सता की संकल्पना पर प्रकाश डालिए। अथवा सता से आप क्या समझते हैं ?

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सता की संकल्पना पर प्रकाश डालिए। अथवा सता से आप क्या समझते हैं ?

 


 

उत्तर - किसी व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह के व्यवहार को अपनीइच्छा नुसार प्रभावित करने की योग्यता को सता  कहते है। सता सदेव दो के बीच सामाजिक संबंधों को अनिवार्य बनाती है। 



यह कहना  कि किसी व्यक्ति के पास सता हैं, निरथक है यदि यह  कहा जाए कि  वह ता किस पर प्रयोग की जाती है। सता रखने वाला एक व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह, दूसरों  से वह करवा सकता है जो यह करवाना चाहता है।




यदि वे  जिन पर सत्ता प्रयोग की जा रही है आज्ञापालन से इकार अथवा विरोध करते है किसी न किसी प्रकार से दंडित किया जाता है। सत्ता सदैव संबंधों में विषमता पैदा  करती हैं। 



 जिन लोगों की सीमित संसाधनों तक अधिक पहुँच है जैसे वित्त पर नियंत्रण, उत्पादन अथवा  वितरण के साधनों का स्वामित्व अथवा नियंत्रण में उनसे अधिक सत्ताशाली होते है, जिनके पास  साधन नहीं है अथवा जिन्हें इनके नियंत्रण का अवसर प्राप्त नहीं हुआ।



  अपनी इच्छा को थोपने  के लिए दंड विधि का प्रयोग सत्ता का एक महत्त्वपूर्ण अंग है और इसी आधार पर  प्रभाव से भिन्न है।

 

कोसर ने सत्ता की संकल्पनात्मकता के लिए दो परंपराओं (प्रथाओं) को रेखांकित किया हैं । जिन्हें सामाजिक लेखों

 

में पहचाना जा सकता है। यहाँ दो प्रश्न प्रासांगिक हो जाते। कुछ  लोगों के पास सत्ता क्यों होती है जबकि दूसरों के पास यह नहीं होती। मजबूत व्यक्ति  के पास सत्य होती  है और वह आदेश देता है जबकि कमजोर लोगों के पास सत्ता नहीं होती और वे आज्ञा का पालन करते हैं। 



लेकिन यह हमेशा सत्य नहीं होता। यह कहा जा सकता है कि  संसाधनों में असमानता से सत्ता में असमानता आती है। अतः यदि एक निश्चित क्षेत्र में    

संसाधन समान रूप से संतुलित हो, तो दो के बीच कोई सत्ता संबंध नहीं होगा। इन दो प्रश्नों का उतर काफी जटिल है।



 यह जानना आवश्यक है कि किस आधार पर किसी के पास सता है, किस आधार पर आज्ञा पालन की अपेक्षा करता है और आज्ञा पालन करने वाला पालन को बाध्यता समझता है? गर्थ और मिल्स स्पष्ट करते हैं कि सत्ता अपने आप  

में ही  ऐसी है कि एक व्यक्ति वैसा ही करता है जैसा दूसरा चाहता है। आज्ञा पालन डर पर आधारित  हो सकती है अथवा लाभ की तार्किक गणना कर अथवा अन्य ढंग से कर सकने की  ऊर्जा के अभाव के कारण, निष्ठा या किसी अन्य कारण से।

 

 

इस स्तर पर राता और संबंधित धारणाओं में अंतर करना महत्त्वपूर्ण है

 

(क) सत्ता और अधिकार इस स्थिति में सत्ता को संबंधित धारणाओं से अलग करने की आवश्यकता है।


 जब सता को वैधता अथवा न्यायसंगतता प्राप्त होती है तो इसे सत्ता माना जाता है। यह ध्यान देने योग्य है कि सत्ता का स्वेच्छा से पालन किया जाता है। एक व्यक्ति जिसके पास अधिकार (सत्ता) है. यह दूसरों को आदेश दे सकता है अथवा दूसरों पर नियंत्रण कर सकता है। एक वरिष्ठ अधिकारी का उदाहरण लीजिए जो अपने अधीनस्थों को काम सौंपता है तथा उनका दूसरे शहरों में स्थानांतरण भी कर सकता है। ऐसा सरकार में उसकी हैसियत तथा प्राप्त अधिकार के कारण है।



 औपचारेिक संगठनों में अधिकार स्पष्ट एवं निश्चित होते है तथा इनका प्रयोग संगठन के नियमों एवं कानूनों के अंतर्गत होता है। यहाँ यह समझ लेना चाहिए कि सत्ता एवं अधिकार के प्रयोग का यह अर्थ नहीं है कि आदेश देने वाला व्यक्ति श्रेष्ठतर है। एक शिक्षक प्रधानाचार्य से अधिक विद्वान हो सकता है जबकि प्रधानाचार्य उसे निष्काषित कर सकता है।



 यह केवल अधिकार के कारण है जो प्रधानाचार्य को प्राप्त है कि वह शिक्षक को निलबित कर सकता है। सत्ता को औपचारिक संगठनों में संस्थात्मक अधिकार (सत्ता) के रूप में लागू किया जा सकता है और अनौपचारिक संगठनों में संस्थात्मक सत्ता के रूप में।


 

(ख) सत्ता और प्रतिष्ठा ई. ए. रोस ने सत्ता के अवस्थित होने के तत्कालिक कारण के रूप में प्रतिष्ठा की ओर ध्यान आकर्षित किया। यह कहा गया कि जिस वर्ग की प्रतिष्ठा अधिक होगी। उसके पास सत्ता भी अधिक होगी। अतः प्रतिष्ठा सत्ता का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। प्रतिष्ठता को सत्ता के साथ जोड़ना उचित नहीं है क्योंकि प्रायः प्रतिष्ठा सत्ता के साथ जुड़ी हुई नहीं होती।




 सत्ता अपने आप में प्रतिष्ठा का आधार बन जाती है अर्थात् जब एक व्यक्ति के पास सत्ता होती है तो उसके पास प्रतिष्ठा भी होती है परंतु जब एक व्यक्ति के पास प्रतिष्ठा होती है तो आवश्यक नहीं कि उसके पास सत्ता भी हो।



 

(ग) सत्ता और प्रभाव सत्ता और प्रभाव में निकट का संबंध है। सत्ता, आज्ञापालन एवं आधीनता पर अधिकार रखती है। प्रभाव, दमनकारी होने के बजाय विश्वासोत्पादक है।



 सत्ता के लिए लक्षित नियंत्रण की आवश्यकता होती है जिसे प्रायः दंडात्मक विधियों से लागू किया जाता है, लेकिन प्रभाव में दंड अथवा प्रतिबंधों का प्रयोग नहीं होता। 



आवश्यक रूप से प्रभाव सत्ता के साथ जुड़ा हुआ नहीं होता। एक पुलिसमैन के पास सत्ता तो हो सकती है परंतु प्रभाव नहीं। इसी हिसाब से देश का प्रधानमंत्री ऐसा व्यक्ति होता है जिसके पास सत्ता और प्रभाव दोनों होते हैं।

 

 

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