सेवानिवृत्ति के बाद डॉ मोतीलाल शर्मा ने अपने दो भाइयों को बागवानी के लिए किया प्रेरित, आधुनिक तरीके से खेती करके कमा रहे लाखों

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सेवानिवृत्ति के बाद डॉ मोतीलाल शर्मा ने अपने दो भाइयों को बागवानी के लिए किया प्रेरित, आधुनिक तरीके से खेती करके कमा रहे लाखों


पशुपालन एवं डेयरी विभाग में उप निदेशक पद से  सेवानिवृत्त गांव गिगोरानी के डॉ मोतीलाल शर्मा ने खेती में सुधार का उठाया बीड़ा


नरेश बैनीवाल । किसान का काम हमेशा ही खेती से जुड़ा होता है किसान नौकरी मिलने पर कितने भी बड़े पद पर पहुंच जाएं। लेकिन हमेशा ऐसे ही खेती से संबंधित कार्य में उसकी रूचि कम नहीं होती। खेती का पूरा ज्ञान होता और किसान खेती बाड़ी को बढ़ावा देने के बारे में ही सोचता है। फसलों की देखभाल, बागवानी, सब्जियां उगाना इत्यादि में  तत्परता से कार्य करने लगता है। इसी प्रकार का उदाहरण राजस्थान की सीमा से सटे हरियाणा के सिरसा जिले के गांव गिगोरानी में उपनिदेशक पशुपालन एवं डेयरी विभाग से सेवानिवृत्त डॉ मोतीलाल शर्मा ने दिया है।

उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद साल 2018 में परंपरागत खेती में लगे अपने दो भाइयों सतपाल और खुशीराम को आधुनिक तरीके से बागवानी के लिए प्रेरित किया। जिससे आप तीनों भाइयों को परंपरागत खेती के साथ-साथ 30 लाख रुपए सालाना  आमदनी होने लगी। 

सेवानिवृत्त डॉक्टर मोतीलाल के मार्गदर्शन में सतपाल और खुशीराम ने साढे 5 एकड़ में किन्नू 5 एकड़ में अमरूद और 1 एकड़ में खजूर का बाग लगा कर बागवानी की तरफ रुझान किया। परंपरागत खेती के साथ आधुनिक तरीके से खेती को बढ़ावा देने के लिए तीनों भाइयों को आस-पास के गांव में काफी मान सम्मान मिल रहा है। नहरी पानी की कमी और बंजर जमीन में आधुनिक तरीके से विभिन्न किस्म के बाग इत्यादि लगाकर कमाई करके आत्मनिर्भर बना जा सकता है।

 सेवानिवृत्ति के बाद खेती में सुधार करने का उठाया बीड़ा

गांव गिगोरानी के पशुपालन एवं डेयरी विभाग में उप निदेशक पद से सेवानिवृत्त डॉक्टर मोतीलाल ने बताया कि सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने परंपरागत तरीके से खेती में सुधार करके आमदनी बढ़ाने का इरादा किया। इसके तहत खेती कार्य में लगे अपने दो भाइयों सतपाल और खुशी राम को आधुनिक तरीके से खेती करने के लिए प्रेरित किया तथा साढे 5 एकड़ जमीन में किन्नू, 5 एकड़ में अमरूद और 1 एकड़ में खजूर के बाग लगाए। 


उन्होंने बताया कि हिसार सफेदा  किस्म के अमरुद  का उत्पादन रेतीली जमीन में ज्यादा होता है। और खाने में मीठा होता है। उन्होंने  बताया कि 1 एकड़ में टिशू कल्चर विधि से लगाया गया खजूर जो की जोधपुर नर्सरी से बरही वैरायटी का है। और रंग पीला होता है। यह अन्य खजूर के मुकाबले स्वादिष्ट व मीठा होने के कारण लोगों को ज्यादा पसंद आता है। उन्होंने बताया कि अभी तक किन्नू अमरूद और खजूर की पैदावार शुरू नहीं हुई है 

इस दौरान उन्होंने ईंटर क्रॉप विधि से मूंगफली, कपास, लहसुन, प्याज और स्ट्रॉबेरी को लगाकर पैदावार ले रहे हैं। जिससे उन्हें 3 लाख रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से सालाना कमाई हो रही है। उन्होंने बताया कि सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने देखा कि परंपरागत खेती में कभी ओलावृष्टि, कभी अकाल, सुखा, टिडी दल का हमला, इत्यादि से आमदनी कम हो रही है ऐसे में आधुनिक तरीके से बागवानी व सब्जियां लगाकर किसानों को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है.।  

ड्रिप सिस्टम से सिंचाई करके कर रहे हैं पानी की बचत
सेवानिवृत्त डॉक्टर मोतीलाल ने बताया कि उन्होंने सरकार की सहायता से खेत में पानी की डिग्गी बना रखी है। जिसमें पानी एकत्रित कर लिया जाता है। और जब भी सिंचाई की जरूरत होती है तो ड्रिप सिस्टम द्वारा पौधों में सिंचाई कर देते हैं। जिससे पानी की बचत तो होती है और पौधों की जड़ों में सीधे खाद और दवाई मिल जाती है। उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा कई प्रकार के अनुदान दिए जाते हैं लेकिन के साथ-साथ ईंटर क्रॉप विधि से फसल उगाने पर भी सहायता देनी चाहिए जिससे किसानों को साल में कई फसलें लेने के लिए प्रेरित किया जा सके।

चौपटा में विकसित हो मंडी और फ्रूट प्रोसेसिंग केंद्र
डॉ मोतीलाल ने बताया कि उनका गांव राज्य के अंतिम छोर पर पड़ता है । और आस-पास में कोई मंडी और फ्रूट प्रोसेसिंग सेंटर भी नहीं है। फलों का उत्पादन होने के बाद उन्हें दिल्ली या जालंधर में बेचने के लिए जाना पड़ता है। जिससे उन्हें यातायात खर्च ज्यादा होता है। और बचत कम होती है । जिसके लिए सरकार द्वारा नाथूसरी चोपटा के आसपास फ्रूट प्रोसेसिंग सेंटर और मंडी विकसित करनी चाहिए।

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