( Chopta Plus News Naresh Beniwal 9896737050) अच्छी बारिश, सरकार व कृषि विभाग की लाख कोशिश के बाद भी इस बार सिरसा जिले में चनों की बिजाई का क्षेत्रफल घटा है। इस बार 3315 हैक्टेयर में चनों की बिजाई हो पाई है। साल 2019-20 में 4400 हेक्टेयर में बिजाई की गई थी।
इस बार अच्छी बारिश होने के बावजूद भी बिरानी
जमीन में चने की बिजाई कम ही हो पाई है। लगातार बिजाई के क्षेत्रफल में कमी व कम उत्पादन किसानों व कृषि विशेषज्ञों के लिए चिंता का सबब
बना हुआ है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि टयूबवैलों का खारा पानी चने की
फसल के लिए उपयुक्त नहीं होता जिसके कारण चनें का उत्पादन कम हो गया जिससे
किसानों में चने की बिजाई कि तरफ रूझान कम हो गया है। किसानों का कहना है कि नहरी
पानी की कमी, सरसों के तेज भाव व चनों के मंदे भाव के कारण
चने की बिजाई कम होने लगी है। चने का
समर्थन मूल्य 5230 है |
हर साल घटा चने का
रकबा कृषि
विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1975-76 में 147000 हैक्टेयर में
बिजाई कि गई थी तथा उत्पादन 133000 मिट्रिक टन हुआ था। 1979 में 166000 हेक्टेयर में
बिजाई हुई थी उसके बाद चनें के रक्बे में
कभी वृद्वि नहीं हुई तथा निरंतर कमी बनी हुई है। वर्ष 1990 में 97000
हैक्टेयर में, वर्ष 1995 में 56000
हैक्टेयर में,साल 2000 में 13000
हैक्टेयर में बिजाई हुई और उत्पादन 8000 मिट्रिक टन हुआ। साल 2010
में 8000 हैक्टेयर में बिजाई हुई और उत्पादन 6000 मिट्रिक टन हुआ
तथा 2014 में मात्र 5000 हैक्टेयर में बिजाई का क्षेत्रफल सिमट
कर रह गया। वर्ष 2016
में लगभग 8000 हेक्टेयर में बिजाई हो पाई थी । लेकिन 2017
में 9450 हैक्टेयर में बिजाई हुई । साल 2018-19 में 6800
हेक्टेयर में बिजाई हुई लेकिन साल 2019-20 में
मात्र 4400 हेक्टेयर में ही चनों की बिजाई हुई है। साल 2021-22 में 3315
हेक्टेयर में हुई चने की फसल की बिजाई हुई
|
जिले के किसान जगदीश, राज कुमार,
पवन,
रामकुमार
इत्यादि का कहना है कि गेंहू और सरसों की
बिजाई तो नहरी जमीन में की जाती है। चनों की बिजाई ज्यादातर बिरानी जमीन में की
जाती है। क्योंकि इसमें कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। किसानों का कहना है कि
बिरानी चनों की बिजाई के लिए मानसून की अच्छी बारिश होना जरूरी है। किसानों का कहना है कि चने के लिए मीठा जल ही उपयुक्त
होता है लेकिन यहां तो भूमिगत जल खारा है
और नहरी पानी की कमी रहती है, ऐसे में चनों की खेती पूरी तरह से
बारिश पर निर्भर है। नहरी जमीनों में तो सभी जगह खारे पानी से सिंचाई की जा चूकी
है है वहां तो चनों का उत्पादन होना काफी मुश्किल है वहां तो गेंहू व सरसों की
पैदावार ही ली जा सकती है, और चनों का भाव भी कई सालों से कम ही
चल रहा है।
कृ षि विभाग के अधिकारियों ने एक विशेष मुहिम
के तहत गांवों में प्रदर्शन प्लांट लगाकर चनों की बिजाई क ा क्षेत्रफल बढाने के
लिए पूरा जोर लगाया लेकिन अब सरसों के भाव तेज होने के कारण किसानों ने सरसों की
बिजाई ज्यादा की है।
इस बार जिले में 3315
हैक्टेयर में चनों की बिजाई हुई। पिछले कई वर्षों से चने का उत्पादन घट रहा
है। और किसानों का रूझान भी कम हो गया था। लेकिन गांवों में दो साल पहले प्रदर्शन
प्लांट लगाकर व किसानों को विशेष ट्रैनिंग देकर चने की बिजाई का क्षेत्रफल बढानें
के प्रयास किए गए थे।
लेकिन सरसो व गेहूं
के भाव अच्छे मिलने के कारण इस बार गेहूं व सरसों की बिजाई का क्षेत्रफल बढ़ा
है।
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