एक भिखारी था, जो की अक्सर ट्रेन में भीख मांगता था, एक दिन की बात है वह रोज की तरह ही भीख मांग रहा था, तब उसे ट्रेन के अंदर एक सूट बूट वाले व्यक्ति को देखा, जिसे देखकर भिखारी को लगा की ये व्यक्ति भीख में जरूर कुछ अच्छा देगा, उसके बाद वह उस व्यक्ति के पास चला गया और भीख मांगने लगा.
भिखारी : सेठ कुछ दो ना ?
सेठ : तुम कौन हो ?
भिखारी : जी मैं एक भिखारी हूँ, मुझे कुछ दो ना.
सेठ ने भिखारी से कहा अगर मैं तुम्हे भीख दूंगा तो बदले में तुम मुझे क्या दोगे?
भिखारी कुछ समझ नहीं आया और सेठ से कहने लगा, की सेठ मैं तो भिखारी हूँ मैं भला आपको क्या दे सकता हूँ?
सेठ ने कहा भाई मैं तो व्यापारी हूँ मैं तब तक किसी को कुछ नहीं देता तब तक उसके बदले मुझे कुछ ना मिले.
उसके बाद सेठ का स्टेशन आ गया और वह उतर गया, लेकिन उसकी कही बातों से भिखारी सोच में पड़ गया और सोचने लगा की क्या इसीलिए उसे कम भीख मिलती है क्यूंकि वह भीख के बदले लोगों को कुछ दे नहीं पाता? लेकिन मैं तो भिखारी हूँ, मैं आखिर किसी को क्या दे सकता हूँ ? भिखारी यही बात सोच सोच कर बहोत परेशान था, तभी उसने देखा की उसके आप पास काफी अंदर फूल लगे हुए हैं, उसे आईडिया की क्यों ना भीख के बदले लोगो को फूल दिए जाएँ.
अगले दिन से भिखारी ने भीख के बदले लोगो को फूल देना शुरू कर दिया, जिससे खुश हो कर भिखारी को भीख में काफी इजाफा होने लगा.
एक दिन उसे फिर से वही सेठ ट्रैन में दिखाई दिया, और वह उस सेठ के पास गया और सेठ से कहा की सेठ आज मेरे पास आपको देने के लिए कुछ है, तो उसने सेठ को कुछ सुन्दर फूल दिए, सेठ वो बहोत पसंद आये जिससे खुश होकर सेठ ने भिखारी को कुछ पैसे दिए, और कहा की अब तुम मेरी तरह व्यापारी बन गए हो. ऐसा कह कर सेठ अपने स्टेशन पर उतर गया.
लेकिन सेठ की कही बातों को भिखारी समझ नहीं पा रहा था, एक बार फिर भिखारी के दिमाग में बहोत सारे सवाल दौड़ने लग गए थे, उसके बाद वह भिखारी स्टेशन पर कभी दिखाई नहीं दिया.
काफी दिन बीत गए तक़रीबन एक साल के बाद दो व्यक्ति सूट बूट में आपने सामने बैठे हुए थे, तब एक ने दूसरे से कहा की साहब आपने मुझे पहचाना ? उस पर दूसरे ने कहा नहीं भाई मैंने तुम्हे नहीं पहचाना, लगता है हम पहली बार मिल रहे हैं? इस पर पहले वाले ने कहा, नहीं साहब हम तीसरी बार मिल रहे हैं, तब दूसरे ने कहा क्या आप मुझे याद दिलाओगे की हम पहले दो बार काम मिले हैं?
इस पर पहले ने कहा साहब मैं वही भिखारी हूँ जिसे आपने भीख के बदले कुछ देने के लिए कहा था वो हमारी पहली मुलाकात थी, दूसरी बार आपने मुझसे कहा था की मैं जो अब भीख के बदले फूल दे रहा हूँ इससे मैं आपकी तरह व्यापारी बन गया हूँ.
आपकी वही बात मेरे दिल में घर कर गयी और मैंने खुद से सवाल किया की आखिर कब तक मैं भिखारी बना रहूँगा? उसके बाद मैं अब फूलों का व्यापारी बन गया हूँ और आज मैं अपने व्यापर के सिलसिले से ही शहर जा रहा हूँ.
ये बात शायद मुझे कभी समझ नहीं आती लेकिन आपके द्वारा बोले गए शब्दों ने मुझे मुझसे मिला दिया अब मन जान गया हूँ की मैं कौन हूँ.
जिसका नतीजा यह निकला की मैं फूलों का बहोत बड़ा व्यापारी बन गया, आपने मुझे पहली मुलाकात में प्रकर्ति का नियम समझाया की हमें तभी कुछ मिलता है जब हम कुछ देते हैं, लेन-देन का नियम जो आपने मुझे समझाया ये सच में काम करता है, लेकिन उसके बाद भी मैं खुद को हमेशा भिखारी ही समझता रहता अगर आपने मुझे दूसरी मुलाकात में मुझे यह अहसाह नहीं करवाया होता की मैं एक व्यापारी हूँ.
भारतीय मुनीषियों ने इसीलिए स्वयं को जानने पर सबसे ज्यादा ज़ोर दिया है, और कहा है.
सोऽहं शिवोहम !!
अब बस समझ की बात है इस भिखारी ने जब तक खुद को भिखारी समझा वो भिखारी ही बना रहा, और जब उसने खुद को व्यापारी मान लिया वह व्यापारी बन गया. इसे हम Low of attraction भी कहते हैं.
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