पतला छिलका, कम बीज वाला और मीठा किन्नू लोगों की बन रहा पहली पसंद
रेतीली व नहरी पानी की कमी वाली जमीन में किन्नू का बाग लाभकारी,
नरेश बैनीवाल ( 9896737050) Chopta plus News सिरसा जिला राज्य के अंतिम छोर पर पड़ने के कारण हमेशा ही खेती के लिए आवश्यक सुविधाओं की कमी से जूझता रहता है, क्षेत्र के किसान आमदनी बढ़ाने के लिए कृषि क्षेत्र में नए-नए तरीकों की खोज करने में लगे रहते हैं इसी कड़ी में गांव चाडी वाल ( सिरसा) के किसान राजेश कुमार बैनीवाल पुत्र गोपी राम बैनीवाल ने साल 2013 में 35 एकड़ जमीन में किन्नू का बाग लगा कर परंपरागत खेती के साथ बागवानी खेती शुरू की है। इस समय किन्नू पक कर तैयार हो गए हैं। इनकी हार्वेस्टिंग करनी है।
राजेश बैनीवाल का कहना है कि परंपरागत खेती के साथ-साथ बागवानी, फल सब्जियां इत्यादि लगाकर किसान आत्मनिर्भर बन सकते हैं। किसान परंपरागत खेती के साथ-साथ आधुनिक तरीके से खेती करके कमाई कर रहे हैं। किसान बागवानी, पशुपालन, सब्जियां इत्यादि लगाकर अपने घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत बना रहे हैं।
चाडीवाल के प्रगतिशील किसान ने बताया कि नहरी पानी की कमी, प्राकृतिक आपदाओं, बीमारियों इत्यादि से परंपरागत खेती में फसलों का उत्पादन कम होने लगा और बचत भी नहीं हो पा रही थी। ऐसे में उसने बीए की पढ़ाई करने के बाद खेती में आमदनी बढ़ाने का जरिया खोजना शुरू किया तो प्रगतिशील किसान अरविंद व अजीत गोदारा से प्रेरणा लेकर उन्होंने 35 एकड़ जमीन में किन्नू का बाग लगाया।
जिसमें जब तक कम ही फल लगने शुरू हुए हैं तो उन्होंने किन्नू के बाग वाली पौधों की कतारों में सरसों और चने की पैदावार भी ली है। इस समय किन्नू के पौधों पर किन्नू के फल पक कर तैयार हो गए हैं। और इनकी हार्वेस्टिंग की जानी है। राजेश बेनीवाल ने बताया कि सबसे पहले उसे एक लाख की बचत हुई। साल 2019 में सवा छह लाख की पैदावार हुई। अगले साल 2800 क्विंटल पैदावार हुई जिससे 23 लाख रुपए की बचत हुई। राजेश ने बताया कि रेतीली और नहरी पानी की कमी वाली जमीन में किन्नू लाभकारी होता है। और सबसे बड़ी बात यह है कि किन्नू रेतीली जमीन में मीठा, पतले छिलके वाला और कम बीज वाला होता है जो कि खाने में स्वादिष्ट और मिठास भरा होने के कारण व्यापारियों व लोगों को पसंद आ जाता है।
राजेश बैनीवाल ने बताया कि उन्होंने सरकार की सहायता से खेत में पानी की डिग्गी बना ली है जिसमें पानी एकत्रित कर लिया जाता है। और जब जरूरत होती है तो उस पानी से ड्रिप सिस्टम द्वारा सिंचाई कर पौधों को खाद और पानी सीधा जड़ो में दिया जाता है जिससे एक तो पानी की बचत होती है और पौधों को जरूरत के हिसाब से पानी व खाद इत्यादि मिल जाती है । यह सब सरकार के सहयोग से मिला है।
राजेश बैनीवाल ने बताया कि उसके गांव से फलों की मण्डी दूर पड़ती है। जिससे फलों को वहां ले जाकर बेचने में यातायात खर्च ज्यादा आता है। तथा बचत कम होती है। इसके अलावा नजदीक में कोई वैकिसंग प्लांट भी नहीं है जिसमें की फलों को संभाल कर रखा जाए।
उसका कहना है कि अगर फलों व सब्ज़ियों की मण्डी नाथूसरी चोपटा में विकसित हो जाए तो यातायात खर्च कम होने से बचत ज्यादा हो जाएगी। तथा एक वैक्सिंग प्लांट लगाया जाए।
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