खतरे में नैनीताल: तीन और से दरक रही पहाड़ियां, शहर की भार सहने की क्षमता खत्म, जानिए पूरी कहानी...

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खतरे में नैनीताल: तीन और से दरक रही पहाड़ियां, शहर की भार सहने की क्षमता खत्म, जानिए पूरी कहानी...

 

नैनीताल खतरे में है. पहाड़ियां दरक रही हैं. गिर रही हैं. बड़े चूना पत्थर झील में समा रहे हैं. पहाड़ियों की भार क्षमता खत्म हो चुकी है. पहाड़ तो खत्म होंगे ही, झीलें भी खत्म हो जाएंगी. अगर अभी निर्माण कार्यों को नहीं रोका गया तो नैनीताल को बचाना मुश्किल हो जाएगा.


नैनीताल,

क्या बचेगा नैनीताल? क्या फिर होगी 1880 की दुर्घटना.


भूगर्भीय हलचल से शहर के सभी फॉल्ट सक्रिय हुए


खतरा ये भी, पहाड़ों से निकल रहा है पीले रंग का पानी


किसी भी पहाड़ या शहर की एक भार क्षमता होती है. इंसान अगर उससे ज्यादा निर्माण करेगा या वजन बढ़ाएगा तो वह धंस जाएगी. यही हो रहा है नैनीताल (Nainital) के साथ. नैनीताल पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है. वहां की पहाड़ियां तेजी से दरक रही हैं. धंस रही हैं. गिर रही हैं. उनसे गिरने वाले चूना पत्थर झीलों में जा रहे हैं. भूगर्भ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर नैनीताल में निर्माण कार्य रोके नहीं गए तो इस खूबसूरत पर्यटक शहर को बचा पाना मुश्किल होगा. 


अंग्रेजों ने नैनीताल को बसाया था. साफ-सुथरे वातावरण और सभी सुविधाओं से युक्त एक शहर. यहां का हवा-पानी सेहत के हिसाब से बेहतरीन था. अंग्रेजों ने नैनीताल में आबादी तय कर रखी थी कि इससे ज्यादा जनसंख्या यहां नहीं होनी चाहिए. क्योंकि तब भी यह इलाका भूगर्भीय बदलावों के अनुसार संवेदनशील था. नैनीताल का मॉल रोड तो शुरुआत से ही काफी नाजुक इलाके पर बसा है. ऐसे में 1880 में आए विनाशकारी भूस्खलन की याद आती है.  

नैनी झील के तीन तरफ पहाड़ियां दरक रही हैं. दो तरफ शहर दिख रहा है. अगर ज्यादा मात्रा में पत्थर या भूस्खलन झील में गया तो शहर में पानी सुनामी की तरह घुस

142 साल बाद फिर उसी जगह भयावह भूस्खलन, जिसने दिया था दर्दनाक इतिहास.


18 सितंबर, 1880 को नैनीताल की आबादी 10 हजार से भी कम थी. तब नैनीताल की अल्मा पहाड़ी, जिसे सात नंबर भी कहते हैं. वहां पर भयानक भूस्खलन हुआ. इसमें 43 ब्रिटिश नागरिकों समेत 151 लोगों की मौत हो गई थी. नैनीताल के इतिहास का सबसे दर्दनाक दिन गिना जाता है इसे. इसके बाद नैनीताल के लोगों की दुनिया बदल गई. तब से यहां पर पहाड़ियों के भार-वहन क्षमता के आकलन की बात होने लगी. 


नैनीताल में 24 जुलाई 2022 यानी रविवार को फिर अल्मा हिल यानी सात नंबर पर एक बड़ा भूस्खलन हुआ. यह भूस्खलन 1 घंटे की बारिश के बाद हुआ. भूस्खलन की चपेट में कई मकान भी आ गए. स्नोव्यू का जाने वाला रास्ता भी इसी भूस्खलन से बर्बाद हो गया. 50 मीटर के दायरे में पहाड़ी दरक गई. मार्ग के कई पेड़ उखड़ गए. इसके बाद से इस इलाके में दहशत का माहौल बना हुआ है. दर्जनभर से अधिक परिवारों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. 

1880 में जिस अल्मा पहाड़ी यानी सात नंबर पर भयानक भूस्खलन हुआ था, वहां 24 जुलाई 2022 को फिर से पहाड़ दरक रहे है.

नैनीताल की बुनियाद बलिया नाला से भी मंडरा रहा है बड़ा.


नैनीताल शहर के आधार बलिया नाला के जलागम क्षेत्र में जीआईसी इंटर कॉलेज के नीचे भी भारी भूस्खलन जारी है. इस दौरान कई घर बलिया नाले में समा चुके हैं.


 भूस्खलन ने अब राजकीय इंटर कॉलेज तल्लीताल की सीमा को छू लिया है. किसी भी समय भूस्खलन से ये पूरा इलाका बलिया नाले में समा सकता है. बलिया नाला क्षेत्र में 1972 से लगातार भूस्खलन हो रहा है. इसके बावजूद भी सरकार इस क्षेत्र में हो रहे भूस्खलन को रोकने में असफल रही है. इस वजह से अब नैनीताल के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है. बलिया नाला क्षेत्र को नैनीताल की बुनियाद माना जाता है.

नैनीताल की अयारपाटा हिल पहाड़ी में डीएसबी कॉलेज के पास भी भूस्खलन हो रहा है. यह बहुत तेजी से बढ़ रहा है. इससे डीएसबी कॉलेज के केपी और एसआर महिला छात्रावास को भारी नुकसान हुआ है. इस भूस्खलन से मलबा और भारी बोल्डर आए दिन नैनी झील में गिर रहे हैं. शेर का डंडा पहाड़ी में भी इस मूसलाधार बरसात में 18 अक्टूबर 2021 की रात 1 बजे भारी भूस्खलन हुआ था, जिससे पहाड़ी से भारी बोल्डर और पेड़ मलबे के साथ बहते हुए आए थे.  


नैनी झीले पर बना मॉल रोड भी प्रांरभिक काल से संवेदनशील इलाके पर स्थित है. जरा सी गड़बड़ से भारी नुकसान हो सकता है.


नैनी झील के तीन तरफ पहाड़ियों का दरकना, मुसीबत को बुलावा

नैनीताल झील तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरी हुई है. ऊपर मल्लीताल की तरफ नैना पीक पहाड़ी. एक तरफ अयारपाटा पहाड़ी. दूसरी तरफ शेर का डांडा पहाड़ी और नीचे तल्लीताल की तरफ बलिया नाला. अब बलिया नाले के साथ-साथ इन दोनों पहाड़ियों में भूस्खलन नैनीताल के लिए भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है. भूवैज्ञानिक बताते हैं कि नैनीताल नगर की भार सहने की क्षमता पूरी तरह खत्म हो चुकी है. अगर अब यहां किसी भी किस्म का निर्माण हुआ तो शहर खतरे में पड़ जाएगा. 

बलिया नाला से निकला पीला पानी यानी पहाड़ों में बन रही गुफा

कुमाऊं यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन जियोलॉजी के यूजीसी शोध वैज्ञानिक प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया ने बताया कि जहां तक बलिया नाले का सवाल है हमारे भूविज्ञान के हिसाब से ओल्ड बलिया नाला आलूखेत के बगल से या कैलाखान के नीचे से शुरू होता है. बीरभट्टी तक जाता है. इनमे जो चट्टानें हैं वो चूने की चट्टानें हैं. इनमें गुफाएं बन जाती हैं. पानी की वजह से और उनमें पीला रंग निकलने लगता है. उसे वैज्ञानिक भाषा में ऑक्सीडेशन रिडक्शन कहते हैं. चार साल पहले बलिया नाले में पीला पानी निकला था, ये उसी का नतीजा है. 


*बलिया नाला हर साल 60 सेंटीमीटर से 1 मीटर खिसक रहा है.*


प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया ने बताया कि हमारी रिसर्च है कि ओल्ड बलिया नाला हर वर्ष 60 सेंटीमीटर से एक मीटर खिसक रहा है. ये भयानक स्थिति है. इसे हम समझ नही पा रहे. जिस दिन ये पूरा का पूरा धंस गया उस दिन ज्योलिकोट का एरिया पूरा का पूरा धंस जाएगा. एक बहुत भयंकर अस्थाई झील बन सकती है. जहां भी अंडर कटिंग हो रही है उस पानी को और हरिनगर के पानी को टैप करके सीधा नैनी झील में ला सकते हैं. आपको पानी के लिए कोसी नदी, शिप्रा नदी जाने की जरूरत नहीं है. हरिनगर के पानी को टैप करिए जहां से अंडर कटिंग हो रही है, ओल्ड बलिया नाला लैंडस्लाइड पर वहां से पानी को लिफ्ट कर लीजिए. फिर नैनीताल में पानी की कमी भी नहीं होगी.  


नैनीताल में एक्टिव हो गई है एक बड़ी फॉल्ट लाइन, ये है खतरनाक

प्रो. कोटलिया ने बाताया कि जब डीएसबी कॉलेज के पास बड़ा भूस्खलन हुआ था तभी अंदेशा था कि जो राजभवन से डीएसबी गेट से, यहां से ग्रैंड होटल और उसके आगे सात नंबर तक फॉल्ट लाइन एक्टिव हो गई है. तब भी मैंने मीडिया के जरिए अपनी बात रखी थी कि ये कमजोर जोन है. इसमें समस्या आ सकती है. ये भी बताया था कि डीएसबी गेट के ऊपर निर्माण ना करें. कैरिंग कैपेसिटी नहीं है, लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं सुनी. उसके बाद 2010 में नैनीताल जिला प्रशासन ने मुझे राजभवन पर एक रिपोर्ट देने की बात कही जो मैंने 2012 में सबमिट की. तब भी मैंने इस समस्या को उठाया था. ये फॉल्ट लाइन अब एक्टिव हो गई है. मैं पिछले दो तीन सालों से देख रहा हूं इसी वजह से मॉल रोड में सड़क धंसी थी. यह पूरा एक जोन है, जो लगातार दो तीन सालों से एक्टिव फॉल्ट जोन के ऊपर बना हुआ है. 


ये है अयारपाटा हिल, जहां से लगातार भूस्खलन की खबरें आ रही है. ये भी ताजा तस्वीर है. 


प्रशासन सबसे पहले मॉल रोड में निर्माण प्रतिबंधित करे. इस पूरे फाल्ट के किनारे कोई निर्माण न हो. सात नंबर में निर्माण बंद किया जाए. जहां पर 1880 का भूस्खलन आया था, वहां कोई निर्माण नहीं होना चाहिए. फिलहाल नैनीताल में निर्माण को पूरी तरह प्रतिबंधित कर देना चाहिए. न वैज्ञानिक कुछ कर सकते हैं, न ही सरकार. फॉल्ट लाइन की सक्रियता को रोकना किसी के बस में नहीं है. इसका एक ही इलाज है कि निर्माण कार्य रोककर वजन बढ़ने से रोका जाए. भूगर्भीय हलचल को कोई रोक नहीं सकता. बलिया नाले के भूस्खलन को रोकने के लिए उत्तरकाशी में वरुणा व्रत पर्वत वाला तरीका अपनाना चाहिए. नहीं तो ये रुकने वाला नहीं है. प्रो. कोटलिया राष्ट्रीय भूविज्ञान अवॉर्ड प्राप्त कर चुके हैं. 


सरकार मान चुकी है कि नैनीताल अब और भार नहीं सह सकता

इतिहासकार डॉ. अजय रावत कहते हैं कि नैनीताल में सबसे बड़ा संकट है भूस्खलन का. सबसे पहला रिकॉर्डेड भूस्खलन नैनीताल में 1867 में हुआ था. उसके बाद यहां पर हिलसाइड सेफ्टी कमेटी बनी. 1880 में भयानक भूस्खलन आया. उसके बाद यहां पर 79 किलोमीटर लंबे नाले बनाए गए. नालों का मुख्य उद्देश्य था ड्रेनेज सिस्टम और बारिश के पानी को इनके जरिए बाहर निकाला जा सके. लेकिन दुर्भाग्य यह है यह जितने नाले हैं, जिन्हें हम लाइफ लाइन कहते हैं इसके ऊपर भी अवैध निर्माण हो रहे हैं. इस निर्माण का पता प्रशासन को भी है. जनता भी जानती है. बिल्डर भी जानते हैं लेकिन किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. शहर की बर्बादी का बड़ा कारण है अत्यधिक निर्माण कार्य. 


डॉ. रावत ने बताया कि 2006 में उत्तराखंड सरकार ने एक सम्मेलन में इस बात को स्वीकारा था कि नैनीताल शहर की जो कैरिंग कैपेसिटी है यानी भार सहने की क्षमता, वह खत्म हो गई है. अब निर्माण नहीं होना चाहिए. 2022 आ गया आज भी निर्माण हो रहा है. सबसे बुरा यह लगता है जिस क्षेत्र को पहले की यूपी और बाद की उत्तराखंड सरकार ने असुरक्षित घोषित किया था. निर्माण प्रतिबंधित था, वहां पर बड़े-बड़े होटल बन गए हैं. अब भी निर्माण हो रहा है. 


*नैनीताल में तीन जगहों पर बढ़ गए हैं भूस्खलन के मामले*

पर्यावरणविद और प्रो. डॉक्टर गिरीष रंजन तिवारी कहते हैं कि बलिया नाला क्षेत्र में पिछले लंबे समय से भूस्खलन हो रहा है. वैसे तो 50 वर्षों से चल रहा है लेकिन पिछले कुछ सालों में है यहां बहुत ज्यादा मुश्किल हो रहा है. उसके उपचार की कोई भी तकनीक कारगर नहीं हो पा रही है. बलिया नाला क्षेत्र नैनीताल की जड़ है. यह धीरे-धीरे भूस्खलन से उखड़ रही है. यह भूस्खलन राजकीय इंटर कॉलेज तक पहुंच गया है.  


अगर इसके बाद कोई बड़ा भूस्खलन हुआ तो नैनीताल का यह इलाका पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा. दो और जगह पर भारी भूस्खलन हो रहा है. पश्चिम की तरफ शेर का डंडा पहाड़ी और इसके ठीक सामने अयारपाटा पहाड़ी. लंबे समय से नैनीताल में अलग-अलग दिशाओं में भूस्खलन हो रहे हैं. ये नैनीताल के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकती हैं.


नॉर्थ इंडिया होटल एवं रेस्टोरेंट एसोसिएशन एसोसिएशन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर प्रवीण शर्मा कहते हैं नैनीताल में जो भूस्खलन हो रहा है खासकर के सात नंबर, शेर का डंडा और डिग्री कॉलेज की पहाड़ी पर इसका सबसे बड़ा कारण हम लोग हैं. इस समय हर तरह के निर्माण को रोकना जरूरी है. पूर्ण रूप से बैन किया जाए. हमारा सरकार से अनुरोध है कि इसे रोक दिया जाए, नहीं तो यह शहर नहीं बचेगा, यहां का पर्यटन नहीं बचेगा. बलिया नाला पहले से ही धंस रहा है और शहर भी अगर तीन तरफ से धंसा तो इसका अस्तित्व भी खत्म हो जाएगा. .

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