साधु परंपरा के अनुसार कहा जाता है कि जब तक साधु को खुद उसके घर से परिजन भिक्षा नहीं दे देते तब तक साधु की दीक्षा अधूरी ही रहती है। इसी साधु परंपरा को निभाने के लिए राघवानंद अपने घर पहुंचे और परिजनों से भिक्षाण देही-भिक्षाण देही के संबोधन के साथ भिक्षा मांगी। इस दौरान परिजनों की आंखें खुशी से छलक उठी। भिक्षा देने के बाद उमरवाल परिवार की ओर से भंडारा भी किया गया।निवाई अद्वैत आश्रम हरभांवता के संत बालकानंद गिरी के शिष्य राघवानंद साधु बनने के बाद पहली बार गांव कुरावदा पहुंचे। घर पहुँच कर राघवानंद ने साधु संतों की टोली के साथ अपने परिजनों व ग्रामीणों से भिक्षा मांगी।साधु बनने के बाद घर पहुंचे राघवानंद को देख परिवार के साथ सभी समाज के लोग भी उत्साहित थे। साधु संतों की टोली का ढोल नगाड़ों से स्वागत किया गया। महिलाओं ने मंगल गीत गाते हुए संतों का बंधावणा किया। भिक्षा कार्यक्रम के एक दिन बाद भजन संध्या भी हुई, जिसमें कई ख्यातनाम भजन गायकों ने कर्णप्रिय भजन प्रस्तुत किए।हनुमानजी मंदिर से पैतृक मकान तक राघवानंद को नाचते गाते लाया गया। परिजनों की ओर से उनको भिक्षा दी गई। इस दौरान कही साधु-संत उपस्थित रहे हरभांवता आश्रम के संत बालकानंदगिरी के सानिध्य मे भजन सत्संग का भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। बैंड बाजे के साथ संतों को विदाई दी गई, इस दौरान आसपास के हजारों ग्रामीण उपस्थित रहै
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