संकल्पनाएँ सिद्धांत निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, प्रत्येक संकल्पना एवं घटना विशेष को व्यक्त करती है। ऐसा करते समय घटना विशेष को शेष जगत से पृथक् रखा जाता हैं । शब्दों का तकनीकी अ
र्थ आम रूप में समझा जाता है और हम उन्हें संकल्पनाएँ कहते हैं।
तब संकल्पनाओं को एक या दूसरे से संबंध जोड़ने के लिए प्रयोग किया जाता है जैसे मेडिकल टेस्टो के विविध पैमाने जो अंततः एक निष्र्कष पर पहुँचते हैं, सामान्य या रोगात्मक अवस्था। समाजशास्त्र में प्रयुक्त अनेक अवधारणाएँ या संकल्पनाएँ इसी प्रकार की है। जैसे संस्कृति, व्यक्तीत्व अंतक्रिया प्रस्थिति, भूमिका आदि। ऐसी संकल्पनाओं का प्रयोग भौतिकी, रसायन विज्ञान एवं जीव विज्ञान के क्षेत्र में होता है क्योंकि ये वस्तुओं/बलों को मापने समीकरणों के निर्माण एवं प्रयोग करने में सहायता करते है।
संकल्पनाएँ परिभाषाओं द्वारा निर्मित
होती है। वास्तव में जिन संकपलाओं
का सिदद्न्त निर्माण की दृष्टि से प्रयोग किया जाता है उसमें
एक गुण यह होता है कि उनका उपयोग करने वालों में
वे समान अर्थ का संचार करें। इस इकाई में हम संकल्पनाओं की प्रकृति, सिद्धान्त, संकलपनाओं से प्रमेय, दुर्खाइम वेबर
एवं बाद के विचारकों के बारे में विस्तारपूर्वक पढ़ेंगे ।
शब्द एवं भाषा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- भाषा का प्रयोग मनुष्यों के द्वारा अपने विचारों अनुभूतियो एवं सजगता को स्पष्ट करने तथा अपने कार्यों के विश्लेषण एवं मूल्याकन करने के लिए किया जाता है। मनुष्य होने के नाते हम शब्दों एवं शब्दों के समूह जिसे वाक्य कहते हैं के माध्यम से अंतक्रिया करते हैं।
ऐसे अन्य मनुष्य भी हैं जो यही सब करते हैं। वे जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं. हमे उसकी समझ होती है। धीरे- धीरे हम ऐसे शब्द प्रयोग करते है जिसका अर्थ समुदाय में सभी एक ही रूप में लेते या समझते हैं । भाषा सामाजिक उत्पाद है। शब्दों को एक अर्थ दिया जाता है और यह अर्थ सभी को सामान्य रूप से स्वीकृत होता है।
इस तरह सामाजिक अंत क्रिया सुविधाजनक हो जाती है। उत्तर-पूर्वी भारत में नागा की अलग-अलग घाटियों में रहने वाले नौ विभिन्न वंशों के बारे में कथा सुनाई जाती है। वे स्थानीय बोली में एक वस्तु की प्राप्ति के लिए साथ मिलजुल कर बैठ जाते हैं। उनकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि कौन सी चीज की जरूरत है। तब उनमें से प्रत्येक ने छोटा पैकेट खोला।
उस पैकट में नमक था, लेकिन नमक को नौ विभिन्न शब्दों में स्पष्ट किया गया। इस तरह हम एक शब्द के अर्थ का मूल्य समझ सकते हैं। दो और उदाहरण इस संदर्भ में सटीक होंगे। कुर्सी शब्द का अर्थ फर्नीचर के ऐसे टुकड़े से है जिसका प्रयोग बैठने के लिए किया जाता है। एक समय था जब संसद में सदस्य बेंचों पर बैठा करते थे।
सरकारी क्षेत्र एवं वित्त को नियंत्रित करने वाले व्यक्त्तियों को (टेजरी बेंचों )और जिस व्यक्ति जिस व्यक्ति को संबोधित किया जाता था उसे 'चेयर' कहते थे। यहाँ लक्ष्य बिंदु परिष्टियों से संबद्ध है और इन सीटों पर बैठने वालों से इन सीटों का अर्थ समझा जाता है। कोर्ट में "वेच' से आशय है न्यायाधीश। वकीलों को "डाएस" की बजाय 'बार' से अलग पहचान दी जाती है।
इस तरह वकीलों का संबंध 'बार' से होता है। यहाँ पुनः बार एवं बेच अपनी संबद्ध स्थितियों से पहचाने जाते है जो कि एक दूसरे से भिन्न होती है। क्रिकेट में सफेद कोट अम्पायर को दर्शाता है। सेना एवं पुलिस विविध रैंकों के लिए विविध ड्रेस कोड निर्धारित किए जाते है।
जब समान अर्थ दर्शाने के लिए बहुत बार एक ही शब्द का प्रयोग किया जाता है तो अन्य लोगों के लिए इसका प्रयोग करना संभव हो जाता है और इसी के आधार पर वे एक-दूसरे से बातचीत कर सकते हैं।
यहाँ तक कि 'हाँ' या 'ना' दर्शाने के लिए चिह्नों का प्रयोग किय सकता है। आंध्र प्रदेश में बायें से दायें गर्दन हिलाता है तो इसका अर्थ हाँ है जबकि उतरी भारत में इसका अर्थ 'ना' है जबकि हाँ के लिए गति ऊपर से नीचे की ओर होना चाहिएं ।
पश्चिम में अंगूठा दिखाने का अर्थ है 'जाने के लिए तैयार; जबकि परंपरागत भारत में इसका अर्थ दूसरे को अनेदखा करना है। हिंदी में 'ठेंगा दिखा दिया" का अर्थ है कि 'मैं आपकी परवाह नहीं करता' ये कुछ गिने-चुने उदाहरण दर्शाते हैं कि एक दूसरे की बात भली- भांति समझने के लिए शब्दों व चिह्नों के साझे अर्थ की जरूरत है। मनुष्यों को इसलिए पशुओं से अलग समझा जाता है क्योंकि इनमें एक दूसरे से विचारों का आदान-प्रदान करने की भाषा। प्रयोग की क्षमता होती है।
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