भारतीय संविधान में दर्शाए गए मूल्यों का उल्लेख करें।

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भारतीय संविधान में दर्शाए गए मूल्यों का उल्लेख करें।

 





भारतीय संविधान में दर्शाए गए मूल्य-भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारतीय समाज का रूप प्रस्तावित किया गया हैं ।  संविधान की प्रस्तावना के अनुसार हम यह कह सकते हैं कि वर्तमान समाज की निम्नलिखित विशेष ताएं हैं -



1.  भारत प्रजातांत्रिक समाज है।

 

2. भारत धर्मनिरपेक्ष समाज है।

3. भारत समाजवादी समाज हैं ।



4 भारतीय समाज में सभी नगारिकों को सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक न्याय की व्ययस्था  है।



इसके अनुसार धर्म को राजनीतिक से नहीं जोड़ा गया है। धर्म का क्षेत्र व्यक्ति के अन्तःकरण के विस्तार का क्षेत्र है जिसमें उसे पूर्ण रूप से स्वतंत्र छोड़ दिया गया हैं।


 व्यक्ति किसी भी पंथ, सम्प्रदाय, पूजा विधि व विश्वास को मानने व अपनाने के लिए स्वतन्त्र होता हैं ।


 भारत के धर्म निरपेक्ष राज्य में सभी धर्मो को समान रूप से विकास करने के मौके प्रदान किए गए हैं। धर्म की स्वतन्त्रता के अधिकार को नागरिकों का मौलिक अधिकार माना गया है और इस प्रकार उन्हें अपने धार्मिक विश्वास रखने, उनका प्रचार करने व इच्छानुसार पूजा विधि अपनाने    का अधिकार प्राप्त है।




      धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है किसी धर्म का विरोध न करके सब धमों के लिए समान मौका प्रदान किया जाए । इसके लिए जरूरी होगा कि 'धार्मिक शिक्षा' की अपेक्षा 'धर्मो की शिक्षा दी जाए।




 पं. जवाहरलाल नेहरु ने धर्मनिरपेक्षता के धारणा को स्पष्ट  करते हुए लिखा है कि धर्मनिरपेक्षता कोई धार्मिक संकीर्णता नहीं है अपितु यह तो धार्मिक व्यापकता हैं । उनके अनुसार इसका  धर्म (निरपेक्षता) अर्थ है कि धर्म पूर्ण स्वतन्त्र है और राज्य अपने व्यापक कायों में सभी धार्मिक संरक्षण एवं मौके प्रदान करेगा। 


 

कि सभी सहिष्णुता व सहयोग की भावना का विकास कर सकें।"

धर्म निरपेक्षता की स्थिति में सभी लोगों को धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान करनी जरूरी हैं। भारतीय सविधान के प्रमुख रचीयता  डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने धर्मनिरपेक्षता के सन्दर्भ में लिखा है, "धर्मनिरपेक्षता से केवल इतना तात्पर्य है की संसद अन्य लोगों  की बलपूर्वक किसी एक धर्म को नहीं लाद पाएगी।"



 

वैज्ञानिक मूल्यों तया आध्यात्मिक मूल्यों का संश्लेषण-शिक्षा आयोग (1964-66)  ने इस बल देते हुए श्री  नेहरू के विचारों का उल्लेख किया है। "क्या हम विज्ञान और शिल्प-विज्ञान की इस तरककी का मेल मन और रूह की तरक्की से भी नहीं बैठा सकते? हम विज्ञान को भी नहीं झुठला सकते हैं क्योंकि आज तो जमाने में भारत जिन जरूरी सिद्धान्तों पर अमल करता आ रहा है; उनको तो हम और भी कम झुठला सकते हैं।



 इसलिए हम  अपनी पूरी शक्ति व साधन के साथ औद्योगिक विकास के रास्ते पर चलते रहें मगर उसके साथ ही साथ यह भी याद रखे की  सहनशीलता, दया व बुद्धिमानी की बिना भौतिक दौलत धूल और राख भी हो सकती हैं।  

 

उपसंहार-अन्त में यह कहना जरूरी है कि हमारी शिक्षा व सामाजिक जगत में जो दोष आज दिखाई देते हैं , इनका कारण नैतिक विचारों  का अभाव है।




 जो प्राचीन विचार हमें बाँधे हुए थे, वह समाप्त हो रहें हैं और जिन नए विचारों को हम अनजाने  स्वीकार कर रहे हैं, उनसे स्थिति और खराब हो रही है। इसे सुधारने के लिए एक मात्र साधन नैतिक शिक्षा प्रतीत होता हैं। इसकी  अवहेलना करके हम आत्माहीन हो रहे हैं और जिस पाश्चात्य सभ्यता को तत्त्व ज्ञान जाने बिना ग्रहण कर रहें हैं , उससे महोल  अशान्त बन रहा है। हमारे देश का भविष्य वही होगा, जो हमारे स्कूल व कॉलेज के छात्र बनाएंगे । 




हमारा भविष्य इस पर निर्भर  है कि हम अपने स्कूल-कॉलेजों में कैसी शिक्षा देते हैं। नए भारत का, जिसका हम निर्माण कर रहें हैं , उसे बूढ़े –जवान ,आमिर –गरीब  की समान रूप से जरूरत है। यदि हम अपने नवयुवकों को उचित शिक्षा व प्रशिक्षण नहीं देंगे तो हमारा भविष्य अंधकारमय   होगा। उचित शिक्षा का सबसे मजबूत पक्ष नैतिक शिक्षा देना है। इस सन्दर्भ में यह भी याद रखना होगा की राष्टीय नेताओं को , विशेषतया जो सत्ता में है, ऊँचे आदर्श स्थापित करने में मदद करती है।

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