🌹*भगवान को खिचड़ी का भोग*🌹
भगवान की परम उपासक
कर्मा बाई जी जगन्नाथ पुरी में रहती थीं
और भगवान को बचपन से ही
पुत्र रुप में भजती थीं ।
ठाकुर जी के बाल रुप से वह रोज
ऐसे बातें करती जैसे ठाकुर जी उनके पुत्र हों
और उनके घर में ही वास करते हों ।
एक दिन कर्मा बाई की इच्छा हुई कि
ठाकुर जी को फल-मेवे की जगह
अपने हाथ से कुछ बनाकर खिलाऊँ ।
उन्होंने जगन्नाथ प्रभु को अपनी इच्छा बतलायी ।
भगवान तो सर्वदा सरल भक्तों के लिए
सरल रहते हैं ।
प्रभु जी बोले - 'माँ ! जो भी बनाया हो,
वही खिला दो, बहुत भूख लगी है ।'
कर्मा बाई ने खिचड़ी बनाई थी ।
ठाकुर जी को खिचड़ी खाने को दे दी ।
प्रभु बड़े चाव से खिचड़ी खाने लगे
और कर्मा बाई ये सोचकर भगवान को
पंखा झलने लगीं कि कहीं गर्म गर्म खिचड़ी से
मेरे ठाकुर जी का मुँह ना जल जाए ।
संसार को अपने मुख में समाने वाले
भगवान को कर्मा बाई एक माता की तरह
पंखा कर रही हैं और भगवान भक्त की भावना में भाव विभोर होकर खिचड़ी खा रहे हैं ।
भक्त वत्सल भगवान ने कहा - 'माँ ! मुझे तो खिचड़ी बहुत अच्छी लगी ।
मेरे लिए आप रोज खिचड़ी ही बनाया करो ।'
अब तो कर्मा बाई जी रोज सुबह उठतीं
और सबसे पहले खिचड़ी बनातीं,
बाकि सब कुछ बाद में करतीं ।
भगवान भी सुबह-सवेरे दौड़े दौड़े आते
और आते ही कहते - 'माँ ! जल्दी से
मेरी प्रिय खिचड़ी लाओ ।'
प्रतिदिन का यही क्रम बन गया ।
भगवान सुबह-सुबह आते, भोग लगाते
और फिर चले जाते ।
एक बार कोई महात्मा कर्मा बाई के पास आए । महात्मा ने उन्हें सुबह-सुबह
खिचड़ी बनाते देखा तो नाराज होकर कहा - 'माई ! तुम यह क्या कर रही हो ?
सबसे पहले नहा धोकर पूजा-पाठ
करनी चाहिए ।
लेकिन आपको तो पेट की
चिन्ता सताने लगती है ।'
कर्मा बाई बोली - 'क्या करुँ ? महाराज जी ! संसार जिस भगवान की पूजा-अर्चना कर रहा होता है, वही सुबह-सुबह भूखे आ जाते हैं । उनके लिए ही तो सब काम छोड़कर पहले खिचड़ी बनाती हूँ ।'
महात्मा ने सोचा कि शायद कर्मा बाई की
बुद्धि फिर गई है ।
यह तो ऐसे बोल रही है जैसे भगवान इसकी बनायी खिचड़ी के ही भूखे बैठे हुए हों ।
महात्मा कर्मा बाई को समझाने लगे -
'देखो, माई ! तुम भगवान को
अशुद्ध कर रही हो ।
सुबह स्नान के बाद पहले रसोई की सफाई करो, फिर भगवान के लिए भोग बनाओ ।'
ऐसा समझा कर महात्मा जी चले गए ।
अगले दिन कर्मा बाई ने ऐसा ही किया ।
जैसे ही सुबह हुई भगवान आए और बोले -
'माँ ! मैं आ गया हूँ, खिचड़ी लाओ ।'
कर्मा बाई ने कहा - 'प्रभु ! अभी मैं
स्नान कर रही हूँ, थोड़ा रुको !'
थोड़ी देर बाद भगवान ने फिर आवाज लगाई । 'जल्दी करो, माँ ! मेरे मन्दिर के पट खुल जायेंगे, मुझे जाना है ।'
वह फिर बोलीं - 'प्रभु ! अभी मैं
रसोई की सफाई कर रही हूँ, थोड़ा ठहरो ।'
भगवान सोचने लगे - 'आज माँ को
क्या हो गया है ?
ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ !'
फिर जब कर्मा बाई ने खिचड़ी परोसी तब भगवान ने झटपट करके जल्दी-जल्दी
खिचड़ी खायी ।
परन्तु आज खिचड़ी में भी वह भाव नहीं था,
जो रोज होता था ।
आज भगवान को खिचड़ी में
कोई स्वाद नहीं आया ।
फिर जल्दी-जल्दी में भगवान
बिना पानी पिए ही मन्दिर की ओर दौड़ पड़े ।
अब जैसे ही भगवान कर्मा बाई के घर से निकले तो बाहर महात्मा को देखा
और देखते ही समझ गए -
'अच्छा, तो यह इसका किया धरा है ।
मेरी माँ को यह पट्टी इसी ने पढ़ायी ।'
मन्दिर के पुजारी ने जैसे ही मन्दिर के पट खोले तो देखा भगवान के मुख पर
खिचड़ी लगी हुई है ।
पुजारी जी भी भगवान के अनन्य भक्त थे,
देखते ही बोले - 'प्रभु !
ये खिचड़ी आपके मुख पर कैसे लगी ?”
भगवान ने कहा - 'पुजारी जी !
मैं हर रोज मेरी माँ कर्मा बाई के घर पर
खिचड़ी खाकर आता हूँ ।
आप माँ कर्मा बाई जी के घर जाओ
और जो महात्मा उनके यहाँ ठहरे हुए हैं,
उनको समझाओ ।
उसने मेरी माँ को गलत पट्टी पढाई है ?'
पुजारी जी तुरन्त कर्मा बाई के घर की ओर
भागे और वहाँ जाकर महात्मा जी को
सारी बात सुनाई ।
यह सुनकर महात्मा जी घबराए,
उनकी धड़कन तेज हो गयी
और कर्मा बाई के चरणों में साष्टांग लेट गए - 'माई ! मुझे माफ कर दो,
आपके भाव को मैं कोटि कोटि प्रणाम करता हूँ । ये नियम, धर्म तो हम सन्तों के लिए हैं,
आप तो जैसे पहले खिचड़ी बनाती थी,
वैसे ही बनाओ ।
आपके भाव से ही ठाकुर जी
खिचड़ी का भोग लगाते हैं ।'
फिर एक दिन वो भी आया ,
जब कर्मा बाई के प्राण छूट गए ।
उस दिन पुजारी ने मन्दिर के पट खोले तो देखा - 'भगवान की आँखों में आँसूं हैं, प्रभु रो रहे हैं ।'
यह देख पुजारी जी भी भाव विह्वल
होकर पूछने लगे - 'प्रभु ! आप क्यों रोए ?
क्या मुझसे कोई गलती हो गयी है ?'
भगवान बोले - 'पुजारी जी,
आज मेरी माँ कर्मा बाई इस लोक को छोड़कर मेरे निज लोक को विदा हो गयी है ।
अब मुझे कौन खिचड़ी बनाकर खिलाएगा ?'
पुजारी जी ने कहा - 'प्रभु जी !
आपको माँ की कमी महसूस नहीं होने देंगे । आज के बाद आपको सबसे पहले
खिचड़ी का भोग ही लगेगा ।'
इस तरह से आज भी भगवान जगन्नाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है ।
भगवान और उनके भक्तों की ये अमर कथाएं अटूट आस्था और विश्वास का प्रतीक हैं ।
ये कथाएं प्रभु प्रेम के स्नेह को दरसाने के लिए अस्तित्व में आयी हैं कि प्रभु सिर्फ सच्चे,
सरल और पवित्र भाव के भूखे है ।
आप भी इन कथाओं के माध्यम से
भक्ति के रस को चखते हुए
आनन्द के सरोवर में डुबकी लगाएं ।
और अपने बच्चों को सनातन धर्म की
कथाएं सुना कर उनमें आस्था का भाव जगाएं!
ईश्वर की शक्ति के आगे तर्कशीलता भी नतमस्तक हो जाती है,
तभी तो चिकित्सा विज्ञान के लोग भी कहते हैं - 'दवा से ज्यादा, दुआ काम आएगी ।'
भगवान सबका कल्याण करे !*
🙏🙏जय जय श्री राम🙏🙏
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