वन्य जीवों के प्रति प्रेम व भक्ति भावना की खुशबू से महकता गांव गुसाईयाना, Village Gusaiyana History, culture & Problems || वन्य जीवों की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते है ग्रामीण

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वन्य जीवों के प्रति प्रेम व भक्ति भावना की खुशबू से महकता गांव गुसाईयाना, Village Gusaiyana History, culture & Problems || वन्य जीवों की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते है ग्रामीण



Reporting By Naresh Beniwal 9896737050

चोपटा---राजस्थान की सीमा पर बसा हरियाणा के  पैंतालिसा क्षेत्र  का  अन्तिम गांव गुसाईयाना वन्य जीवों के प्रति प्रेम व भक्ति भावना की खुशबू से महकता रहता है। इस गंाव के लोग वन्य जीवों की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते है। करीब 400 वर्ष पूर्व गुसाई महाराज द्वारा बसाया गया गांव  गुसाईवाला (वर्तमान में गुसाईयाना) की आबादी 3500 के करीब हैं व रक्बा 4000 एकड़ के लगभग है। 

गांव में 1700 के लगभग मतदाता हैं।  राज्य के अन्तिम छोर पर बसा होने के कारण शासन व प्रशासन की उपेक्षा का खामियाजा गांव वासी भुगत रहें हैं। इसी कारण से कई प्रकार की समस्याऐं वर्षो से हल नही हो पा रही है। नहरी पानी कम मात्रा में पहुंचने के कारण ज्यादातर जमीन बिना बिजाई रह जाती है। बिजली के लटकते तार, बस सेवा, स्वास्थ्य सेवाएं,बिजली आपूर्ति,खेल सुविधा,जैसी सेवाएं बेहद लचर हैं।  संरपच व गांव के युवा गांव की सुरत बदलना चाह रहें हैं। गांव के वन्य जीव प्रेमी क्षेत्र में लघु अभ्यारण्य बनानें की मांग भी बार बार सरकार से करते रहतें हैँ। वह पूरी नहीं हो पा  रही है। 

सिरसा से करीब 40 किलामीटर दूर जिले का अन्तिम गांव गुसाईयाना के पास पहुंचते ही हिरण, खरगोस, रोज आदि वन्य जीव वीचरते नजर आने लगते हैं।  गांव के इतिहास विकास कार्यों और अन्य समस्याओ पर चर्चा की तो पता चला कि जीव जन्तुओं की हर कीमत पर रक्षा व अन्य सामाजिक, धार्मिक कायों में अग्रणी गांव के लोग सरकार की उपेक्षा से नाराज हैं। 

गांव का इतिहास

राजस्थान की सीमा से सटा होने के  कारण गांव में राजस्थानी व बागड़ी भाषा बोली जाती है। बुजर्गों ने बताया कि करीब 450 साल पहले यहां पर गुसाई नामक महाराज ने आकर घनघोर जंगल में आकर अपना डेरा लगाया। तो उसने आकर यहां तपस्या शुरू की व एक जोहड़ की खुदाई कर जोहड़ बनाया तब राजस्थान से सिरसा की तरफ आने जाने वाले लोग यहां पर रूककर जलपान करते व विश्राम करके अपनी यात्रा पर निकलते। यह उस वक्त विश्राम करने का मुख्य स्थान था। तब इस जगह को गुसाई की जगह यानी गुसाईवाला स्थान के नाम से मशहूर हो गई। कालन्तर में इसका नाम गुसाईयाना पड़ गया। यहां पर सबसे पहले बैनीवाल गौत्र के लोग आकर बस गए। फिर खोड, बिश्राई, ब्रहामण, बनिया, सुनार, सहू, भारी इत्यादि गौत्र के लोग बस गये।

धार्मिक आस्था



 गांव में गुसाई महाराज द्वारा समाधि लेने के बाद ग्रामीणों ने उस स्थान पर एक  मन्दिर का निमार्ण करवा दिया। व मन्दिर में गुसाई जी याद में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मेला लगता है। यहां पर एक अति प्राचीन कुआं व गुसाई द्वारा खोदा गया जोहड़ भी है। गांव के लोग पूरी आस्था के साथ यहां पूजा अर्चना करते हैं। इसके अलावा गांव में हनुमान मन्दिर,रामदेव का रामदेवरा,भगवान जम्बेश्वर मन्दिर,ठाकुर जी मन्दिर,शिवजी मन्दिर,जाहरवीर गोगा जी की गोगामेड़ी,माता जी का मन्दिर व अखाड़ा बाबा का मन्दिर है। यहां पर गांव वासी पूजा अर्चना करते हैं। गांव में एक प्राचीन मिट्टी का अखाड़ा है।

गांव में सबसे पहला सरंपच स्वतंत्रता सेनानी श्योकरण खोड को बनाया गया व उसने लगभग 35 वर्षो तक गांव में सरपंच पद की बागडोर संभालतें हुए गांव में विकास कार्य करवाए। इनके अलावा गांव में एक और स्वतंत्रता सेनानी ब्रदरी प्रसाद ने भी देश की आजादी की लड़ाई में अपना अहम योगदान दिया। वर्तमान में गांव का सरपंच विनोद कुमार गांव में विकास कार्यों को करवाने में जुटा हुआ है। गंाव में प्राचीन जोहड़ व कुआं व वन्य जीवों के विचरण के लिए खाली पड़ी जमीन गांव की शोभा बढाती है।

सुविधाओं की मांग

कालेज स्तर की पढाई के लिए तो गांव से 40 किलोमीटर दूर सिरसा जाना पड़ता है। बस सुविधा का अभाव होने के कारण अधिकतर मा-बाप अपनी लड़कियों की पढाई छुड़वा लेते है। जिसके चलते काफी कम लोग सरकारी सेवा में है। गांव का सरपंच व युवा कल्ब के सदस्य स्कूल का दर्जा बढानें के लिए प्रयासरत हैं। इनके अलावा आंगनबाड़ी केंद्र , एक स्वास्थय केंद्र, पशु हस्पताल बना हुआ है। गांव में खेल प्रतिभा की कमी नही है लेकिन खेल सुविधा न होने के कारण खिलाड़ी आगे बढने से वचिंत रह जाते है।एक अन्य मांग है गांव में वन्य जीव अभ्यारण्य बनवाने की जिसके लिए गांव के लोग प्रयासरत हैं। किसी वन्य जीव के साथ कोई दुर्घटना होने पर ग्रामीण उसका ईलाज अपने खर्च पर करवाते हैं व ज्यादा गंभीर स्थिति में अपने ही खर्चे पर हिसार या अन्य स्थानों पर ले जान पडता है। ग्रामवासी गांव में विकास के लिए नऐ पढे लिखे सरपंच पर आस लगाए बैठे हैं। 















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