पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डा. विद्या सागर ने बताया कि पशुपालन एवं डेरिंग विभाग के पशुचिकित्साल्यों व पशुऔषधालयों के माध्यम से रोग ग्रस्त पशुओ को आवश्यकता अनुसार उपचार मुहैया कर रहा है तथा विभागीय अधिकारी,
angal, "serif";">निरंतर इस रोग की रोकथाम के लिए क्षेत्रीय टीमों से संपर्क बनाते हुये निगरानी कर रहे है।उन्होंने बताया
कि लंपी स्किन डिजीज एक वायरल बीमारी है यह कैपरी पॉक्स वायरस द्वारा होती है। यह
मक्खियों व मच्छरों के काटने से फैलती है। इस बीमारी में शुरू में दो-तीन दिन तक
बुखार आता है तथा बाद में शरीर में सारी चमड़ी के ऊपर 2 से 5 सेंटीमीटर तक की
गांठे बन जाती है, यह गांठे गोल व
उभरी हुई होती है, गांठे कभी-कभी
मुंह में तथा श्वासनली में भी हो जाती है। इस बीमारी में पशु कमजोर व लिंफनोडज
बड़ी हो जाती है तथा पैरों पर सोजिश हो
जाती है, दूध उत्पादकता कम हो जाती
है। कभी-कभी पशुओं में अबॉर्शन भी हो जाता है, अमूमन पशु 2 से 3 सप्ताह के अंदर ठीक हो जाता है तथा इस रोग के
फैलने की दर 10 से 20 प्रतिशत है तथा इस रोग में मृत्यु दर लगभग 1 से 5 प्रतिशत तक है।
इस रोग से बचाव
के लिए ये रखें सावधानियां :
1) इस बीमारी से
ग्रस्त पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए।
2) जिस पशु के शरीर
पर इस तरह की गांठे हो उस पशु को पशु बाड़े में अंदर नहीं रखना चाहिए।
3) मक्खियों,
मच्छरों व चिचडिय़ो को नियंत्रित करने के लिए उचित दवा का छिड़काव करना चाहिए।
4) पशु मेला व पशु
मंडियों के आयोजन को बंद कर देना चाहिए ताकि पशुओं के आवागमन पर रोक लग सके ।
5) पशुबाड़ो में सफाई
का विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा पशुओं के
नीचे जहां तक संभव हो सके, फर्श सुखा रखना
चाहिए।
6) पशुशाला / पशुबाड़ो की सफाई के लिए क्लोरोफॉर्म, फार्मेलिन, फिनॉल व सोडियम हाइपोक्लोराइट जैसे रसायनों का प्रयोग करना चाहिए।
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