Chopta palus news (9896737050) किसान हमेशा कृषि कार्य में ही मेहनत करके कमाई करने की सोचता है। जमीन में से मेहनत के बलबूते अन्न, फल, सब्जियां, फूल इत्यादि पैदा करके अपने परिवार का पालन पोषण करना ही मुख्य कर्म मानता है। पूरे परिवार का पालन पोषण खेती की आमदनी पर निर्भर हो तो परंपरागत खेती से आमदनी कम होने पर काफी मुश्किल उठानी पड़ती है। उसमें भी सेम की समस्या. सूखा या अकाल पडऩे पर परंपरागत खेती से आमदनी कम हो जाती है। और आर्थिक स्थिति डावांडोल हो जाती है। तब परंपरागत खेती के अलावा आधुनिक खेती करके लाखों की कमाई करना कोई विरला ही उदाहरण मिलता है। इसी प्रकार गांव नाथूसरी कलां (सिरसा) के किसान दिनेश पूनिया ने हौसला हारने की बजाए गुलाब व गेंदे के फूलों की खेती कर कमाई का जरिया खोजा। 10+2 तक पढे किसान दिनेश ने घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए दो एकड़ में गेंदे व आधा एकड़ में गुलाब के पोधे लगाकर खेती शुरू कर दी। इससे फूल बेचकर परंपरागत कृषि के साथ अतिरिक्त आमदन शुरू हो गई। जिसने गुलाब व गेंदे के फूलों की खेती कर कमाई का जरिया बनाया उन्हीं गुलाब ने आस पास के गांवों में अलग पहचान भी दिलवाई। अन्य किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया।
दिनेश पूनिया ने बताया कि उसने 10+2 तक की पढाई करने के बाद आईटीआई से डिप्लोमा किया | नौकरी के लिए भी अप्लाई किया| लेकिन नौकरी नहीं मिली तो उसने नौकरी के लिए भटकने की बजाय घर तथा गांव में ही रहकर अपना काम धंधा करने का मन बनाया। तब उसने परंपरागत खेती के साथ फूलों की खेती करने का मन बनाया। तो उसने हॉर्टिकल्चरल विभाग से डॉ बलबीर सैनी से बागवानी की जानकारियां हासिल की। 5 साल पहले 2 एकड़ में गेंदे व आधा एकड़ में गुलाब के पौधे लगाए। जिससे उसे 4 लाख रुपए से ज्यादा की आमदनी हुई। दिनेश ने बताया कि 1 एकड़ में 40 से 50 क्विंटल गेंदे के फूल हो जाते हैं और गेंदे के फूल मांग के अनुसार 30 से 100 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिक जाते हैं। इसी प्रकार गुलाब के फूल की भी मांग भी ज्यादा रहती है। उसने बताया कि गुलाब व गेंदे के फूल विवाह शादी या त्योहरों के अवसर पर ज्यादा बिकते हैं। गुलाब के फूल की पनियां मिठाइयों में डाली जाती है। परंपरागत खेती के साथ-साथ गेंदे का गुलाब के फूलों ने उसकी कमाई का ग्राफ बढ़ा दिया।
खुद ही देखभाल करता है और खुद ही चुनता है फूल
दिनेश पूनिया ने बताया कि उसने अपने खेत में ही ढाणी (रहने के लिए मकान) बना रखे हैं और सुबह जल्दी उठकर पौधों की देखभाल और फूल चुनने का कार्य शुरू कर देता है। और पौधों की देखभाल से लेकर फूल तोडऩे तक का कार्य खुद ही करता है। उसने बताया कि खेत में खिले गुलाब व गेंदे के फूलों को देखकर उसे बहुत सकून मिलता है। फूलों को गीला व सूखा दोनों प्रकार से बेचा जाता है। ज्यादा काम होने पर वह मजदूरों का सहारा लेता है।
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सिरसा में विकसित हो फूलों की मण्डी
दिनेश पूनिया ने बताया कि उसके क्षेत्र के आस पास फूलों की मण्डी न होने के कारण दिल्ली ले जाकर बेचने में यातायात खर्च ज्यादा आता है। तथा बचत कम होती है। उसने बताया कि गुलाब के ताजा फूल सजावट के काम व सूखे फूल मिठाई आदि में डालने के काम आते हैं। उन्होंने बताया कि अब तो आस पास के किसानों का रूझान तो बढने लगा है। उसका कहना है कि अगर फूलों की मण्डी चौपटा, सिरसा में स्थपित हो जाए तो यातायात खर्च कम होने से बचत ज्यादा हो जाएगी।
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