बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 के दशक में छोटा नागपुर (झारखंड) में मुंडा परिवार में हुआ था । मुंडा एक जनजातीय समूह था जो छोटा नागपुर पठार में निवास करते थे । बिरसा जी 1900 में आदिवासी लोगो को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 2 साल की सजा हो गई और अंततः 9 जून 1900 मे अंग्रेजो द्वारा उन्हें एक धीमा जहर दिया गया जिससे उन्हें हैजा के साथ साथ कई बीमारियां भी हो गई उस वजह उनकी मौत हो गई। उनके संघर्ष की गाथा बेहद रोचक और प्रेरणादायक रही है।
1 अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजो से लगान माफी के लिये आन्दोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग "धरती बाबा" के नाम से पुकारा और पूजा जाता था। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी।
1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।
जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 फरवरी1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये आदिवासी समाज में भगवान के रूप में पूजे जाने वाले बिरसा मुंडा (9 जून) सन् 1900 ई को शहीद हुए। बिरसा मुंडा अपने देश को आजाद कराने के लिए अंग्रेजों से लोहा लिया था।
बिरसा मुण्डा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है। वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है। उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय विमानक्षेत्र भी है। बिरसा मुंडा आदिवासियों को गरीबी, अत्याचारों और हमारे जल - जंगल - जमीन की रक्षा करने के लिए एक ऐेसी सीख अपने इतिहास में दे गए जिससे हमारे अन्दर भी इसे बचाने के लिए हृदय की आग जल उठती है। बिरसा मुंडा आज भी समाज के लोकगीतों एवं साहित्य व संघर्ष के रूप में समाज में जीवित हैं। उनकी जयंती पर उन्हें शत शत नमन।🙏🙏
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