दैत्य का अंत करिये। विष्णु जी आज्ञा पाकर माँ शेरावाली ने उस दैत्य का संहार किया। उसके बाद वह वापस भगवान विष्णु के पास गई और बोली कि हे प्रभू हमारा उद्देश्य पूरा हुआ। अब आप मुझे अपने अंदर समाहित कर लीजिये।


भगवान विष्णु बोले कि नही देवी आप मुझमे नही समा सकती। आपको धर्म का प्रचार करना है। आप राजा रत्नाकर के यहाँ पुत्री के रूप मे जन्म लीजिये। मै तुम्हे जल्द ही मिलूंगा। राजा रत्नाकर के यहाँ माता ने जन्म लिया। पूरे राज्य मे खुशी का माहौल था। राजा रत्नाकर ने अपनी पुत्री का नाम त्रिकुटा रखा। त्रिकुटा बचपन से ही भगवान विष्णु की बहुत बडी भक्त थी। वह सुबह शाम दिन रात केवल भगवान विष्णु की ही पूजा करती थी। नारद जी ने त्रिकुटा से कहाँ कि भगवान विष्णु ने राम के रूप मे राजा दशरथ के यहाँ जन्म लिया है। वह अपनी पत्नी सीता माता के साथ चौदह वर्ष के वनवास के लिये निकले है। त्रिकुटा को जब यह बात पता चली तो उसने अपना राज पाठ सुख ऐश्वर्य का त्याग कर दिया। और अकेले जंगल मे कुटिया मे रहकर भगवान राम की तपस्या करने लगी।



पार्वती जी ने भगवान राम की परीक्षा लेने की सोची वह राम के सामने माता सीता का रूप रखकर आई। लेकिन राम ने माता पार्वती को पहचान लिया। राम ने पार्वती के सामने हाथ जोड लिया। राम ने लक्ष्मण से कहाँ कि हे लक्ष्मण माता पार्वती आई है इन्हे प्रणाम करो। माता पार्वती अपने असली रूप मे आ गई। पार्वती जी ने भगवान राम से कहाँ कि त्रिकुटा आपकी तपस्या कर रही है। आप उसे शीग्र ही दर्शन दे। भगवान राम ने कहाँ कि जो आज्ञा माता मै त्रिकुटा को दर्शन अवश्य दूँगा। राम हनुमान के साथ त्रिकुटा के पास गये। त्रिकुटा ने भगवान राम से कहाँ कि हे राम मै आपको पति के रूप मे पाना चाहती हूँ।राम ने त्रिकुटा से कहाँ कि देवी इस जन्म मे तो मै किसी का हो चुका हूँ। इस जन्म मे ऐसा सम्भव नही है। भगवान राम ने कहा कि लंका से लौटते समय मै तुम्हारे पास जरूर आऊँगा। यदि तुमने मुझे पहचान लिया। तो मै तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करूंगा। तब तक तुम मेरी प्रतीक्षा करना।



त्रिकुटा ने कहाँ कि ठीक है भगवन मै आपकी प्रतीक्षा करुँगी। यह कहकर भगवान राम वहा से चले गये। जब भगवान राम रावण का वध करके अपने पुष्पक विमान से लौट रहे थे। कि अचानक रास्ते मे ही राम का विमान रूक गया। माता सीता ने भगवान राम से कहाँ कि ऐसी कौन.सी शक्ति है जिसने आपके विमान को रोक दिया। राम ने सीता से कहाँ कि ये भक्ति की शक्ति है। मैने अपने एक भक्त को दर्शन देने का वचन दिया है। यह कहकर राम हनुमान के साथ वेश बदलकर त्रिकुटा के पास गये। लेकिन त्रिकुटा उस भेष मे भगवान राम को नही पहचान पाई।इसलिए त्रिकुटा भगवान राम की परीक्षा मे फेल हो गई।



त्रिकुटा ने राम से कहाँ कि मै आपके बिना कैसे जियूँगी। राम ने कहाँ कि हे देवी तुम्हारा अवतार धर्म की रक्षा तथा पापियों का संहार करने के लिये हुआ है। मै कलियुग मे कल्कि अवतार लूँगा फिर मै तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करूँगा। अभी तुम हिमालय के समीप जम्मू कटरा के पास जाओ। वहां पर महाकाली, महालक्ष्मी, और महासरस्वती विराजमान है। वहाँ पर तुम भी जाकर निवाश करो। आज से तुम वैष्णव देवी के नाम से जानी जाओगी। भगवान राम की आज्ञा पाकर त्रिकुटा हिमालय के त्रिकूट पर्वत पर जाकर निवास करने लगी।


हे   जगदम्बे    आपसे,   विनती    बारम्बार।

हम पर माँ अपनी कृपा,रखना सतत अपार।।

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