क्लासिकी समाजशास्त्रीय सिद्धांत पर टिप्पणी । Theory and Paradigm

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क्लासिकी समाजशास्त्रीय सिद्धांत पर टिप्पणी । Theory and Paradigm

                     


     


 


सिद्धांत और रूपावली (Theory and Paradigm)


साधारण शब्दों में सिद्धांत से आशय कला या विज्ञान के सामान्य सिद्धातों की व्याख्या जो कि अभ्यास से बनती है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि एक सिद्धांत तर्क वाक्यों का एक समूह है. जो तर्क वाक्य को निश्चित अवधारणाओं के रूप में प्रस्तुत किया गया हो। 



वास्तव में सिद्धांत का निर्माण एक रचनात्मक उपलब्धि है और क्षेत्र में कार्य कर रहे सभी विद्वान सिद्धांत निर्मित करने में सफल हो जाए, यह भी आवश्यक नहीं है। सिद्धांत आमतौर पर अभ्यास की व्याख्या करने में सहायक होते है। समाजशास्त्री कुन के अनुसार विषय विशेष रूप से विज्ञान के भीतर विकास एक क्रमिक प्रक्रिया नहीं है बल्कि यह यकायक घटित हो जाती है।



 अतः कुन की पुस्तकें वैज्ञानिक क्रांति की संरचना पर आधारित थीं। कुन ऐसे यकायक परिवर्तनों को 'प्रतिमान परिवर्तन' कहते हैं। प्रस्तुत इकाई में मार्क्स और वेबर दोनों के पूँजीवादी व्यवस्था, धर्म, वर्ग और सत्ता पर अपनी व्याख्याएँ अलग-अलग तरीके से की है। 


अतः परिस्थितियों को बदलने एवं अन्य तथ्यों के बदलने एवं नए तथ्यों के बदलने या प्राप्त होने पर सिद्धांत परिवर्तित करना और नया सिद्धांत निर्मित करना आवश्यक हो जाता है। इस इकाई में हम सामाजिक सिद्धांत के संदर्भ में मार्क्स, दुर्खाइम एवं वेबर के योगदान तथा क्लासिकी और समकालीन सिद्धातों के बारे में पढ़ेंगे।


 

 जिस युग में समाजशास्त्र इस दावे के साथ उरा कि समाज का वैज्ञानिक अध्यन संभव है उसी युग से समाजशास्त्र के क्लासिकी सिद्धांत का संबद्ध है। इससे पहले दर्शनशास्त्र बुद्धिजीवी एवं इनके साथ-साथ एक साधारण आदमी ने अपने निजी तरीको से समाज पर  विचार किया और इसकी कल्पना की लेकिन समाज का विज्ञान उमर नही सका । 



 समाजशासत्र  के उद्‌भव से पहले दर्शनशास्त्रियों का चिंतन, साहित्यिक अव्यावहारिकता एवं आलोचना समाज के बारे में जन की निजी संकल्पनाएँ उस युग की विशेषताएँ रही थीं।



 यद्यपि चिंतन के विभिन्न क्षेत्रों से संबद्ध बुद्धिजीवी एवं उनके साथ-साथ आम लोगों ने समाज की प्रकृति पर अपनी छाप छोड़ी थी ।  लेकिन उनके ऐसे प्रयास मुख्यतः निजी प्रयास थे। दूसरी तरफ समा का अस्तित्व लबी अवधि तक बना रहा जिसने   अपने खुद के आंतरिक प्रतिदशजों एवं गतिकी  को दर्शाया।

 

 

समाजशास्त्र शब्द एक फ्रांसीसी समाजशास्त्री एवं दर्शनशास्त्री आगस्ते कामटे  (1798-1857) ने प्रतिपादित किया, उन्हें 'समाजशास्त्र का जनक' भी कहते है उन्होंने इस विषय में कुछ महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। 




लेकिन उनका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण  कार्य समाजशास्त्र को वैज्ञानिक एवं इसके साथ-साथ एक अलग विषय के रूप में स्थापित करने  में इसके प्रयासों से जुड़ा हुआ है। उससे पहले समाजशास्त्र की बजाय हमारे पा दर्शनशास्त्र, साहित्य एवं कला जैसे विषय थे जिनके माध्यम से सामाजिक चिंतन किया ज सकता था। 




अतः अन्य शब्दों में समाज की किस प्रकार दार्शनिक, साहित्यिक या कला के माध्यम से कल्पना की जा सकती थी और समाज पर नजर डालने का सिर्फ यही एक उपलब तरीका था। समाज के वैज्ञानिक विश्लेषण की आधुनिक विधि जो कि आगस्ते काम्टे द्वारा सुझाई गई वह पहले उपलब्ध नहीं थी।



 इसलिए आगस्ते काम्टे के योगदानों को अपनी निजी शैली में नए एवं अलग विष्य के रूप में समाजशास्त्र को  स्थापित करने के लिए एक नवीन मार्ग तलाशने वाले निर्माता के रूप में  देखा जाना चाहियें । संक्षेप में आगसते कामते ने अपने दर्शिकाना ढंग से समाज के वैज्ञानिक अध्यन के संभव होने की चर्चा की और जब वे प्रयत्न सफल हुए तो समाज शास्त्र विष्य के रूप में जाना गया ।


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