महज 28 साल की मेग्युमी (मैगी) यूं तो राजस्थान कई बार आईं लेकिन इस बार राजस्थान की हवा इस कदर चढ़ी कि मैगी अपने दो जापानी सहयोगियों के साथ एक महीने से ज्यादा समय से बीकानेर के छोटे से गांव नाल में ऊंटों पर बेहतरीन कलाकृतियां बनाने का तानाबाना बुन रही है.
कृष्ण राधा के प्रेम की दीवानी हुई मैगी यहां रह कर राजस्थान की लोक कलाओं में सबसे मुश्किल मानी जाने वाली ऊंट की खाल पर फर कटिंग के जरिए पहली बार में ही किसी मंझे हुए कलाकार की तरह रास लीला और ग्रामीण जीवन की कलाकृतियां उकेर रही है.
मैगी कहती है कि वो लगभग दस सालों से भारत आ रही हैं. यहां आकर उसे कृष्ण और राधा के प्रेम और भक्ति की कहानियों ने इतना मोहित किया कि कब वह कृष्ण के प्रेम में डूब गई उसे पता ही नहीं चला. पिछले तीन सालों से कोरोना की पाबंदियों के चलते वह भारत खासकर बीकानेर नहीं आ पाई. पिछली कई यात्राओं के दौरान उसे बीकानेर में होने वाले ऊंट उत्सव को देखने का मौका भी मिला. उन्हें ऊंट की खाल पर बालों को तराश कर नक्काशी की तरह बनाई गई आकृतियां इतनी पसंद आई कि इस बार जब उन्हें मौका मिला तो उसने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए इसे ही जरिया बना लिया.
एक स्थानीय की मदद से मेग्युमी ने एक ऊंट कुछ समय के लिए किराए पर लिया है, जिसकी खाल पर वह चित्र बनाती हैं. उनके दो दोस्त इस काम में उनकी मदद के साथ मैगी की कारीगरी को फिल्माते हैं. मैगी चाहती है कि वह अपने ऊंट के साथ बीकानेर में 13 जनवरी से शुरू हो रहे ऊंट उत्सव में एक प्रतिभागी के तौर पर शामिल हो और उसकी कला और प्रेम को दर्शकों का भरपूर प्यार मिले.
फर कटिंग के साथ मैगी राजस्थान के पारंपरिक खानपान से भी रूबरू हो रही है और उसे यहां का देसी खाना ही सबसे लजीज लगता है. देसी बाजरे की रोटी और केर सांगरी या फली- फोफलियों का साग उसे बहुत भाता है. यहां की महिलाओं के साथ मिलकर वह स्वादिष्ट राजस्थानी खाना पकाना भी सीख रही है.
0 टिप्पणियाँ