नाथूसरी चोपटा। पढाई पूरी करने के बाद नौकरी ढंूढने के लिए समय खराब करने से तो अच्छा अपना कोई व्यवसाय शुरू कर लिया जाए। नौकरी मिले ना मिले लेकिन कृषि के साथ साथ अपनी मेहनत व लग्र से अतिरिक्त आमदनी का जरीया तो होना ही चाहिए। यह कहना है गांव रुपाणा खुर्द जिला सिरसा के एमसीए पास किसान सुरेंद्र सुथार का। जिसने एमसीए की पढाई करने के बाद अपने घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए अपने माता पिता श्रीमति घाटा देवी व श्री देवीलाल सुथार के आशीर्वाद से अपने भाई कलमेंद्र सुथार के साथ मिलकर 5 साल पहले चार देसी नस्ल की गायों को खरीद कर दूध बेचने का काम शुरू किया। इससे परंपरागत कृषि के साथ अतिरिक्त आमदनी शुरू हो गई। इसके साथ ही एक निजी स्कूल में अध्यापन का कार्य भी शुरू किया। अब उनके पास कुल 95 गोवंश हैं जिनमें 25 दुधारू गाय हैं। जिनके दूध से हर साल करीब 30 लाख रूपये की बचत होने लगी। इसके अलावा पिछले साल वर्मी कंपोस्ट केंचुआ खाद का व्यवसाय शुरू किया जिससे करीब 25000 रुपए प्रति महीने की अतिरिक्त कमाई भी शुरू हो गई। सुरेंद्र सुथार ने बताया कि कभी टिड्डी दल का हमला, कभी सूखा रोग, कभी औलावृष्टि आदि की मार से परंपरागत खेती से आमदनी कम हो जाती है। और आर्थिक स्थिति डावांडोल हो जाती है। लेकिन उसने हौसला हारने की बजाए पशुपालन से कमाई का जरिया खोजा। लीक से हटकर कुछ करने के जज्बे ने सुरेंद्र सुथार को हरियाणा के साथ-साथ निकटवर्ती राजस्थान के आस पास के गांवों में अलग पहचान भी दिलवाई। और कम उम्र में ही किसानों व पशुपालकों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया।
सुथार साहीवाल डेयरी फार्म रूपाना खुर्द( सिरसा )
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सुरेंद्र सुथार ने बताया कि एमसीए की पढ़ाई करने बाद नौकरी ढृूंढने की बजाय उसने खेती के साथ अन्य कमाई का जरीया खोजना शुरू किया तो निकटवर्ती राजस्थान के गांवों में जाकर देसी नस्ल की गायों के दूध से कमाई करने का जरिया खोजना शुरू किया । उसके व्यवसाय को देखकर दूध बेचने को काम शुरू करने का मन बनाया। 5 साल पहले 4 देसी नस्ल की गाय खरीदकर दूध बेचने का काम शुरू किया। धीरे धीरे कमाई करके और गायों जिनमें साहिवाल, राठी, थारपारकर और हरियाण नस्ल की गायों को खरीदकर दूध का कारोबार बढ़ा लिया। इसके साथ ही छोटी बछडिय़ों को पालना शुरू कर दिया। जिससे खेती के साथ साथ पशुपालन से बचत होने लगी। इसके साथ ही गायों के गोबर की खाद को बेचकर डेढ़ लाख रुपए सालाना अतिरिक्त आमदनी भी शुरू हुई। इसके अलावा पिछले वर्ष वर्मी कंपोस्ट खाद का व्यवसाय शुरू किया जिनमें 20 बेड में खाद तैयार की जाती है तथा जिनमें केंचुए और केंचुए की खाद दोनों बेचकर कमाई होने लगी। वर्तमान के उनके पास 25 दुधारू गाय है जिनके दूध से उन्हें हर महीने करीब 2 लाख 50000 रूपये से अधिक की आमदनी हो जाती है।
विशेष लेख सुरेंद्र सुथार
जिस प्रकार मानव बीमार उसी प्रकार आज के समय हमारी फसल भी अधिक बीमारी और खर्च को लेकर आज घाटे का सौदा बनती जा रही है। हमने मिट्टी में महंगे व जहरीले फ़र्टिलाइज़र और पेस्टिसाइड डालकर मिट्टी को इसका आदि बना दिया है । लेकिन उत्पादन फिर भी इतना नही मिल रहा है । ये कभी जानने की कोशिश ही नही की की केमिकल के प्रयोग से हमारी मिट्टी में रहने वाले nutrients व मित्र जीव बहुत ही तेज़ी से खत्म हो रहे हैं ।
मित्र जीवो को मिट्टी में दोबारा पैदा करने व सभी 16 पोषक तत्व पौधे को उपलब्ध करवाने के लिए हमने हमारे फार्म पर देसी गायों के गोबर से नीमयुक्त वेर्मिकम्पोस्ट ( केंचुआ खाद) तैयार कर ली है। जिससे की जमीन की उर्वरा शक्ति तो बढ़ती है ही और साथ मे बीमारियों से छुटकारा , केमिकल उर्वरक से भी निजात पाये । अपने खेत मे सिर्फ केंचुआ खाद ही डाले ।
1 - वर्मी कम्पोस्ट में गोबर की खाद (एफ.वाई.एम.) की अपेक्षा नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश तथा अन्य सूक्ष्म तत्व अधिक मात्रा में पाये जाते हैं।
• 2- वर्मी कम्पोस्ट के सूक्ष्म जीव, एन्जाइम्स, विटामिन तथा वृद्विवर्धक हार्मोन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
• 3- केंचुआ द्वारा निर्मित खाद को मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की उपजाऊ एवं उर्वरा शक्ति बढ़ती है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव पौधों की वृद्धि पर पड़ता है।
• 4- वर्मी कम्पोस्ट वाली मिट्टी में भू-क्षरण कम होता है तथा मिट्टी की जलधारण क्षमता में सुधार होता है।
• 5-खेतों में केंचुओं द्वारा निर्मित खाद के उपयोग से खरपतवार व कीड़ो का प्रकोप कम होता है तथा पौधों की रोग रोधक क्षमता भी बढ़ती है।
• 6- वर्मी कम्पास्ट के उपयोग से फसलों पर रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों की मांग कम होती है जिससे किसानों का इन पर व्यय कम होता है।
• 7- वर्मी कम्पोस्ट से प्राकृतिक संतुलन बना रहता है, साथ ही भूमि, पौधों या अन्य प्राणियों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।...
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Surender Suthar Rupana khurd (Sirsa).. Haryana
यहाँ केंचुआ फार्म व डेयरी फार्म की ट्रेनिंग निशुल्क दी जाती है
उन्होंने पशुपालन विभाग से पिछले वर्ष बिना इंटरेस्ट के लोन भी प्राप्त किया है। उन्होंने बताया कि क्षेत्र के कई युवा उनके व्यवसाय को देखकर दूध बेचने के काम करने लगे हैं। जिससे उन्हें रोजगार मिल गया है। किसान खेती के साथ इस तरह स्वदेशी तरीके से व्यवसाय पूर्व कर कमाई करके आत्म निर्भर बन सकते हैं। उनका कहना है कि पढ़ाई करने के बाद अपना व्यवसाय शुरू करने के साथ-साथ एक निजी स्कूल में भी शिक्षण कार्य कर रहे हैं।
सरकार को देसी गायों के संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए।
सुरेंद्र सुथार ने बताया कि सरकार को देसी गायों की नस्ल के सुधार की ओर ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा लोगों को भी गायों को लावारिस नहीं छोड़ना चाहिए । इसके साथ ही वर्मी कंपोस्ट खाद खाद का प्रयोग करना चाहिए। उनकी देखभाल कर दूध बेचने व गोबर की खाद का व्यवसाय भी शुरू किया जा सकता है। जिससे अन्य लोगों को भी रोजगार दिया जा सकता है। उसने बताया कि उसे पशुओं के लिए शैड आदि बनवाना है जिसके लिए सरकार की तरफ सरलता से लोन या अनुदान मिल जाए तो पशुओं को गर्मी सर्दी से बचाया जा सकता है। इसके अलावा चोपटा क्षेत्र में दूध भंडारण की व्यवस्था भी करनी चाहिए।
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